कलसे महात्मा बुद्ध की साक्षात्कार की भूमि पर संघर्ष वाहीनी के साथीयो का मित्र मिलन शुरू हो रहा है ! इसलिए सभी साथियों को मेरा क्रांतिकारी अभिवादन और नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
शुभकामनाएं सिर्फ औपचारिकता के लिए नहीं दे रहा हूँ ! क्योंकि गत कई सालों से सांप्रदायिक शक्तियों का प्रभाव जिस तरह देश में बढते जा रहा है वह संपूर्ण क्रांति अब नारा है भावी इतिहास हमारा है और भी बहुत सारे परिवर्तन के नारे लगाने में हमारे सभी के गले सुखे है !
लेकिन पिछले चालीस सालों से भी अधिक समय का जायजा लिया जाय तो कुछ चंद उपलब्धियां छोड़ कर हिसाब – किताब देखकर लगता है कि हमारी संपूर्ण क्रांति उल्टी होकर प्रतिक्रांति में फंस गई है !
हमारे अपने ही साथ शामिल हुआ संघ परिवार आज कहा है ? और हम कहाँ हैं ? जयप्रकाश आंदोलन का सबसे ज्यादा लाभ अगर किसी को हुआ है तो वह सिर्फ और सिर्फ संघ परिवार को ! और सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी को हुआ है तो वह हम संपूर्ण क्रांति अब नारा है और भावी इतिहास हमारा है वालोको हुआ है.! और इसी कारण हमारी नाकामयाबी छुपाने के लिए हमें साल दो साल में मित्र मिलन जैसा कर्मकाण्ड करने की नौबत आ गई है ! माफी चाहता हूँ ! लेकिन वर्तमान स्थिति के कारण मैं बहुत ही बेचैन हूँ ! और मुख्य रूप से हिंदूत्ववादी तत्वों के बढ़ते हुए तेवर के कारण मैं बहुत ही आक्रोश में हूँ !
अगर आज देश – दुनिया को बदलने में हमारा कोई योगदान रहा होता तो शायद ऐसा निठल्ला कार्यक्रम करने की नौबत नहीं आई होती ! हमारे अंदर के पतन का दौर शुरू से ही जारी था ! क्योंकि हम सब अचानक एक तुफान में आकर शामिल हो गए थे ! और शुरू में एक दूसरे के प्रति संशयों से घिरे होने के कारण ठीक से बगैर जान – पहचान, और उससे भी ज्यादा वैचारिक प्रतिबद्धता को बगैर देखे चलती हुई ट्रेन के मुसाफिरों जैसे इकठ्ठे हो गये !
और ट्रेन में जिस तरह से प्रवासी कम परिचय के कारण सतही तौर पर एक दूसरे से बातचीत करते हैं ! वैसे ही हम लोग रहे ! हां कुछ चंद आंदोलनों में कुछ लोग एकत्र तो आए ! लेकिन आपसी समझ और विश्वास कितना बना यह संशोधन का विषय है ! इसपर मैं मेरे किसी रिसर्चर्स युवा मित्रों को अवश्य रिसर्च करने के लिए कह रहा हूँ !
जो लोग संसदीय राजनीति में चले गए ! उनके सबसे बड़े उदाहरण वर्तमान बिहार के मुख्यमंत्री हैं ! और कभी कुजात लोहियावादी कहे जाने वाले जॉर्ज फर्नाडिस सिर्फ नमूने के तौर पर यह दो नाम ले रहा हूँ ! इसपरसे वर्तमान समाजवादी जमात का परिचय होने के लिए पर्याप्त है ! क्योंकि मैं काफी बार इस विषय पर लेख लिखे हैं और बोला हूँ !
और इस तरह की परिस्थितियों का सबसे बड़ा लाभ संघ परिवार ने उठाया है ! १९४८ के बाद महात्मा गाँधी की हत्या के बाद ! मुहं छुपाने वाले बिहार आंदोलन की आड़ में उजागर होकर, अपने आप को मजबूत करते हुए आज की स्थिति में पहुंच गए ! क्योंकि वह अपने लक्ष्य पर कायम थे ! और उन्होंने आज उसे हासिल करने के लिए हमारा सिढी जैसा इस्तेमाल किया ! इस बारे में कोई शकशुबा कम-से-कम अब तो नहीं है !
हालांकि उसी बिहार का भागलपुर के आजसे बत्तीस साल पहले का दंगे से हमें चेतावनी मिल गई थी ! लेकिन देश के अन्य क्षेत्रों के लोगों को छोडिए खुद बिहार और भागलपुर के भी साथियों को भागलपुर दंगे की तिव्रता ने हिलाना दूर! उल्टा एक नहीं दो – दो विद्वान जिन्हें देशभर में गांधी – विनोबा – जयप्रकाश के भाष्यकार के रूप में मान्यता रही है ! वह मुसलमानों को राष्ट्रप्रेम का परिचय देना होगा ! और इतिहास में की हुईं गलतीयो को स्वीकार करके उसका प्रायश्चित करने की बातें ! दंगे के जख्म ताजा – ताजे थे ! और उन्होंने इस तरह की बातें की है !
और इसे मै व्यक्तिगत रूप से नहीं ले रहा हूँ ! यह संघ परिवार के अथक प्रयासों का फल है कि ! इस तरह के प्रचार प्रसार में जाने अनजाने में हमारे अपने लोग भी शामिल है ! और आंदोलन में आने से कौन बदला ? इस बात का परिणाम भी है ! और यह सब गुजरात के तेरह साल पहले की बात है ! उस समय नाही कोई नरेंद्र मोदी या अमित शाह का राजनीतिक जन्म हुआ था !
चलीए भागलपुर के दंगे से नहीं जागे ! तेरह साल बाद भारत के दंगों के इतिहास का पहला राज्यपुरस्कृत दंगा गुजरात होने के बावजूद भी ! भारत की राजनीति सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द ही चलेगी यह समझ में नहीं आने वाली जमात को अपने आपको सामाजिक – राजनीतिक काम करने के लिए हम सचमुच ही कितने लायक है ! यह समझने के लिए पर्याप्त नहीं है ?
हरिद्वार की तथाकथित धर्मसंसद और कल परसो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी वही बात दोहराई गई है ! और अंबाला से लेकर कर्नाटक के हसन जिले के बेलूर और भी कई अल्पसंख्यक समुदायों के धार्मिक स्थलों पर आयोजित किये गये हमलो को देखकर ! क्या हमें लगता नहीं ! की सौ साल पहले जर्मनी और इटली में यही आलम था ! और लाखो की संख्या में वहां के अल्पसंख्यक जातियों के लोगों को एक पोग्राम के तहत खत्म किया गया है !
संघ परिवार की स्थापना ही हिटलर और मुसोलीनी के फासीवाद के देखा – देखी पर कि गई है ! संघ के एक संस्थापक डॉ बी जे मुंजे बाकायदा एक महिना इटालियन तानाशाह बेनिटो मुसोलीनी के मेहमान के रूप में 19 मार्च1931 के राऊंड टेबल कांफ्रेंस के बाद, द फासिस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ फिजीकल एज्युकेशन और विभिन्न फासिस्ट संस्थाओं के अध्ययन हेतु रहकर आये हैं ! और बेनिटो मुसोलीनी के पलाझ्झो वेनझीया, फासिस्ट सरकार के मुख्यालय में मुसोलीनी के साथ मिलकर आने के बाद अपने डायरी में २० मार्च को लिखे हैं ! और इस डायरी के वहीं पन्ने दिल्ली स्थित नेहरू मुझीयम में मायक्रोफिल्म करके सुरक्षित रखे गए है !
गुरु गोलवलकर के १९३९ के किताब में …
We or Our Nationhood Defined में लिखा है कि Garman Rece pride has now become the topic of the day. To keep up the purity of the Race and its culture, Garmny shocked the world by her purging the country of Semitic Races – the Jewish. Race pride at its highest has been manifested here. Garmny has also shown how well – night impossible it is for Reces and cultures, having differences going to the root, to be assimilated into one united whole, a good lesson for us in Hindustan to learn and profit by
इसी क्रम में वह आगे हिटलर के अल्पसंख्यक जातियों के बारे में क्या विचार हैं ? यह कह रहे हैं ! It is worth bearing well in mind how these old Nations solve the problems of minorities. They do not undertake to recognise any separate element in their polity. Emigrants have to get themselves naturally assimilated in the principal mass of the population, the National Race, by adopting its culture and language and sharing in its aspirations, by losing all consciousness of their separate existence, forgotten their foreign origin. If they do not do so, they live merely as outsider’s, bound by the codes and conventions of the Nation, at the sufferance of the Nation and deserving no special protection, for less any privilege or rights. There are only two courses open to the foreign elements, either to merge themselves in the National race and adopt its culture, or to live at its mercy so long as the National race may allow them to do so and to quit the country at the sweet will of the National Race. That is the only sound view on the minorities problem. That is the only logical and correct solution. That alone keeps the Nation safe from the danger of a cancer developing into its body politic of the creation of a state within a state.
यही बात जब दस साल का बच्चा-बच्चियों को सुनते हुए बड़ा होने पर अगर वह नरेंद्र मोदी या अमित शाह या आदित्यनाथ नहीं बना तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए ! क्या जहरीला प्रचार प्रसार करने का और अल्प संख्यक जातियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात सिर्फ हरिद्वार या रायपुर में अचानक ही नहीं शुरू हुई ! यह सौ साल की मेहनत का फल है ! भले ही वह विषैला क्यो न हो !
इस तरह के सौ साल से अधिक समय से हिंदुत्ववादी तत्व वंश वाद के हिमायती है ! और यह प्रचार प्रसार लगातार शाखाओं से लेकर बौद्धिकों तथा खेल और शिबीरो के माध्यम से किया जा रहा है ! जिसे डॉ राम मनोहर लोहिया से लेकर जयप्रकाश नारायण ने इन्हें कम आकने की गलती की है ! एक तरफ तो हिंदू बनाम हिंदू जैसे निबंध लेखन किए लेकिन व्यवहार में कट्टरपंथी हिंदूओ की मदद लेने की ऐतिहासिक गलती की है !
और आज संपूर्ण देश में वे आक्रामक रूप से ! अपने कट्टरपंथी होने का नंगा नाच करते हुए बोल रहे हैं ! और भागलपुर, गुजरात तथा अयोध्या मस्जिद विध्वंस से लेकर, राम मंदिर बनाने के मामले को, देशका सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर रख दिया है ! जिसमें लोगो के रोजमर्रा के मुद्दे फिर जल, जंगल, जमीन से लेकर महंगाई, बेरोजगारी, आरोग्यसेवा से लेकर शिक्षा तथा दलितों के और महिलाओं के उत्पीड़न के मामले हाशिये पर चले गये हैं ! और हम हैं कि इस परिस्थिति को देखते हुए भी शुतुरमुर्ग के तरह आखें मुंदकर हमारे अपने पुराने राग आलाप रहे हैं !
आज की तारीख में संघ भारत की सबसे बड़ी ताकत बनकर, जीवन के सभी अंगों में घुसकर, आक्टोपस के जैसा जकड बना कर, अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए बारह महीनों चौबीस घंटे सतत प्रयत्नशील है ! भारत का शायद ही कोई हिस्सा होगा जिसमें उन्होंने अपनी घुसपैठ नहीं किया होगा ! एक लाख से अधिक शाखाओं से लेकर सवा लाख से अधिक प्रचारकों के साथ दो करोड़ से अधिक स्वयंसेवकों का जखीरा आज अगर भारत में किसी संगठन के पास है तो वह सिर्फ संघ का है ! शायद विश्व का सबसे बड़ा संघटन कहा तो गलत नहीं होगा !
त्रिपुरा जैसे प्रदेश की चालीस साल पुरानी सीपीएम की सरकार को उखाड फेका है ! और बंगाल से सीपीएम और कांग्रेस के अस्तित्व पर सवाल खड़े किए हैं ! वर्तमान कोलकाता की विधान सभा में एक भी सीपीएम और कांग्रेस के सदस्यों का नही होना ! और ममता बनर्जी और बीजेपी के बीच सिर्फ दो प्रतिशत का फासला बचा है ! जो वन वुमेन शो को खत्म करना कोई बड़ी बात नहीं है ! और सबसे बड़ी हैरानी की बात आज बीजेपी ने भले ही बंगाल में सरकार नहीं बनाई होगी ! लेकिन अब आने वाले समय में बंगाल में सिर्फ बीजेपी विरुध्द ममता बनर्जी यही मुकाबला होने की संभावना है ! और तथाकथित सेक्युलर नादारद हो चुके हैं ! जो एक न एक दिन होना ही था !
क्योंकि यह प्रदेश पंजाब के जैसा ही बंगाल बटवारे की जख्म सहलाते हुए ! हर एक घर के बाद दुसरा घर आता है ! और उसे थोड़ा कुरेदने से ! फिर वह कम्युनिस्ट हो या कांग्रेसी, उसे बटवारे की याद दिलाने के लिए, संघ परिवार गत सौ साल से अधिक समय से लगातार कोशिश कर रहा है !
इसलिये संपूर्ण क्रांति हमारा नारा है ! और भावी इतिहास हमारा है ! कहने वाले हम अधिकतम लोगों ने साठ साल पूरे कर के सत्तर के तरफ सफर जारी किया है ! लेकिन पिछे मुडकर देखने से, इस नारे को और कोई लगाने के लिये है भी या नहीं ? पूराने मित्र मिलन के अलावा और कुछ नहीं कर सकते ?
मैं पहले मित्र मिलन बोधगया में भी आया था ! और २०१७ के पूरी के मित्र मिलन में भी शामिल हुआ था ! लेकिन एक मित्र मिलन के बाद दूसरा करना, यही एकमात्र कार्यक्रम करने की कवायद करते रहना कहा तक उचित है ? क्योंकि देश – दुनिया के सवालों को देखते हुए मै प्रार्थना करता हूँ कि इस बार आप लोग कुछ सोच विचार करेंगे तो बहुत ही अच्छा होगा ! अगर मैं गलत नहीं तो गुजरात और बिहार के आंदोलनों के समय जयप्रकाश नारायण की उम्र शायद हमारी अपनी उम्र जो आज है ! वहीं उनकी भी उम्र थी ! तो उन्होंने सत्तर की उम्र में जब इतिहास को बदलने की कोशिश की है ! और विभिन्न बिमारीयोके शिकार होने के बावजूद ! तो हमें क्या हो गया है ?
संपूर्ण क्रांति अब नारा है भावी इतिहास हमारे आने वाले पिढी का है ! कम-से-कम हमारे आने वाले पिढी को हम यह बता सके कि कम से कम हम चुपचाप बैठे नहीं थे ! कुछ कोशिश की थी, कामयाबी या नाकामयाबी वह बात दिगर है !
डॉ सुरेश खैरनार २९ दिसंबर २०२१, नागपुर