अब मोदी क्या करेंगे ? क्या ‘आएगा तो मोदी ही’ का रेकॉर्ड फिर से देश में बजवाना शुरु करेंगे । यह लाख टके का सवाल इसलिए कि देश में बड़े पैमाने पर हलचल होने लगी है। उनका सपना ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ चूर चूर हो रहा है । पप्पू डिस्टिंक्शन से पास ही नहीं हो रहा एक नयी रोशनी देने लगा है । मोदी की समझ से परे है कि यह जो हो रहा है वह कैसे हो रहा है और क्यों हो रहा है । आठ साल से जिस कांग्रेस को हमने अवाक और गूंगी बना कर छोड़ दिया था वह फिर से उठने कैसे लगी और इस कदर ! क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि मोदी अपने शयनकक्ष में खुद के ही बाल नोंचने लगें और चीजों को उठा उठा कर पटकने लगें । जैसा अक्सर आप फिल्मों में देखते हैं । कुछ भी हो सकता है क्योंकि मोदी की सत्ता लोकतांत्रिक तरीके से जरूर आयी लेकिन छल कपट झूठ फरेब का मुलम्मा चढ़ा कर एक विशाल पहाड़ को खड़ा करके । मोदी का अतीत बताता है कि ‘हार’ शब्द को झूठ समझ कर उन्होंने जिस अहंकार को अपने भीतर पोसा वह कभी दरक नहीं सकता । उसी अहंकार ने मूर्खता जनित वाक्य गढ़ा — कांग्रेस मुक्त भारत । इन दिनों हर दूसरे दिन गुजरात जाते मोदी के चेहरे को आप आसानी से पढ़ सकते हैं । लोकतंत्र में सबसे बड़ी पहचान किसी भी व्यक्ति और दल की यह होती है कि वह अपने कर्म से जिंदा रहता है । ठीक उसी तरह जैसे होशियार बालक इम्तिहान देकर अगले दिन के इम्तिहान के लिए खुद को किताबों में गढ़ा नहीं देता वह जाकर फिल्म देखता है और खुद को तरोताजा करता है । फिर नतीजे में अव्वल आता है । यह सिर्फ इसलिए होता है कि वह साल भर निरंतर पढ़ता है । हर वक्त खुद को ‘अपडेट’ रखता है । लोकतंत्र की चुनाव प्रक्रिया में भी ऐसा हो सकता है । जो दल और नेता निरंतर लोकसेवा में जुटा रहे वह चुनाव प्रचार में भाग ले न ले , भाषण दे न दे वह अव्वल आ सकता है क्योंकि जनता उसे और उसके काम को जानती है । फिर भी आम आदमी पार्टी खुद को प्रचार में झोंक रही है । अपने किये के प्रचार में । लेकिन मोदी जी के पास क्या है झूठ के मुलम्मे के सिवा । देश के लिए मजबूत नेता भीतर से इस कदर डरा हो सकता है यह आज के मोदी प्रमाण हैं । कांग्रेस का मजबूती से उठना, राहुल गांधी का मजबूत होना, कांग्रेस में अध्यक्ष पद का चुनाव होना, ‘आप’ का गुजरात में (दिल्ली और पंजाब में धांसू जीत के आलोक में) स्पेस लेते जाना मोदी के लिए उनकी प्रतिष्ठा को चुनौती देने जैसा है । निकट भविष्य में और 2024 के आम चुनाव से पहले गुजरात के अलावा कई राज्यों में चुनाव होने हैं । ये चुनाव आज के हालात की दिशा तय करने वाले होंगे , स्पष्ट है ।
आठ साल कांग्रेस ने गंवाए क्या हम यह मानें या यह कहें कि समय के चक्र में सब द्रष्टव्य है । सवाल यह भी तो हो सकता है कि समय किसी क्रूर और अहंकारी व्यक्ति को गढ़ता ही क्यों है । जो भी हो देश के विवेक की परीक्षा और धैर्य के लिए ये आठ साल बड़े रोचक रहे । देश अब टकटकी लगा कर कांग्रेस की यात्रा और राहुल गांधी को देख रहा है । प्रश्न आज भी कई हैं चाहे राहुल गांधी से ,चाहे कांग्रेस के वजूद से , चाहे समूचे विपक्ष से या चाहे उन लोगों से जो देश को दोबारा से पटरी पर लाना चाहते हैं । वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग कांग्रेस के शुभचिंतक होते हुए भी दूसरे थोथे पत्रकारों की तरह कांग्रेस की आरती उतारने में नहीं लग रहे । वे प्रश्न कर रहे हैं कि कांग्रेस की यात्रा की सफलता और केंद्रीय कांग्रेस की कार्यप्रणाली की विफलता (विशेष तौर पर राजस्थान में हाल ही में हुई उठापटक के संदर्भ में) पर कांग्रेस का मंथन क्या है । उनका स्पष्ट मानना है कि यदि कांग्रेस हाईकमान का ढीलापन और विफलताएं ऐसी ही रहीं तो राहुल गांधी की यात्रा के कुछ परिणाम नहीं निकलने वाले । वे यह भी प्रश्न उठाते हैं कि राहुल गांधी इस यात्रा को राजनीतिक मोड़ देते हैं या नहीं । उनके अनुसार राहुल गांधी को यह स्पष्ट रूप से कहना होगा कि आज की इस सत्ता को उखाड़ फेंकना ही एक मात्र विकल्प है और इसके लिए मैं आपका समर्थन लेने निकला हूं। लेकिन कांग्रेस और राहुल गांधी की ओर से वही- देश को जोड़ना और नफ़रत की आग को मिटाना का राग आलापा जा रहा है । हमें लगता है श्रवण गर्ग की बात में दम है । यदि इस यात्रा को राजनीतिक नहीं बनाया गया तो उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा जितना राजनीतिक आह्वान के साथ जबरदस्त तरीके से पड़ता । मोदी और भाजपा के विकल्प के लिए यह आह्वान नितांत जरूरी है । इस यात्रा को और विस्तार से समझने के लिए ‘सत्य हिंदी’ ने सुहैल सेठ का इंटरव्यू लिया है । मनोवैज्ञानिक रूप से समूचा विश्लेषण है । बड़ी बारीकी से सुहैल सेठ ने राहुल गांधी के उठाव के साथ साथ मोदी जनित ‘फटीक’ और केजरीवाल का भी बखूब आकलन किया है । यह इंटरव्यू जरूर देखा जाना चाहिए । कांग्रेस की एक और बड़ी उपलब्धि अध्यक्ष पद का चुनाव भी होने जा रही है और इसको यकीनन शशि थरूर ने अपने तरीके से रोचक बना दिया है । वे नहीं जीतेंगे यह वे भी जानते हैं फिर भी जिस जज़्बे को वे दिखा रहे हैं उससे बहुत से लोग थरूर के पक्ष में बोलने लगे हैं । आजकल वे प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया के सबसे चहेते व्यक्ति हैं । मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए बेशक राहुल गांधी कितना ही कहें कि वे रबड़ स्टेंप नहीं साबित होंगे पर सब लोग सब कुछ जानते हैं।
कल यानी 11 अक्टूबर को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में जाने माने अर्थशास्त्री अरुण कुमार बेरोजगारी पर एक बड़ी रिपोर्ट प्रस्तुत करने जा रहे हैं । ‘लाउड इंडिया टीवी’ के अभय दुबे शो में यह जानकारी वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने दी । उसी के साथ उन्होंने जो लाख टके का सवाल किया कि बेरोजगारी की इस रिपोर्ट की चर्चा हम ही लोगों के बीच होकर रह जाएगी या यह देश में भी बेरोजगारों के बीच हलचल मचाएगी ? यह उसी तरह का सवाल है कि देश स्तर पर सारी हलचल और परेशानियों से उपजी समस्याएं मध्य वर्ग तक ही ज्यादा क्यों सीमित होती जान पड़ती हैं । बीपीएल से नीचे का गरीब जिस तरह महंगाई और बेरोजगारी से परेशान है फिर भी वह इसके लिए मोदी को सीधे सीधे दोषी ठहराने से कतराता है । इसे इस तरह समझिए कि गरीब व्यक्ति बे-मौसम होती बारिश , बाढ़ और सूखे को ‘ऊपर वाले’ की मर्जी समझ लेता है उसे नहीं पता कि ‘ग्लोबल वार्मिंग’ किस चिड़िया का नाम है । तब तक जब तक उसे कोई जाकर न समझाए । इसी तरह हमारा हमेशा का यह सनातन प्रश्न है कि गरीबों के बीच कौन जाकर उन्हें समझा रहा है कि ये समस्याएं मोदी जी के झूठ और उनकी गरीब विरोधी और अमीरों के पक्ष में बनायी नीतियों का परिणाम है । इसके उलट संघ और बीजेपी के लोग गरीबों में निरंतर कार्य कर में जुटे हुए हैं ।
संतोष भारतीय ने एक प्रश्न और अभय दुबे से किया । दरअसल राजस्थान में अशोक गहलोत द्वारा गौतम अडानी को आमंत्रित करने पर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। इसी संदर्भ में संतोष जी का सवाल था । जिसके जवाब में अभय दुबे ने ‘कैप्टीलीज़म और क्रोनी कैप्टीलिज़म’ के बीच का भेद बताया । कांग्रेस कभी पूंजीवाद की विरोधी नहीं रही । जबकि मोदी जी के शासन में ‘क्रोनी पूंजीवाद’ को बढ़ावा मिला है । इसी विषय पर बाद में संतोष जी ने अखिलेंद्र प्रताप सिंह से भी विस्तार से चर्चा की । लेकिन राहुल गांधी ने इस भेद को बखूबी समझा । उन्हें किसने समझाया यह प्रश्न है । यात्रा के दौरान पूछे गये सवाल पर राहुल गांधी ने जिस उत्साह से इस सवाल का जवाब दिया उससे उनमें ‘नया नया’ आता आत्मविश्वास झलका । फिर भी यात्रा के दौरान राहुल गांधी के बदलते व्यक्तित्व पर बात करने से बेहतर है कि यात्रा की समाप्ति तक का इंतजार किया जाए । हम तो इन मुद्दों पर हो रही चर्चाओं के संदर्भ में भी यही बात कहना चाहेंगे ।
अनिल त्यागी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘जी फाइल्स’ को नियमित किया है। फिलहाल तो अच्छा और ताजगी लिए हुए दिखता है । वैसे चर्चाओं में एंकर पर बहुत कुछ निर्भर करता है । उन्हें कुछ ‘कोड’ तो निर्धारित करने ही चाहिए ।
बाल साहित्य पर कल का ताना-बाना बहुत बढ़िया रहा । दिविक रमेश ने उठा पटक भी बहुत की हैं अपने जीवन में । दिल्ली का पंजाबीपन उनमें बढ़ चढ़ कर हावी रहा । क्षमा शर्मा ने बाल साहित्य पर औसत काम किया है फिर भी नंदन का संपादकीय अच्छा संभाला । निर्मल वर्मा को अशोक वाजपेई ने याद किया और उधर प्रिय दर्शन ने शेखर जोशी को । रविवार की ताजगी है ताना बाना और अमिताभ का ‘सिनेमा संवाद’ । इसमें मैं पाता हूं अतीत के सिनेमा और उसकी धारा को किसी न किसी बहाने बड़ी खूबी से संवाद के दायरे में लाया जाता है । अमिताभ श्रीवास्तव की इस ओर प्रतिबद्धता काबिले-तारीफ है । इस बार का कार्यक्रम अमिताभ बच्चन के महानायकत्व पर केंद्रित था ।

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