भारत में महिलाओं को लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं में 33 फीसद आरक्षण दिए जाने का मामला एक बार फिर बहस के केंद्र में है. भारतीय संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नाममात्र है. इस मामले में यह अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से काफी पीछे है. यह देखना दिलचस्प होगा कि दुनिया के दूसरे देश महिलाओं की सत्ता में भागीदारी के मामले में कहां खड़े हैं? कौन से ऐसे देश हैं, जहां महिलाओं को आरक्षण मिला हुआ है? दुनिया के विकसित देश जो खुद को लैंगिक समानता का योद्धा मानते हैं, वे कहां खड़े हैं? विकसित और विकासशील देशों में महिलाओं की सत्ता में किस तरह की भागीदारी है? भारत में स्थानीय निकायों में महिलाओं को जो अधिकतम भागीदारी का प्रावधान दिया गया है, उसका क्या नतीजा निकला है?

दरअसल सत्ता में महिलाओं की भागीदारी का संघर्ष लैंगिक समानता का संघर्ष है. इस संघर्ष का एक लम्बा इतिहास रहा है. इसके पक्ष और विपक्ष में दलीलें भी दी जाती रही हैं. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि जब तक आधी आबादी को किसी भी देश की सत्ता में और अहम फैसलों में वाजिब भागीदारी नहीं दी जाएगी, तब तक लोकतंत्र अपूर्ण और त्रुटिपूर्ण रहेगा. दुनिया के कई देशों ने महिलाओं को सत्ता में भागीदारी देने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है. कई देश ऐसे हैं, जहां सियासी दल अपने तौर पर ही महिलाओं को प्रतिनिधित्व देते हैं और कई देश ऐसे हैं, जहां इन दोनों में से कोई भी प्रणाली लागू नहीं है. भारत भी ऐसे ही देशों में से एक है. लोकतंत्र में महिलाओं से भेदभाव के इतिहास पर नज़र डालें तो यह पता चलेगा कि पिछली सदी के पहले पचास वर्षों तक कुछ ही देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार हासिल था. ज़ाहिर है यह भेदभाव पितृसत्ता के कारण था, लेकिन धीरे-धीरे ज़माने ने करवट लिया और महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए लड़ना शुरू किया. नतीजतन उन्हें वोट देने का अधिकार तो मिल गया, लेकिन सत्ता में भागीदारी अब भी दूर की कौड़ी बनी रही.

महिला अधिकारों के मामले में विकासशील देशों का रिकॉर्ड बहुत बुरा है, लेकिन यह तस्वीर का केवल एक रुख है. ऐसा नहीं है कि पुरुषवादी मानसिकता पर केवल विकासशील देशों का ही एकाधिकार है. यदि दुनिया के संसदों में महिलाओं की भागीदारी को पैमाना माना जाए, तो कह सकते हैं कि इस हमाम में सभी नंगे हैं. इस लिस्ट में सबसे हैरान करने वाली मौजूदगी दुनिया में लोकतंत्र के अलंबरदार और अभिभावक होने का दावा करने वाले देश अमेरिका की है. यहां कांग्रेस में महिलाओं की भागीदारी केवल 19.4 फीसद है. वहीं दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत भी इस मामले में सबसे फिसड्‌डी देशों की पंक्ति में खड़ा है. यहां संसद के निचले सदन में महिलाओं की भागीदारी केवल 11.4 फीसद है. ज़ाहिर है जब दुनिया के दो महान लोकतंत्र अपनी आबादी के आधे हिस्से को देश के फैसलों से दूर रखते हैं, तो यह किसी भी तरह से लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं हो सकता है.

 

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