श्रद्धा जैन

3 दिसंबर को बुलंदशहर में एक पुलिस ऑफिसर को घेरकर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई लेकिन देश के टीवी चैनल्स को बहस की गुंजाइश या तो मंदिर मस्जिद के मुदे में दिखाई दी या फिर ओवैसी योगी के भड़काऊ बयानों में. जाहिर है, इस समय उन पर जिम्मेदारी है, पूरे देश में ऐसा माहौल बनाने की जो देश को हिन्दू-मुस्लिम के दो टुकड़ों में बांट संके. इस जिम्‍मेदारी को वे बखूबी निभा भी रहे हैं. सभी जानते हैं कि दिसंबर के नजदीक आते ही पूरा मीडिया ऐसा माहौल बनाने में जुट चुका था और दिसंबर महीने का हर घंटा बीतने के साथ वे अपने मकसद के करीब पहुंचते नजर भी आ रहे है.

बात करते हैं न्यूज चैनल्स कर बहसों की, जिनमें किस तरह के मुद्दे चुने गए, क्‍या सवाल पूछे गए, क्या जबाव दिए गए और किन तथ्यों को मुद्दा बनाकर ऐसी भड़का देने वाली बातों पर फोकस किया गया जो आम आदमी के जेहन को मजबूर कर दें कि वो या तो हिन्दुत्व का साथ दे या मुस्लिम समुदाय का. रिपब्लिक वर्ल्‍ड चैनल पर रात के शो संडे डिबेट अर्णव में अर्णव गोस्वामी की “मंदिर-मस्जिद मुद्दा कौन भड़का रहा है”, सवाल पर चल रही बहस शुरूआत से ही भटक गई. मस्जिद बनाने के समर्थक तस्लीम रहमानी ने शुरूआत में ही कह दिया कि हम डरने वाले नहीं है, यदि मंदिर बनाने के लिए आप 5 लाख लोग लाएंगे तो हम 25 लाख लोग लाएंगे. फिर तो अयोध्या में हुई धर्मसभा में आए लोगों की संख्या और दोनों गुटों के समर्थकों की संख्या पर वाद-विवाद शुरू हो गया. बहस में आए अन्य अतिथियों और एंकर ने इस बहस की आग में घी डाला और पूछा कि क्या ये लोग दंगा करने के लिए इकट्ठा होंगे. इसके बाद बारी आई इतिहास को तोड़ने की कि बाबर अयोध्या कब गया, उसने मस्जिद बनवाई या नहीं, वहां कब से नमाज नहीं पढ़ी गई. इसके बाद दोनों धर्मों के ज्ञाताओं ने शास्त्रार्थ किया कि विवादित जमीन पर नमाज पढ़ी जानी चाहिए या नहीं. कुल मिलाकर मंदिर और मस्जिद का मुद्दा कौन भड़का रहा है इसका जबाव ढूंढने के बजाय सारे लोग इस मुद्दे को अच्छी तरह भड़काने के हिस्सेदार बनते जरूर नजर आए.

एबीपी न्यूज और आज तक ने योगी और औवेसी के बयानों की बाल की खाल निकालना बेहतर समझा. एबीपी न्यूज के 4 बजे प्रसारित होने वाले कार्यक्रम संविधान की शपथ में एआईएमआईएम के नेता इम्तियाज जलील ने कहा कि योगी के ऐसे बयान पर यही जबाव मिलना चाहिए था, जो अकबरूद्दीन ओवैसी ने दिया. तब एंकर रोमाना खान ने राहुल गांधी के इस ट्वीट को सही ठहराया कि औवेसी की पार्टी भाजपा की ‘सी’ टीम है क्योंकि योगी और ओवैसी के बयान हिन्दू मुस्लिम मुद्दे पर मैच फिक्सिंग कर रहे है. आज तक चैनल पर संघ के जानकार संगीत रागी ने हैदराबाद को मिनी पाकिस्तान कहा दिया. इधर एंकर रोहित सरदाना को इस बात पर खासी आपत्ति थी कि कांग्रेस ने एआईएमआईएम को भाजपा की ‘बी’ टीम क्यों कहा? उनकी सुई इसी सवाल पर अटकी रही कि यदि एआईएमआईएम और कांग्रेस दोनों योगी के खिलाफ बोल रहे है तो एआईएमआईएम भाजपा की ‘बी’ टीम क्यों है कांग्रेस की क्यों नहीं है? बकौल रोहित सरदाना क्या ये मान लिया जाए कि जो इस देश में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ेगा वो भाजपा की बी टीम है? अब ऐसे सवालों पर तो यही पूछने का मन करता है कि भाई, कब तक भाजपा का एजेंडा आगे बढ़ाते रहोगे.

खैर, जाहिर सी बात है कि बहसों में आए लोग तो अपने पक्ष का झंडा ऊंचा करेंगे ही लेकिन प्रो-भाजपा का एजेंडा लेकर चल रहे ये मीडिया हाउस कब तक हिन्दू मुस्लिम मुद्दे को भड़काते रहेंगे. सोचने वाली बात ये है कि क्या तेलगांना में जनता की आम समस्याओं के मुद्दे खत्म हो गए हैं, जो अब इसी पर बहस की जाए कि चुनाव के बाद तेलंगाना से  ओवैसी भागेंगे या योगी के समर्थक.

जबकि एक दर्शक की हैसियत से हम तो यही जानना चाहते हैं कि उस अनाथ बेटे (बुलंदशहर में मारे गए पुलिस अफसर सुबोध कुमार के बेटे) के दिल का दर्द न जाने कब इन बहसों का किस्सा बनेगा, जो रो- रोकर कह रहा है कि मेरे पापा चाहते थे कि मैं अच्छा इंसान बनूं और समाज से सद्भाव की बात करूं. जबकि मेरे पिता की जान इस समाज में फैली नफरत ने ही ले ली. खैर, ये खबर तो फिर भी दर्शकों तक पहुंच गई लेकिन ऐसी कई खबरें इन चैनलों से सिरे से नदारद रहीं जो कि आम लोग की जिंदगी से जुड़ी थी. जैसे गुजरात में पुलिस कांस्‍टेबल के 9 हजार पदों के लिए 9 लाख छात्र परीक्षा देने के लिए अपने घरों से निकले लेकिन वो परीक्षा पर्चा लीक होने के कारण रद्द कर दी गई. (ये खबर केवल ने एनडीटीवी ने प्राइम टाइम पर दिखाई ) क्या उनकी महीनों की मेहनत इतनी सस्ती है? या उनके मां बाप की गाढ़ी कमाई से जुटाई गई फीस की, राजनैतिक पार्टियों द्वारा चुनावो में उड़ाए जा रहे नोटों के आगे कोई कीमत नहीं है? फिर भी यदि तेलंगाना में होने जा रहे चुनावों पर ही बहस करनी थी तो क्या ये मुद्दे अहम नहीं थे कि तेलंगाना में किसानों की समस्याएं क्या है? या क्यों वहां साढ़े चार हजार किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी? या तेलंगाना राज्‍य पर 2 लाख 20 हजार करोड़ रूपयों का कर्ज क्यों है?

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