हाथ कमंडल, गले में मनका, शरीर पर भगुवा आवरण…! जंगलों, पहाड़ों, एकांत जाना था, आप विध्वंस, आतंक और विनाश के मेले में जा बैठे…! वह दुनिया छोड़ी और सामान्य जीवन जीने वालों के बीच आ गए…! आए तो आए साथ में उस विध्वंसकारी सोच को भी ले आए… सिर्फ तरीका बदला, काम वही…! अब शब्दों से विध्वंस फैलाने की तरफ अग्रसर हैं…! इंसान को इंसान से दूर करने की कुत्सित कोशिशों को आगे बढ़ाने में अग्रसर हैं…! मस्जिद की इबादतों का सुकून आपको पसंद नहीं, अज़ान की आवाज़ें आपका सुकून हर रहा है, और तो और दरगाह, मजारों की जियारत में भी आपको असुरक्षा और खतरे नज़र आने लगे हैं…!
आपको ज्ञान देने वालों की अज्ञानता है, ये जानकारी नहीं जुटा पाए, जिस जगह पर जिन लोगों से खतरा महसूस किया जा रहा है, वह उन्हीं की कोम की मिल्कियत है…! इस सरकारी दफ्तर से उस शासकीय मुख्यालय तक फैली जमीनें ईश्वर के नाम की हुईं उन जायदाद का हिस्सा हैं, जिनको न बेचा जा सकता है, न खरीदा जा सकता है, बस कब्जाया जा सकता है…! और सरकारी कब्जों को हटाने में वह महकमा नाकाम और नाकारा रहा, जिसकी आंखों के सामने जायदाद कम होती गईं और वह अपनी चापलूस सियासत में ही मसरूफ रहा…!
एक बड़े इलाके का प्रतिनिधित्व करने की जिम्मेदारी शायद इसलिए दे गई थी कि सियासी धोखों से पछताए लोग जंगल रास आने वाले लोगों पर भरोसा कर बैठे थे…! उम्मीद थी कि मोह माया त्यागे शख्स से कुछ बेहतर सूरत बन पाएगी…! लेकिन अदालती दौड़, अस्पतालों की हाजिरी से बचे समय को महज इसको उसको बुरा निरूपित करने में गुजार देना कहां तक उचित है…! ये भी शायद उन्हीं अज्ञानी ज्ञानवानों का दिया हुआ गुर है, जो क्षेत्र के लोगों की आकांक्षाओं, अपेक्षाओं और जरूरत से ध्यान भटकाने का अचूक हथियार बताकर आपके हाथों में थमा चुके हैं…! इस बीच वे ये बताना शायद भूल गए कि समय स्थिर नहीं रहने वाला, बीत रहा है और उसके पूरा होने पर एक और चुनाव प्रक्रिया से गुजरना होगा, तब गिनाने के आपके खाली हाथ होंगे, ज़ुबान की तल्खी हमेशा काम नहीं आएगी….!
पुछल्ला
अब साहब की मौज…!
जमानत भी उनके हाथ। डंडा बरसाई भी उनका अधिकार। जिले में रहने या न रहने की इजाजत भी उन्हीं के हाथ। चौराहों, गलियों और छिपे रास्तों पर खड़े सुरक्षा वीरों का चैकिंग अभियान ही कम नहीं था। असामाजिक तत्वों, गुंडों, बदमाशों और समाज के खतरा कहे जाने वालों के इलाज के लिए तैयार की जा रही व्यवस्था आम, निर्दोष और मासूम लोगों के लिए मुश्किल न बने, इसके सभी पहलुओं पर भी लगे हाथ विचार कर लिया जाना चाहिए।