वन्यजीवों की संख्या के लिहाज से 2015 उत्तराखंड के लिए जहां अच्छी खबरें लेकर आया था, वहीं वन के नजरिए से बुरी. 2015 में जहां 340 बाघों के साथ उत्तराखंड देश का दूसरा सबसे ज्यादा बाघों वाला राज्य बन गया, वहीं प्रदेश में आठ साल में जंगली हाथियों की संख्या 33 फीसद बढ़कर 1797 हो गई. 2015 के आंकड़े जारी करउत्तराखंड हाथियों की गणना सबसे पहले करने वाला देश का पहला राज्य बन गया.
भारतीय वन सर्वेेक्षण की एक रिपोर्ट ने निराशाजनक तस्वीर पेश की कि विकास के नाम परपिछले दो साल में प्रदेश के 268 वर्ग किमी वनावरण पर कुल्हाड़ी चल गई है. यही नहीं, 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से बंद उत्तरकाशी-तिब्बत सीमा की नेलंग घाटी को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया.
कुछ उलटबासियां भी देखी गईं. जैसे इको सेंसेटिव जोन का विरोध करने वाली सरकार ने खुद ही गंगोत्री-उत्तरकाशी इको सेंसिटिव जोन का मास्टर प्लान तैयार कर लिया और कहा कि 11 इको सेंसेटिव जोन और बनेंगे. इतना ही नहीं, साल खत्म होते-होते वन मंत्री दिनेश अग्रवाल पर हरिद्वार में उनके बेटे के स्टोन क्रशर को लेकर उंगलियां उठीं. इस साल कुछ घोषणाएं महज घोषणाएं रह गईं. वन विभाग ने 2008 के बाद गर्मियों में प्रदेश के वन्यजीवों की गणना की घोषणा की.
इसकी योजना अंजाम तक नहीं पहुंची. 2008 से लटकी बाघों की सुरक्षा के लिए स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के गठन की घोषणा, घोषणा ही रह गई. उत्तरकाशी से गंगोत्री तक इको सेंसेटिव जोन का भले की कांग्रेस व भाजपा समेत सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर विरोध करते रहे हों, सरकार ने न-न करते भागीरथी इको-सेंसेटिव जोन का जोनल मास्टर प्लान तैयार कर लिया. पहले वन विभाग ने चार यानी मसूरी के विनोग वन्यजीव विहार, गोविंद पशु विहार, फुलों की घाटी और नन्दादेवी बायोस्फीयर रिजर्व के इकोसेंसेटिव जोन के प्रस्ताव केंद्र को भेजे.
फिर प्रदेश के छह राष्ट्रीय पार्क के चारों ओर इको सेंसेंटिव जोन बनाने के प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिए. बाद में फैसला लिया गया कि अब प्रदेश कैबिनेट की इजाजत के बिना वन विभाग अपनी मर्जी से केंद्र को इको सेंसेंटिव जोन का प्रस्ताव नहीं भेज सकेगा. इधर, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने हरिद्वार जिले के तहत गंगा व इसकी सहायक नदियों पीली नदी, रवासन नदी-2, गंगा नदी विशनपुर, रवासन नदी-1, गंगा नदी श्यामपुर में उपखनिज के चुगान को मंजूरी दी.
केंद्र ने उत्तराखंड समेत सभी राज्यों को कैंपा फंड का 15 फीसद अपने विवेक से खर्च करने की छूट भी दी. उत्तराखंड की सबसे बड़ी और चौथी बर्ड सेंचुरी या बर्ड कंजरवेशन रिजर्व का प्रस्ताव भी तैयार कर लिया गया और नैनादेवी हिमालयन बर्ड कंजरवेशन रिजर्व (एनडीएटबीसीआर) की घोषणा की तैयारी भी हो गई. हिंसक वन्यजीवों के हमले में मारे गए लोगों के परिजनों को तीन की बजाय पांच लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान कर दिया गया. राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में सातताल, नैनीताल में बटरफ्लाई गार्डन को भी मंजूरी दी गई.
राजाजी नेशनल पार्क में गौहरी रैंज के अंतर्गत चौरासी कुटिया क्षेत्र को इको टूरिज्म के रूप में विकसित किए जाने, कार्बेट टाइगर रिजर्व की दक्षिणी सीमा में टाइगर सफारी की स्थापना किए जाने, राजाजी नेशनल पार्क की चीला रेंज में हाथी सफारी पार्क आरम्भ किए जाने की सहमति भी बोर्ड द्वारा दी
गई. प्रदेश सरकार ने कालागढ़ टाइगर रिजर्व के तहत आने वाली सिंचाई विभाग की कॉलोनी के विस्थापन के लिए केंद्र सरकार से धन की मांग की. केदारनाथ आपदा के बाद केंद्र सरकार ने 2014 में प्रदेश सरकार को दिसंबर तक जो पांच हेक्टेयर तक की वनभूमि के हस्तांतरण का अधिकार दिया था, वह 2015 तक के लिए
विस्तारित कर दिया गया.
वनाग्नि के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माने जाने वाले चीड़ के वनों के सफाए के लिए प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक देने की बात कही. प्रदेश में पिछले साल जहां मानव-गुलदार संघर्ष भी खतरनाक स्तर पर पहुंच गया और जुलाई तक ही 12 लोग गुलदारों के शिकार हुए, वहीं हाथियों से फसलों व बस्तियों की हिफाजत के लिए वन विभाग ने अफ्रीका से शुरू हुआ एक अनूठा प्रयोग उत्तराखंड में भी शुरू करने की बात कही. इस प्रयोग के तहत प्रदेश के तराई व भाबर के इन क्षेत्रों व खेतों के आस-पास मधुमक्खियों के छत्तों की दीवारें बनाई जाएंगी, जहां फसलों व बस्तियों पर हाथियों के हमले ज्यादा होते हैं.