इन दिनों ममता और प्रशांत किशोर पत्रकारों के निशाने पर हैं ।बड़ी असमंजस की स्थिति है सबके सामने । ममता की छवि और प्रशांत किशोर दोनों की छवियां और भूमिकाएं अलग अलग हैं । लेकिन कहते हैं, ममता में आस या कहिए राजनीतिक महत्वाकांक्षा , प्रशांत किशोर ने जगाई है । प्रशांत किशोर को पल भर के लिए हटा भी दें तो प. बंगाल में अकूत बहुमत का रथ अकेले ममता लेकर चली हैं और तमाम दलों को धता बताते हुए मोदी शाह की जोड़ी को ऐसा सबक दिया कि पूरे बंगाल में एक ही- यह आवाज आई- दीदी ही हैं जो पूरे देश से इनका सफाया कर सकती हैं । क्या गलत है इसमें ? सब स्वाभाविक है ।अगर प . बंगाल दीदी को प्रधानमंत्री पद की ओर ठेलता है तो किस नजरिए से इसे गलत कहेंगे । पहली बात यह ।दूसरा कि ममता आजकल देश के बड़े नेताओं से मिलने के क्रम में हैं ।वे कांग्रेस पर हमले कर रही हैं । सवाल है कि वे ऐसा क्यों कर रही हैं ? उन्होंने सिर्फ एक बार कहा है कि कहां है यूपीए ।जब कांग्रेस के पास भरपूर समय होने के बाद भी विपक्षी एकता के लिए उसकी ओर से कोई हलचल नहीं है तो कोई कब तक इंतजार करें ।तब जबकि आये दिन विपक्ष को उसकी निष्क्रियता और उदासीनता के लिए कोसा जा रहा है ।एक बड़े पत्रकार ने तो मजेदार बात कही कि सबको कांग्रेस चाहिए बस कांग्रेस को कांग्रेस नहीं चाहिए । कोई भौचक हो न हो पर हमें तो शर्म आती है कि नेहरू गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन की पार्टी आज किन तीन नौसीखिया लोगों की ‘जेबी’ पार्टी बन गयी है । चलिए उसमें भी किसी हद तक एतराज छोड़ दें तो यह पार्टी कर क्या रही है । भाजपा ने इस पार्टी को जितना बदनाम करना था ,कर दिया ।यदि मेरी छवि पर कोई बट्टा लगाए तो मेरे सामने दो विकल्प हैं या तो मैं उसे मजबूत जवाब दूं और अपनी पहले से ज्यादा मजबूत छवि बनाऊं अन्यथा स्वयं को खत्म कर लूं । कांग्रेस यथावत है । क्यों यथावत है क्योंकि उसे समस्या का पता ही नहीं चल पा रहा है ।वह यदि अंतिम पायदान पर खड़े देश के आदमी की नजर से खुद की परख करे तो उसे कुछ समझ भी आए ।पर इसमें भी मुझे शक है । क्योंकि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व न केवल गैर अनुभवी है , बल्कि उसने भारत को न देखा है न उसकी नब्ज पहचानी है । पांच सितारा संस्कृति में पले बढ़े इन लोगों को सिर्फ ट्विटर की भाषा और उससे ही राजनीति करनी आती है ।यह साक्षात दिख रहा है । हैरानी सिर्फ इतनी है कि सब कुछ जानते हुए भी प्रबुद्धजनों के लिए कांग्रेस की बगल लेना मजबूरी है । लेकिन यह संगत मोदी शाह की निर्मम और लोकतंत्र की तमाम व्यवस्थाओं को ध्वस्त करती सरकार की नजर से कितनी किंकर्तव्यविमूढ़ नजर आती है ।तो क्या ऐसे में प्रबुद्धजनों को कोसा जाए ।ये सारी स्थितियां देश देख रहा है । इसलिए ममता आगे बढ़ कर कुछ भी और कैसी भी पहल करना चाहती हैं तो किसी को ना-नुकुर क्यों करनी चाहिए । कांग्रेस में दम होगा तो वह अपना स्थान स्वयं हासिल कर लेगी ।हां,यह जरूर है कि यह समय इन सबके लिए माकूल नहीं है ।पर उसके लिए ममता से ज्यादा कांग्रेस जिम्मेदार है । यदि कहीं कांग्रेस है तो !

तीसरी बात प्रशांत किशोर को लेकर है। एक समय था जब प्रशांत किशोर की तूती बोलती थी ।आज स्थिति यह है कि ये महाशय सबसे ज्यादा विवादास्पद हैं ।खुद को विवाद में लाने का श्रेय इनसे अलग और किसी के पास क्यों जाएगा । पत्रकार सबा नकवी ने प्रशांत किशोर और उनकी टीम की पूरी कार्यप्रणाली देखी है ।वे उनसे आज तक अभिभूत हैं ।वह एक पक्ष है लेकिन जेडीयू से उनका निकाला जाना फिर कांग्रेस के भीतर गहरे जुड़ कर वहां से निकाला जाना । एक के बाद एक बार प्रश्न पैदा कर रहा है ।आप अपना काम धंधा छोड़ना भी चाहते हैं फिर बंधे भी रहते हैं । राजनीति में जाना भी चाहते हैं पर कुछ स्पष्ट नहीं करते । यहां संशय होता है आप हैं कौन और चाहते क्या हैं ।जादूगरी क्या है आपकी । ममता से प्रशांत किशोर का जुड़ाव बहुत स्पष्ट नजर आ रहा है । ममता यदि प्रशांत किशोर के कहेनुसार चल रही हैं या उनकी सलाह पर चल रही हैं तो डूबना होगा तो डूबेंगी । त्रिपुरा, असम और गोवा में वे क्या करती हैं ये उनका गणित बताएगा । लेकिन कांग्रेस की निष्क्रियता और बंगाल में ममता की धूम तो समय ने तय की है । ममता में कमी है कि वे हिंदी स्पष्ट नहीं बोल सकतीं । लिंग की तो ऐसी तैसी कर देती हैं ।इस कमी को वे समझ कर दूर कर सकती हैं । सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति के लिए अपना सलाहकार किसे चुनती हैं ।सौ बात की एक बात यह है ।आज का समय अवसरवाद का है । राष्ट्रीय स्तर पर यदि कांग्रेस कार्यकर्ता पायेंगे कि उनकी कांग्रेस जड़वत हो गई है और दूसरी पार्टी मोदी शाह का विकल्प बन रही है तो वे कांग्रेस को धता बता देंगे ।तब भी कांग्रेस को समाप्त ही समझिए जैसा योगेन्द्र यादव ने शुरू में कहा भी था । इसलिए जो लोग ममता की सक्रियता को उछल कूद या उठापटक की संज्ञा दे रहे हैं उनसे निवेदन है कि एक दूसरे नजरिए से देखिए । त्रिपुरा गोवा में जो होना होगा ,वह होगा ही । ममता पर यह भी आरोप है कि वे बुझे हुए बल्बों को या कांग्रेसियों को अपनी पार्टी में ले रही हैं ।पर पहले से यशवंत सिन्हा जैसे लोग जो उनके साथ गये हैं वे ? कुल मिलाकर हमें जो लगता है वह उनकी या कहिए समय की मजबूरी है ।वह हो रहा है क्योंकि उसे होना चाहिए । एक बात बहुत स्पष्ट है कांग्रेस का आलाकमान राख का ढेर बन चुका है । प्रबुद्ध लोगों से अपील है राहुल गांधी की फिजूल स्तुति करना बंद करें । राहुल के चलते बहुत से लोग कांग्रेस से हटे हैं ।वह कल्पना लोक का व्यक्ति ज्यादा दिखता है ।

संतोष भारतीय के ‘लाउड इंडिया टीवी’ के अभय दुबे शो में इस बार अभय दुबे ने आरएसएस की विचारधारा का व्यापक विश्लेषण करते हुए यह भी कहा है कि अभी तक आरएसएस की संरचना को पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है ।वे आरएसएस के संभावित आज्ञापालक समाज में समता की जगह समरसता का सिद्धांत देखते हैं ।वे कहते हैं कि आरएसएस समता के स्थान पर समरसता का प्रतिपादन करना चाहता है ।वह ऐसा समाज बनाना चाहता है जिसमें विरोध, विद्रोह और क्रांति की कोई जगह न हो । अभय दुबे ने एक बात और मार्के की कही कि लोकतंत्र में संघर्ष और सहयोग के बीच एक समीकरण होता है । लेकिन यदि यह समीकरण सहयोग के पक्ष में बहुत ज्यादा झुक जाए तो लोकतंत्र प्राणहीन हो जाता है और सरकार निरंकुश हो जाती है । आंदोलनों पर वे कहते हैं कि आंदोलन वही कामयाब हो सकता है जिसका चरित्र सामुदायिक हो । पुराने तरीकों के आंदोलनों के लिए जमीन नहीं बची ।

पर अभय दुबे से एक बात हम कहना चाहेंगे जो हमारे मित्रों ने भी कही है कि संतोष भारतीय का सवाल पूरा सुन लिया करें ।कई बार आधे सवाल में ही वे जवाब देने लगते हैं ।ऐसे में सबसे ज्यादा झुंझलाहट सुनने वाले को होती है । संतोष जी को भी होती होगी पर वे करें तो क्या करें कहें तो किसे कहें 😂

आज सबसे बड़ा सवाल हर किसी की जुबान पर है यूपी में क्या होगा । मोदी योगी हारेंगे ?बबुआ जीतेगा ? क्या होगा ? समीकरण जब तक आज जैसे बने हुए हैं यानी किसान आंदोलन अपनी जगह है, अखिलेश – जयंत और छोटे दल साथ हैं साथ ही यदि अखिलेश की स्वीकार्यता इसी तरह बढ़ती रही तो योगी के बचने की कोई उम्मीद नहीं ।तब मोदी का क्या होगा । सात सालों में अपनी ना- तजुर्बेदारी से अपने ताबूत में जिन कीलों को ठोका है वे तो निकलने से रहीं ।समाज बांट दिया । परिवार बांट दिए । नफरत फैला दी ।सबका हिसाब तो वक्त लेगा ही । ममता को चाहिए वे फिर से दिल्ली आएं। केवल एक बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए आएं और साथ में प्रशांत किशोर और यशवंत सिन्हा जैसों को भी लाएं ।सबके सवालों के विस्तृत और सुलझे जवाब दें ताकि सारे बादल छंटे । मैदान में न राहुल हैं न पवार हैं , इसलिए ममता मजबूरी हैं ।इसे समझा जाए ।आज के लिए नहीं तो 2024 के लिए ।

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