गढ़वाल संसदीय सीट पर डॉ. हरक सिंह रावत को अपना प्रत्याशी घोषित करने के बाद सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल गंभीर सिंह नेगी के रूठने से सैन्य परिवारों के मतदाताओं पर पड़ने वाले असर को लेकर कांग्रेस भयाक्रांत है. डैमेज कंट्रोल के लिए राजपुर रोड स्थित एक होटल में पार्टी प्रत्याशी हरक सिंह रावत एवं जनरल नेगी के साथ दिल्ली से आए राजीव शुक्ला ने बैठक की, जो ढाक के तीन पात साबित हुई. इस मुलाकात के बाद भी नेगी के चेहरे पर असंतोष का भाव झलकता रहा. कुछ देर बाद वह चुपचाप होटल से चले गए. राजीव शुक्ला के हल्के कद के कारण नेगी ने उन्हें खास तवज्जो नहीं दी. अंतिम प्रयास के तहत जनरल नेगी की नाराज़गी दूर करने के लिए नई दिल्ली में उनकी मुलाकात सोनिया गांधी से कराई जा सकती है. इसी के साथ हरक ने पूर्व जनरल टीपीएस रावत को कांग्रेस में वापस लाकर जनरल खंडूडी की नींद हराम कर दी है.
गढ़वाल संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जनरल नेगी का नाम तक़रीबन तय हो गया था. नेगी समर्थकों का कहना है कि बाकायदा मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उन्हें दूरभाष पर जानकारी देकर चुनाव में जुटने को कहा था, लेकिन ऐन वक्त पर टिकट की दौड़ से नेगी को बाहर कर दिया गया. इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी के रूप में सेवानिवृत्त मेजर जनरल बीसी खंडूडी मैदान में हैं. जनरल नेगी की नाराज़गी को भाजपा भुनाना शुरू कर चुकी है, जिससे क्षेत्र में सतपाल महाराज के जाने से कांग्रेस के दरक उठे किले की जमीन भी अब खिसक रही है. खंडूडी के समक्ष हार के डर से कांग्रेस छोड़ने वाले महाराज के बाद पार्टी ने अपने अंतिम हथियार के रूप में डा. हरक सिंह को उतारा है. हरक भी जनरल खंडूडी के समक्ष कितनी देर तक टिकते हैं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन फिलहाल उन्होंने चुनाव को रोचक ज़रूर बना दिया है. हरक के मैदान में उतरने के बाद, खंडूडी है ज़रूरी का नारा जपने वाले भाजपाई अब नमो-नमो का जाप करके चुनावी समर जीतने की कोशिश में जुट गए हैं. -राजकुमार शर्मा
रेणुका के सेनापति हरीश
हरीश रावत इस सियासी जंग में रेणुका रावत के सेनापति की भूमिका में दिख रहे हैं. राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि हरिद्वार सीट पर स़िर्फ कांग्रेस नहीं, बल्कि राज्य सरकार भी लड़ रही है. दो दशकों तक राजनीति की मुख्य धारा से कटे रहे हरीश रावत ने अंतत: अपना पुराना घर (अल्मोड़ा) अपनी पत्नी रेणुका रावत को सौंपकर धर्मनगरी हरिद्वार का रुख कर लिया. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में उनका पुनर्वास हो गया. उधर उनकी पत्नी रेणुका रावत अपने पति की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए जूझती रहीं. वर्ष 2004 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ था, तो उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में पैर जमाने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें भाजपा के बची सिंह रावत के हाथों करारी शिकस्त मिली, तभी से रेणुका रावत भी राजनीतिक वनवास झेलती रही हैं.
अब हरीश राज्य के मुख्यमंत्री हैं, तो अपनी नई राजनीतिक विरासत संभालने के लिए एक बार फिर से अपनी पत्नी को आगे लाए हैं. सूत्रों का कहना है कि हरिद्वार सीट हर हाल में जीतकर हरीश रावत एक तो 2004 में अपनी पत्नी की हार का दाग धोना चाहते हैं और दूसरा उनका राजनीतिक वनवास ख़त्म करना चाहते हैं. इस समय हरीश कैंप को अन्य सीटों की बजाय हरिद्वार सीट की चिंता अधिक सता रही है. लिहाजा क़रीब 3.50 लाख मुस्लिम मतदाताओं के एकमुश्त वोट को अपने पक्ष में करने के लिए कारगर रणनीति तैयार की जा रही है. कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री रावत और उनका पूरा खेमा पूरी ताकत से हरिद्वार पर फोकस करेगा. इसी क्रम में हरीश ने कांग्रेस में अपने धुर विरोधी ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी से भी मुलाकात करके उनका आशीर्वाद लिया. हरीश इस चुनावी बेला में हरिद्वार सीट जीतने के लिए हर मंत्र का जाप करने को तैयार हैं. भाजपा ने धर्मनगरी हरिद्वार में निशंक को प्रत्याशी बनाकर जो गलती की है, उससे भाजपा को मोदी लहर पर पानी फिरता दिख रहा है. आप ने पूर्व डीजीपी कंचन चौधरी को अपना प्रत्याशी बनाया है. कंचन जिस तरह निशंक को उनके मुख्यमंत्रित्व काल में हुए कुंभ घोटाले पर बेपर्दा कर रही हैं, उससे रावत का काम आसान हो गया है. -रेनु शर्मा
उत्तराखंड : सैन्य परिवारों की नाराज़गी पड़ेगी भारी
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