नीतीश कुमार ने पेशेवर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को अपने दल की सदस्यता दिलवाते वक्त कहा कि ‘पीके दल का भावी चेहरा हैं.’ नीतीश कुमार की यह घोषणा जद (यू) के कई ‘चेहरों’ के रंग उड़ाने के लिए काफी थी. जब एक संवाददाता ने नीतीश कुमार के खासमखास सांसद आरसीपी से उसी दिन पूछा कि अब तो दल में ‘आपका कद नीचे हो जाएगा’, तो उनका जवाब था ‘अरे, अब कितना नीचे होगा, चार फीट पांच ईंच तो है ही.’ लेकिन यह जद (यू) के किसी एक नेता की बात नहीं है, बहुतों के कद छोटे कर दिए गए या हो गए हैं. दल सुप्रीमो नीतीश कुमार ने एनडीए में सीटों की हिस्सेदारी को लेकर भाजपा या एनडीए के अन्य घटक दलों से बातचीत करने के लिए पीके को ही अधिकृत किया है. हालांकि उनके साथ पार्टी के प्रधान महासचिव केसी त्यागी भी हैं. यह तो तय है कि संसदीय और उसके बाद अगले विधानसभा चुनावों को लेकर चुनाव अभियान की रणनीति, पार्टी के कार्यक्रम आदि सारे राजनीतिक मसलों की जिम्मेेदारी पीके की ही होनी है. उन्हें सुप्रीमो नीतीश कुमार के आसपास की अनेक खाली जगहों को तो भरना ही है, साथ ही कई चेहरों को ‘रिप्लेस’ भी करना है. यह काम वे कैसे करते हैं, यह लाख टके का सवाल है. यह काम सहज तो नहीं ही है, इसकी राजनीतिक प्रतिक्रिया के बारे में भी कुछ कहना कठिन है.
पीके जद (यू) को बनाएंगे ‘बड़े भाई’
प्रशांत किशोर के लिए फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती दल के लिए एनडीए में अधिक से अधिक सीटें हासिल करने की है. नीतीश कुमार और उनके दल का मानना रहा है कि बिहार एनडीए में जून 2013 तक वे ‘बड़े भाई’ की भूमिका में रहे हैं. जद (यू) नेताओं का ऐसा कहना है कि संसदीय चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, जद (यू) हमेशा अधिक सीटें लाती रही है, उस हैसियत की रक्षा की जाए. इसके लिए संसदीय चुनावों में इन्हें भाजपा से कम से कम एक सीट तो अधिक मिलनी ही चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता है, तो कम से कम भाजपा के बराबर की सीटें तो इस दल को चाहिए ही. भाजपा से अधिक सीट की जद (यू) की मांग पहले ही खारिज हो चुकी है. अब मामला बराबर-बराबर की सीट पर आकर टिक गया है. लेकिन भाजपा इस पर भी सहमत नहीं है. भाजपा नेतृत्व का मानना है कि केंद्र में उसकी सरकार है, इसलिए संसदीय चुनाव में ‘बड़े भाई’ की भूमिका में तो वही है. उसने एक फॉर्मूला दिया है, जिसके मुताबिक बिहार की 40 संसदीय सीटों में से 20 पर भाजपा के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे, जबकि बाकी 20 सीटों पर जद (यू) व अन्य घटक दल. जद (यू) को इस पर भी आपत्ति है. अगर उसे वह मान भी लेती है, तो उसकी अपेक्षा है कि वह कम से कम 17 सीट लड़े. बाकी तीन सीटें लोक जनशक्ति पार्टी को दे दी जाएं. उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और उसके बागी सांसद अरुण कुमार को वह एनडीए में बनाए रखने के पक्ष में नहीं है. इससे लोजपा तो सहमत नहीं ही है, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी नहीं चाहता कि रालोसपा को एनडीए से बाहर का रास्ता दिखाया जाए. उसका मानना है कि इससे उपेन्द्र कुशवाहा के महागठबंधन में जाने का रास्ता तो साफ हो ही जाएगा, साथ ही पिछड़ा मतदाता समूह के एक तबके में गलत संदेश जाएगा. पीके के लिए इस हालत में नीतीश कुमार की इच्छा के अनुरूप उनके राजनीतिक वक़त की रक्षा आसान नहीं होगा.