कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि वर्तमान में पार्टी की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण है, पार्टी पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का लेबल. इसे लेकर भाजपा भी लगातार कांग्रेस पर मुस्लिम परस्त पार्टी होने का आक्षेप लगाती आई है. 2014 में हुई बड़ी हार के बाद जो एंटनी कमेटी गठित की गई थी, उसने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कांग्रेस की छवि हिंदू विरोधी पार्टी की बन गई है, जिसे दूर करने की जरूरत है. अब लगता है कि राहुल गांधी और उनके सलाहकारों ने एंटनी कमेटी की सिफारिशों पर गंभीरता से अमल करना शुरू कर दिया है. हालांकि, वर्तमान समय में देश और समाज पर हिन्दुत्ववादी ताकतों का बढ़ता वर्चस्व इसके पीछे की एक दूसरी वजह है. बताया जाता है कि मध्य प्रदेश में भी चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी को मंदिर-मंदिर घुमाने के लिए एक लम्बी-चौड़ी लिस्ट बनाई गई है, जहां आने वाले महीनों में वे घूमते नजर आएंगे. वहीं, राज्य में कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व भी राहुल गांधी के इसी लाइन पर चलता हुआ नजर आ रहा है. इसमें मध्य प्रदेश कांग्रेस के तीनों प्रमुख नेता शामिल हैं.

प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलने के बाद कमलनाथ सबसे पहले भोपाल के गुफा मंदिर और दतिया के पीतांबरा पीठ मंदिर गए थे, इस दौरान उन्होंने कहा था कि ‘मंदिर जाने पर भाजपा का कॉपीराइट नहीं है.’ इसी तरह चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने चुनाव अभियान की शुरुआत महाकालेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना और अभिषेक करने के बाद की थी. इस दौरान वे उज्जैन में महाकाल के दर्शन के लिए भी जा चुके हैं. इस पर कांग्रेस प्रवक्ता द्वारा बाकायदा दलील दी गई थी कि सिंधिया धार्मिक व्यक्ति हैं और प्रदेश में 14 साल से अधिक समय तक सत्ता में रही भाजपा को सत्ता से उखाड़ने के लिए देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिए वे प्रदेश के कई मंदिरों में जाने वाले हैं. इस सम्बन्ध में खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कह चुके हैं कि ‘हिंदू धर्म भाजपा की बपौती नहीं है और न ही भाजपा ने हिंदू धर्म का ठेका लिया है, हिंदू धर्म हिन्दुस्तान का धर्म है.’ इसी तरह से सूबे में कांग्रेस के एक और बड़े नेता दिग्विजय सिंह ने अपने समन्वय यात्रा की शुरुआत ओरछा के राम राजा मंदिर से की थी. पिछले दिनों जब राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर थे, तो दिग्विजय सिंह ने इच्छा जताई थी कि अगले साल वे भी कैलाश मानसरोवर जाना चाहते हैं. इससे पहले दिग्विजय सिंह अपनी बहुचर्चित नर्मदा यात्रा पूरी कर चुके हैं, जिसे भले ही वे निजी यात्रा बताते रहे हों, लेकिन यह एक तरह से छवि बदलने की कवायद भी थी.

 

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