सिडबी ने मुम्बई में समुद्र के किनारे शाही कोठी लीज़ पर लेने के लिए टेंडर आमंत्रित किया है. प्रकाशित विज्ञापन में कहा गया है कि शाही कोठी मुम्बई के वरली, बांद्रा, कार्टर रोड या बैंड स्टैंड में समुद्र के सामने हो. शर्त यह है कि जहां कोठी हो, वहां बारिश के समय पानी नहीं जमता हो और ट्रैफिक जाम कभी नहीं होता हो. कोठी के साथ नौकरों के रहने की भी अलग व्यवस्था हो. इसके अलावा कोठी में 24 घंटे बिजली आपूर्ति की गारंटी, पावर बैकअप, लाइट-पंखे-एसी-गीजर के लिए समुचित पावर कनेक्शन और आंतरिक सभी साज-सज्जा से सुसज्जित हो. आप विज्ञापन देखेंगे तो आपको लगेगा कि यह शाही कोठी किसी अरब शेख या बड़े पूंजीपति के स्वागत के लिए किराए पर ली जा रही है. इसका किराया कितना होगा, इसके बारे में आपको कुछ बताने की जरूरत नहीं और यह बताने की जरूरत भी नहीं कि इतनी महंगी कोठी धनपशु अरब शेख या पूंजीपति के बार-बार आने और उनका बार-बार स्वागत करने के इरादे से ही ली जा रही होगी. देश के धन पर नौकरशाहों की ये अय्याशियां मोदी सरकार की ईमानदारी की कैसी सनद हैं, इसे समझना मुश्किल है.
सिडबी के चेयरमैन मोहम्मद मुस्तफा की मनमानी सारी हदें पार कर रही हैं. मुस्तफा उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अफसर हैं. केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर अगस्त 2017 में वे सिडबी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक बने. इन नौ महीनों में सिडबी को खोखला करने के ऐतिहासिक कारनामे हुए, जिनकी कुछ बानगियां आपने ऊपर देखीं. केंद्र सरकार खुद ही इतनी अराजक है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों में विशेषज्ञ बैंकर को अध्यक्ष न बनाकर आईएएस अफसरों को बिठा रही है. आईएएस अफसर अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा कर भाग जाते हैं और अपने पीछे भ्रष्टाचार, अराजकता और कुसंस्कार छोड़ जाते हैं. सिडबी में चेयरमैन मोहम्मद मुस्तफा की मनमानी यहां तक है कि उन्होंने सिडबी के अर्थशास्त्री (इकोनॉमिस्ट) रवींद्र कुमार दास के होते हुए 60 लाख सालाना मानदेय पर चीफ इकोनॉमिस्ट पद पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाल दिया. सिडबी की वेबसाइट पर यह विज्ञापन एक अप्रैल 2018 को जारी हुआ. दो मई आवेदन दाखिल करने की आखिरी तारीख थी. सिडबी में पहले इकोनॉमिस्ट कैडर (संवर्ग) के अधिकारियों की भर्ती की गई थी और इस संवर्ग में एक मुख्य महाप्रबंधक, दो महाप्रबंधक, एक उपमहाप्रबंधक और एक सहायक महाप्रबंधक स्तर के अधिकारी कार्यरत थे. लेकिन इस कैडर को खत्म करके इसे सामान्य संवर्ग में डाल दिया गया. ऐसे में अलग से ‘चीफ इकोनॉमिस्ट’ नियुक्त करने का क्या औचित्य है? यह सवाल सिडबी के गलियारे में गूंज रहा है.