उर्दू की खोज भारत में हुई थी, उर्दू भारत की संपत्ति है। उर्दू किसी धर्म की जागीर नहीं है। उर्दू भाषा है, संचार का माध्यम है। उर्दू सिर्फ़ बकरीद का गोश्त नहीं है, उर्दू सिर्फ़ ईद की सेवई नहीं है। भाषा के क्षेत्र में उर्दू हिंदुस्तान की एक नायाब खोज है।

हमारा रामप्रसाद खुद के आगे बिस्मिल लिखता है, हमारा भगत, उर्दू में शायरी लिखता है, हमारा रघुपति सहाय, फ़िराक़ हो जाता है, हमारे पटेल को भी अच्छी उर्दू आती है और नेहरू भी अच्छी उर्दू बोलता है।

जिन्हें लगता है कि उर्दू के बिना भारत है, वो बस एक घण्टे बिना उर्दू बोले गुज़ार दें। मैं उन्हें कथित देशभक्त मान लूंगा।

है किसी की औकात ? देखो! तुम्हारी औकात भी उर्दू है।

कहाँ – कहाँ से मिटाओगे उर्दू को ? पहले अपनी ज़ूबान से मिटाकर दिखाओ, तो जानें।

देखो ज़ुबान भी उर्दू है। उर्दू के खिलाफ़ तुम्हारी नफ़रत भी उर्दू में है, मोहब्बत भी उर्दू में है, इश्क भी उर्दू में है।

तुम्हारा कानून उर्दू में है, तुम्हारा तहसीलदार भी उर्दू में है, तुम्हारी अदालत भी उर्दू में है, तुम्हारा वकील भी उर्दू में है, तुम्हारी तहसील भी उर्दू में है, उर्दू की मुख़ालफ़त का तुम्हारा जुर्म भी उर्दू में है और तुम्हारा हिन्दू भी उर्दू में है। और सुनो बेहोश लापरवाह! तुम्हारा हिंदुस्तान भी उर्दू में है।

मिटा दो हिन्दू को, मिटा दो हिंदुस्तान को, उर्दू मिट जाएगी तुम्हारी ज़मीन से।

अरे! देखो तुम्हारी ज़मीन भी उर्दू है।

कश्मीर तुम्हारा है मगर क्यों है ? क्योंकि उसे तुम अपना मानते हो। फिर जिस उर्दू को तुम्हारी ज़मीन ने पैदा किया है, उसे अपना क्यों नहीं मानते ?

ऐसे कैसे बनेगा अखंड भारत ? जिसको तुमने पैदा किया, उसे ही अपना नहीं मानते। अपनी संपत्ति को ही अपना नहीं मानते हो, बड़े जाहिल हो यार!

देखो तुम्हारा जाहिल उर्दू में है।

हमें पता है तुम अभी कमेंट में इन सभी उर्दुओं की हिंदी लिखोगे। और तुम्हारे लिखते ही पता चल जाएगा, तुम्हें अच्छी उर्दू आती है।

मुबारक हो! तुम्हारे अंदर भी एक मस्त उर्दू रहती है।

उर्दू की जीभ रखने वालों उर्दू को मिटा रहे हैं। पहले अपनी जीभ तो बिना उर्दू के चला लीजिये हुजूर!

देखो हुजूर! तुम भी उर्दू में हो।

ये उर्दू किस बला का नाम है भाई ?

उस बला का, जिसके बिना तो तुम किसी से अपनी मोहब्बत का इज़हार भी नहीं कर सकते।

अब देखो उर्दू के बिना तुम्हारा इज़हार भी अधूरा है, तुम्हारी मोहब्बत भी अधूरी है।

तुम जब बीमार पड़ते हो तो क्या लेते हो ?

दवा!

अबे कमबख़्त नामुराद! तुम्हारी दवा भी उर्दू में है।

तुम्हारी दारू भी उर्दू में है। नफ़रत का तुम्हारा नशा भी उर्दू में है और तुम्हारी नफ़रत भी उर्दू में है।

अब वो नशा धर्म का है, जाति का है, मज़हब का है, भाषा का है, रंग का है, तुम तय कर लो।

अब ये देखो! तुम्हारा तय भी उर्दू में है।

– प्रियतम कुमार (पूर्व छात्र – इलाहाबाद विश्वविधालय)

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