आजही के दिन 2004 में 74 साल की उम्र में उनका निधन हो गया है ! 1930 में जन्मे किशनजीकी आनेवाले 2030 में जन्मशताब्दी है !
मेरे अपने परिचय में किशनजी जैसे कुजात समाजवादी मैंने दुसरा नही देखा ! 1962-67 के लोकसभा के सदस्य रहे थे ! लेकिन पूर्व संसदसदस्यो को मिलने वाली हर तरह की सुविधाओं को उन्होंने स्वीकार नहीं किया ! और देश के एक कोने से दुसरे कोने तक कि यात्रा तिसरे दर्जे से लेकर बसों तक करते थे ! और उपरसे दमे के मरिज को भिडभरी यात्रा कितनी तकलीफदेह होती है ? यह मैने उन्हें अपने साथ की यात्रा में खुद देखा हूँ !
कुछ लोग उन्हें लोहियावादी कहते हैं ! जहाँ तक मेरा व्यक्तिगत मानना है कि, मेरे साथ उनका परिचय एन ए पी एम के स्थापना के समय से अधिक रहा है ! कभी-कभी वह हमारे कलकत्ता के आवास पर भी ठहरे है ! और मुख्यरूपसे हमारी मुलाकातें नर्मदा बचाओ आंदोलन स्थलों पर और एन ए पी एम की विभिन्न बैठको में अधिकांश समय होते रही है ! और मैने देखा कि किशनजी किसी भी नेता के प्रभाव में नहीं थे ! वह जनतांत्रिक समाजवादी थे ! लेकिन मैंने उन्हें कभी भी किसी भी बडे समाजवादी नेता को कोट करते हुए बोलते हुए नही देखा ! यहां तक कि उनके उम्र के तीस सालों से भी कम समय में डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने उनके जीवन के पहले लोकसभा चुनाव 1962 – 67 में उनके संभलपूर लोकसभा चुनाव में अपनी खुद की संपूर्ण ताकत झोके दी थी ! और डाक्टर लोहिया तबतक भारत की संसद में जाने में कामयाब नहीं हुए थे ! एक साल बाद उपचुनाव में जितकर वह भी लोकसभा में आ गए थे ! लेकिन किशनजी उस लोकसभा के सबसे कम उम्र के संसदसदस्य थे ! लेकिन उसके बावजूद मैंने उन्हें कभी भी डाक्टर लोहिया ने यह कहा था या यह नहीं कहा था बोलते हुए नही देखा ! और अन्य किसी भी नेता के बारे में बोलते हुए नही देखा !
जहाँ तक मेरा निरिक्षण है वह खुद एक स्वतंत्र चिंतक थे ! उसके उदाहरण ‘विकल्पहीन नही है दुनिया’ से लेकर ‘भारत शूद्रों का होगा’ , तथा समाजवाद, किसानों की समस्याओं से लेकर सांप्रदायिकता, सेक्युलरिज्म, जनतंत्र तथा स्त्री-पुरुष संबंधों जैसे आज के अत्यंत संवेदनशील विषयों पर उन्होंने जो भी रोशनी डाली हैं ! वह देखने के बाद मुझे लगता है कि उसमें भी मुझे उनके लेखों को पढ़ने से लेकर उनके साथ की बातचीत में कभी भी किसी को कोट करते हुए नही देखा ! हमेशा अपने खुद के चिंतन की झलक देखने को मिली है !
प्रथम पंक्ति के समाजवादी नेताओं में किशनजी एकमात्र नेता थे ! जिन्होंने जनता पार्टी के जनसंघ जैसे दक्षिणपंथी दल के साथ बनने का सिर्फ विरोध ही नहीं किया, उस पार्टी में शामिल भी नहीं हुए ! और एक बार तो उन्हें ओरीसा से बिजू पटनायक ने सिर्फ जनता पार्टी के सिंबल देने की पेशकश की तो उन्होंने ठुकरा दी ! जबकि वह उस सिंबल को ले लिए होते तो शतप्रतिशत लोकसभा में दोबारा पहुंचे होते ! लेकिन 1962 – 67 का तिसरी लोकसभा को छोड़कर वह दोबारा लोकसभा में नहीं जा सके !
लेकिन मेरी मान्यता है कि वह संसद या विधानसभा से ज्यादा पर्यायी राजनीति के हिमायती थे ! उनके ‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया’ शिर्षक की किताब में पर्यायी विकास से लेकर पर्यायी राजनीतिक चिंतन दिखाई देता है !
उसीमे उन्होंने ‘बैलगाड़ी चाहिए या इंटरनेट’ शिर्षक से एक लेख लिखा है ! जो उसके पहले उन्होंने बनारस के लोकविज्ञान संमेलन मे सबसे पहले अपने भाषण में प्रकट किया था ! और भाषण के बाद के भोजन में हम दोनों साथ ही बैठकर भोजन कर रहे थे ! तो उन्होंने मुझे पुछा की “सुरेश आपको मेरा भाषण कैसे लगा ?” तो मैंने तपाक से कहा कि “आपने मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर मारा है ! इसलिए आपको इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने के लिए सबसे पहले मैं आपको नागपुर में आमंत्रित कर रहा हूँ ! और कम-से-कम आपको सिर्फ इसी विषय पर तीन दिन नागपुर में रहना होगा !” तो वह बनारस के बाद चंद दिनो के भितर नागपुर आए ! और मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन आयोजन में से वह आयोजन था ! जिसमें किसनजी ने वर्तमान टेक्नोलॉजी के बढ़ते हुए प्रभाव को लेकर बहुत ही विस्तृत रोशनी इस विषय पर डाली है ! जो कि एक स्वतंत्र लेख का विषय है !
इसिलिये मेरा मानना है कि वह किसी भी व्यक्ति के प्रभाव में कभी नहीं रहे हैं ! उनका अपना चिंतन-मनन था ! जिसके आधार पर उन्होंने अपने जीवन के अंत तक बोलने और लिखने का प्रयास किया है ! और काफी लोगों को समाजवादी चिंतन के वर्तमान प्रतिनिधि बोलने का चलन चल रहा है ! लेकिन मेरे विचार में वह आखिरी ऐसे द्रष्टा थे ! जिनके बाद अभी कोई भी व्यक्ति नही है, कि जिसे समाजवादी चिंतक कहा जा सकता है ! ज्यादा से ज्यादा वह समाजवाद के टिप्पणीकार है ! आज उनके पूण्यस्मरण दिवस पर विनम्र अभिवादन !

Adv from Sponsors