आज जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ तब दिल्ली के चारो और की सीमा पर युद्ध सदृश स्तिथी जारी है और हज़ारो किसान तथाकथित कृषी सुधार बिल के खिलाफ चलो दिल्ली के कुच में दिल्ली के चारो और की सीमा पर रोके जा रहे हैं और पुलिस की आसूँ गैस और पानी के बौछार सह कर दिल्ली के तरफ बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ! किसी ने लीखा है कि शेतकरी आंदोलन के बारे में महाराष्ट्र का इतिहास में प्रथम बार हिस्सेदारी नहीं के बराबर है !

और यह बात सही भी है क्योंकि 90 के दशक के शुरुआत में अपनी विदेश सेवा के अकूत धन देने वाले पद को त्याग कर के(यह बात ऊनके अंध भक्तो द्वारा फैलाई गई थी!) शरद जोशी नाम के एक आदमी पुणे के पास चाकण मे प्याज के दामके आन्दोलन की शुरुआत हुई थी और वह उसका नेतृत्व कर रहे थे समाजवादी अपनी आदत के अनुसार(समाजवादी पार्टी के लोगों ने आजादी के आंदोलन के बाद ज्यादातर यही काम किया है और आज वह मुजियम पिस बनकर बैठे हैं यह ऊनके उसी करतूत का फल है !) उस आन्दोलन को समर्थन देने के लिए विशेष रूप से नाना साहब गोरे क्योकिं उन्होंने खुद मुझे अपने अनुभव से अवगत कराया है इसलिए जानबुझकर उनका नाम लेकर लिख रहा हूँ !

 

उसके पहले भी कमुनिस्ट,शेतकरी कामगार,लाल निशान,सोशलिस्ट और जनसंघ तक की किसान ईकाई के रूप मे विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे संघ या समितियां गठित थी और वह अपने अपने धंग्से कुछ मुद्दोपर आन्दोलन करते थे !
मुख्यतः विदर्भ में कपास के मूल्यो को लेकर और पस्चिमी महाराष्ट्र में गन्ना किसानों के आन्दोलन चल रहे थे ! लेकिन शरद जोशी नाम का तुफान आया (वैसा ही एक तूफ़ान मुम्बई के कामगारो में डॉ दत्ता सामंत नामका उसी समय और बिल्कुल उसी तरह जारी था और उसने भी अपनी मौत के साथ कामगार अंदोलन की भी बली ले ली है !)

और लगने लगा था कि इसके पहले कभी कोई किसान की बात नही कि होगी ! मीडिया में तो वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से ज्यादा चर्चित हो गये थे ! और उनका प्रभाव देखकर मेरे अपने साथी!जयप्रकाश आन्दोलन के कुछ मित्र जो खाली हाथ बैठे थे (जैसे किसी कारखानेके कामगार कारखाना बंद होने के कारण खाली हाथ बैठते है वैसे)! तो उस्मे का एक अच्छा खासा हिस्सा जोशी जी को संपूर्ण क्रांती समझाने के लिए विशेष रूप से बौद्धिक मदद करने के लिए विशेष रूप से गये थे और यह बात वह खुद गर्व से कहा करते थे !

लेकिन पता नहीं कौन किसका बौद्धिक मदद लिया है ! क्योकि शरद जोशी फ्री मार्केट के और खुली अर्थव्यवस्था के सबसे बडे हिमायत करने वाले आदमी थे ! नरसिह राव साहब के प्रधान-मंत्री काल में ही मुझे अच्छी तरह याद आ रही है की उन्होने लाल किले के पीछे डंकल प्रस्ताव तुरंत लागु करने के लिए विशेष रूप से एक रैली आयोजित की थी ! उस समय अन्य किसी भी नेता को इतना खुलकर मुक्त अर्थव्यवस्था के लिए वकालत करते हुए नहीं देखा था! जितना कि शरद जोशी नाम के व्यक्ति को देखा हूँ ! और उसका जादू इतना फैल गया था कि उसे किसानो के पंच परमेश्वर (मराठी में पंचप्राण!) तक कहा जाने लगा था !

पंच प्राण शब्द के बाद ही शायद महाराष्ट्र के किसानो ने अपने प्राण त्यागने की शुरुआत उनके जीवन काल में ही शुरू कर दी थी और कभी चुनाव नहीं लढने के घोषणा करने वाले जब चुनाव में नहीं जीत सका तो शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की कृपा से राज्यसभा सदस्य बनें !और उस सभा की एकमात्र रेकोर्ड की हूई उप्लब्धी है हमारे संविधान के भीतर से समाजवाद शब्द को हटाने का ऊनके अकेले का प्रायवेट बील !

हालाँकि वी पी सिंह ने उन्हे किसानो की उपज के दाम वाले कमिटी की जिम्मेदारी भी सौपी थी लेकिन मुझे नहीं मालूम कि उस पदपर रहते हुए उन्होंने कोई खास काम किया था ! क्योंकि अगर उन्होने दाम बांधने वाली इतनी महत्वपुर्ण बात जो की उनके अपने ही आन्दोलन का आत्मा या सबसे प्रमुख माँग थी संपुर्ण आन्दोलन कैशक्रॉप के खेतीके केंद्र में ही खडा था !

मेरी अपने घर की महिलाओं को दिन में कभीभी गाँव में इधर-उधर आते-जाते नहीं देखा है लेकिन वह भी ट्राकटर के ट्रॉलियां में प्रथम बार बैठकर निफाड,सटाणा,मालेगाँव,नासिक की रेलियो मे डोंगरी शेत माझे वेणु किती बेणू किती यह मेरे मराठी भाषा के कवी मित्र नारायण सुर्वे की कविता को लाखो की संख्या में गाते हुए सभा संमेलन और मोर्चा मे भाग लेते हुए देखा है और वह अपने खुद के घर के खाना खाने के बाद या वहा जाकर खाने-पीने के पैसे देकर और वपसिमे शरद जोशी जी के 25-25 रूपयेके कैलेंडर खरीद कर हमारे घरों की दिवारो पर मैने खुद देखा है !

शायद महाराष्ट्र निर्मीती के 60 के दशक के दौरान हुए आन्दोलन के बाद यह दुसरा आन्दोलन था जिसमे किसान तन मन धन से सामील हूआ था ! और यही वजह है कि उनसे मोह भंग होने के कारण दोबारा आन्दोलन करने के बजाय आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया गया है और इसमे शरद जोशी जी भी जिम्मेदार है ! क्योंकि जिस तरह से मुम्बई के कामगारो की बात डॉ दत्ता सामंत नामके आदमी ने उठाई थी बिल्कुल उसी समय किसानो मे शरद जोशी बेतरतीब विचार से किसानो को भरमाने की बात कर रहे थे !

जैसा कि किसि ने इन दोनों को सुपारी देकर भेजा था और वह अपना काम बखूबी निभाकर चले गए ! मेरी इस बात से मेरे अपने ही कुछ मित्रों को बहुत बुरा लगने वाला है मुझे मालुम है लेकिन मैने कुछ दिनों से मेरे मन में जो भी कुछ उबल रहा है उसे निकाल बाहर करने का जुनून सवार हुआ है और वह मै आज कर रहा हूँ !

उनका और अन्ना हजारे के आंदोलन के बारे में मीडिया की उदारता के कारण मुझे आज भी सोचकर हैरानी की बात लगती है क्योंकि महाराष्ट्र में और भी कई लोग है जो अपनी जिंदगी खपाकर काफी अच्छे काम कर रहे हैं और यह लोग महाराष्ट्र में आने के पहले से कर रहे हैं और मीडिया के कानो मे जू नहीं रेंगी लेकिन एक विदेश से दुसरा अपनी सेना की नौकरी से रिटायर होने के बाद और इतने जल्द से जल्द मिडिया में छा गए थे तो मुझे अपने 50 साल के जीवन में याद नहीं आ रहा है ! और मुझे कभि भी दोनो लोगों ने नहीं प्रभावीत किया था और नहीं मै अपने जीवन में इन दोनों को मिला था ! उल्टा एकाध बार मौका आया था तो मैंने खुद ही टाल दिया !

मुख्य बात है इन दोनों ने महाराष्ट्र के जनमानस को आनेवाले 50 साल के लिए विशेष रूप से आत्मविश्वास हीन भावना से ग्रसित करने का काम किया है! और आज देश के सभी प्रदेशों के किसान भारत के वर्तमान सरकार ने पिछ्ली संसद सत्र में जो किसान विरोधी कानुन लाये हैं उसके खिलाफ इतनी थंड के दौरान भी चलो दिल्ली के नारे के साथ सरकार के विरोध के बावजूद जिस शिद्दत के साथ दिख रहे हैं सबसे पहले उन्हे क्रांतिकारी अभिवादन करता हूँ ! और हमारे महाराष्ट्र के किसान भाई भी अपना खोया हुआ आत्म विश्वास दोबारा प्राप्त कर के इस लडाई में शामिल होंगे इस आशा के साथ !

डॉ सुरेश खैरनार

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