दीपिका आप ड्रग लेती हैं- कहकर बंद कार में बैठ कर बंद कार के पीछे दौड़ना, मुझे ड्रग दो ! मुझे ड्रग दो ! कह कर ऐंकर का शोर मचाना, जिसकी बेटी बलात्कार के बाद जला दी गयी हो उससे ज़बरदस्ती पूछना कि आपको कैसा लग रहा है, सामान्य घटना की भी हाँफ-हाँफ कर, चिल्ला-चिल्ला कर रिपोर्टिंग करना, एक दल से पैसे खाकर दूसरे दल के नेता के सामने हमलावर तरीक़े से ‘नैतिक’ सवाल पूछना – ये किस देश की टीवी पत्रकारिता में होते देखा है?
इस देश में स्वतंत्र हिंदी टीवी पत्रकारिता की नींव 1989 में मैंने ही कालचक्र बना कर रखी थी। हवाला कांड में 115 नेता व अफ़सरों को चार्जशीट करवाया- पर ऐसी वाहियात पत्रकारिता नहीं की जैसी आज हो रही है।Kalchakra 1990 या 1991 You Tube पर सर्च करें और देखें कि गम्भीर मुद्दे भी कितनी सहजता से प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
आज तो स्वयं को पत्रकार कहने में भी शर्म आती हैं। पत्रकारिता और भांडगिरी का अंतर समझें , वरना लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ ढहाने के ज़िम्मेदार हम ही होंगे ।
विनीत नारायण