पोहांग स्टील कंपनी यानि पॉस्को ने आखिरकार ओडीशा सरकार को बता दिया कि वह 12 मिलियन मीट्रिक टन इस्पात संयंत्र परियोजना को वापस ले रही है. वैसे तो पॉस्को ने 2015 से ही अपना परिचालन निलंबित कर दिया था और 2016 में घोषणा की थी कि ये परियोजना आगे नहीं जाएगी. लेकिन कंपनी ने अब जा कर आधिकारिक तौर पर ओडीशा सरकार को बताया है कि वह अपनी परियोजना यहां से वापस ले जा रही है. ओडीशा सरकार अभी तक उम्मीद लगाए हुए थी कि शायद पॉस्को मान जाए.
इसी वजह से सरकार ने पॉस्को से 86 करोड़ रुपए के उपकर, भूमि परिवर्तन शुल्क और भूमि के बदले दूसरे खर्चों की मांग की थी. पॉस्को ने इस पत्र का जवाब देते हुए ओडीशा सरकार को सूचित किया है कि इसे ज़मीन की जरूरत नहीं है और वह मांग की गई राशि का भुगतान नहीं कर सकती है. इसके बाद इस बहु प्रचारित करीब 52000 करोड़ रुपए के सबसे बड़े प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अंत हो गया. लेकिन, पूरी कहानी अभी खत्म नहीं हुई है. सवाल है कि क्या स्टील प्लांट के लिए अधिग्रहित भूमि अब मूल निवासियों को वापस लौटा दी जाएगी?
भूमि संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है
जमीन वापस लेना ग्रामीणों के लिए आसान काम नहीं होगा. ओडीशा सरकार ने 2008, 2010, 2011 और 2013 में पॉस्को के लिए 2,700 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. ज्यादातर अधिग्रहण पुलिस और अति उत्साही अधिकारियों के द्वारा जबरन किया गया था. 15,000 पान के बगीचों को इसके लिए काट दिया गया था. पान की खेती से किसानों को अच्छी आमदनी होती थी. इस वजह से किसानों ने इस अधिग्रहण का जबरदस्त प्रतिरोध किया था. अब पॉस्को ने परियोजना वापस ले लिया है, तो जाहिर है स्थानीय लोग सोच रहे हैं कि जमीन उन्हें वापस लौटा दी जाएगी और वे अपनी पुरानी आजीविका फिर से शुरू कर सकेंगे. रिपोर्टों के अनुसार स्थानीय लोगों ने पॉस्को के जाने की खबर सुनते ही 30 फीसदी से अधिक पान बगानों पर फिर से कब्जा कर लिया है.
लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार की ओर से स्थानीय लोगों को धमकी दी गई है. कहा गया है कि पुलिस अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कर्रवाई करेगी. दूसरी ओर, उद्योग मंत्री ने सदन को सूचित किया है कि जिस 2,700 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था, उसे अब औद्योगिक विकास निगम (आईडीसीओ) के लैंड बैंक को दे दिया जाएगा. इसका अर्थ है कि आईडीसीओ को दी गई अधिग्रहित भूमि का उपयोग अन्य औद्योगिक परियोजनाओं के लिए बाद में किया जाएगा. पॉस्को की जगह अन्य उद्योगों को ये जमीन दे दी जाएगी.
सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंत्रा कहते हैं कि ये भूमि ग्रामीणों को वापस करनी चाहिए, क्योंकि ये जमीन फॉरेस्ट कैटेगरी के तहत आता है और वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत ग्रामीण ही भूमि प्राप्त करने के हकदार हैं. भारत सरकार की मीना गुप्त कमेटी ने भी सिफारिश की है कि ये जमीन ग्राम सभा द्वारा ग्रामीणों को दी जा सकती है. जो लोग भी 100 साल से इस जमीन पर खेती कर रहे है, उन्हें जमीन दी जानी चाहिए. कानूनी रूप से वन भूमि ग्रामीणों से जुड़ी है और वहां ऐसा कोई बड़ा उद्योग नहीं होना चाहिए जो तटीय वन और जैव विविधता को नष्ट करे.
बहरहाल, एक ओर जहां राज्य सरकार भूमि को अपने साथ बनाए रखने के लिए आगे बढ़ रही है, ताकि इसे आगे अन्य उद्योगों को दिया जा सके, वहीं ग्रामीण जमीन वापस लेने के लिए फिर से कमर कस चुके हैं. पॉस्को प्रतिरोधी समिति के अभय साहू कहते हैं कि हम नवीन पटनायक सरकार के भूमि बैंक बनाने के दुर्भाग्यपूर्ण घोषणा का विरोध करते हैं. जब पॉस्को परियोजना खत्म हो गई है, तो सरकार को चाहिए कि वह लोगों को अधिग्रहित भूमि वापस लौटाए. अगर सरकार ऐसा करने में विफल होती है, तो इस क्षेत्र के लोग अपनी जमीन पर हक के लिए एक और आंदोलन करेंगे और यह पॉस्को आंदोलन से अधिक तीव्र होगा.
ऐसे लोग भी अब अपने साथी ग्रामीणों के साथ खड़े हो गए हैं, जिन्होंने कभी पॉस्को का समर्थन किया था. ऐसे लोग भी अब आईडीसीओ को जमीन दिए जाने के सरकार के फैसले के खिलाफ हैं. गोविंदपुर गांव के चंदन मोहंती ने पॉस्को को अपनी जमीन स्वेच्छा से दे दी थी और 52,000 करोड़ रुपए की इस परियोजना के लिए सहयोग किया था. वे पॉस्को के ट्रांजिट शिविर में रह रहे थे.
मोहंती कहते है कि प्रशासन, पॉस्को और सरकार ने हमें धोखा दिया. हमने पहले चरण में ही अपनी जमीन दी थी. हम शिविर में रह रहे थे. 5 साल पहले तत्कालीन जिला कलेक्टर सत्यब्रत मलिक द्वारा कहा गया कि हम शिविर खाली कर दें, क्योंकि पॉस्को अब संयंत्र स्थापित नहीं करेगा. अगर सरकार को इसके बारे में पता था, तो सरकार इतने लंबे समय तक जमीन क्यों अपने पास रखी? राज्य सरकार को जितनी जल्दी हो सके, हमें भूमि वापस करनी चाहिए.
काटे गए पेड़ों का हिसाब कौन देगा
2012-13 के दौरान भूमि अधिग्रहण के समय, जिला प्रशासन और आईडीसीओ के अधिकारियों ने पाराद्वीप तट के पास वन क्षेत्र के 8 लाख वृक्षों को काट दिया था. स्थानीय लोगों ने जब विरोध किया, तो उन्हें बेरहमी से पीटा गया और जंगल से बेदखल किया गया. स्थानीय लोग दावा करते हैं कि पेड़ों का काटना अवैध था. उनके पास पर्यावरण और वन मंत्रालय की अनुमति नहीं थी.
ग्रामीण पूछ रहे हैं कि तटीय वातावरण में पर्यावरण को हुई इस अपूर्णीय क्षति के लिए दोषी कौन है? पॉस्को प्रतिरोध समिति के अभय साहू कहते हैं कि यह विशेष क्षेत्र चक्रवात वाला क्षेत्र है, इसलिए यहां वृक्षों का बड़ा महत्व है. अब जब वृक्ष काट दिए गए हैं, तो ऐसे में यह क्षेत्र अब चक्रवात और समुद्री ज्वार के खतरे की जद में है. राज्य सरकार को युद्ध स्तर पर पेड़ लगाने चाहिए और इसकी लागत कंपनी से ही ली जानी चाहिए.
बारह वर्षों के बाद, हालात फिर से वहीं वापस आ गए है, जहां से शुरुआत हुई थी. सरकार अधिग्रहीत भूमि पर उद्योग के आने का इंतजार कर रही है, वहीं ग्रामीण अपनी जमीन वापस लेने के लिए प्रतिबद्ध हैं. इस बार भी ग्रामीणों को राज्य से लड़ना होगा. लेकिन सरकार को सोचना होगा कि वह जन आकांक्षा के खिलाफ जा कर उद्योग लगाएगी या जनता की आवाज को सुनेगी.