उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में आजकल पूर्वांचल राज्य की मांग जोर पकड़ने लगी है. वैसे पूर्वांचल राज्य की यह मांग कोई नई नहीं है. बीते 30 वर्षों में समय-समय पर उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में पुनर्गठित करने की मांग उठती रही है और उत्तर प्रदेश में सक्रिय राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को अपने फायदे नुकसान के आकलन के साथ इस्तेमाल भी किया है.
21 नवम्बर 2011 को तत्कालीन बसपा सरकार द्वारा भी उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रस्ताव राज्य विधानसभा में लाया गया था, जिसे राज्य विधानसभा से पारित कर केंद्र सरकार को विचार के लिए भेज दिया गया था.
विधानसभा में पारित उस प्रस्ताव के अनुसार, उत्तर प्रदेश के चार भागों में क्रमशः पश्चिमांचल (पश्चिमी उत्तर प्रदेश), बुंदेलखंड, अवध (मध्य क्षेत्र) और पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) आते हैं. इसके अनुसार पश्चिमांचल में 17 जिले, बुंदेलखंड में 7 जिले, अवध क्षेत्र में 21 जिले तथा पूर्वांचल में सर्वाधिक 26 जिले आते हैं, जिसके अनुसार सर्वाधिक जनसंख्या पूर्वांचल की और न्यूनतम आबादी बुंदेलखंड क्षेत्र की होगी.
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी वाराणसी में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन की बात पर सहमति जताई थी और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मुख्यमंत्री बनने से पूर्व पूर्वांचल को राज्य बनाने का मसला उठाया था.
इसके अतिरिक्त अनेक संगठन जैसे, पूर्वांचल राज्य बनाओ दल, पूर्वांचल विकास पार्टी, पूर्वांचल जन आंदोलन आदि अस्तित्व में आए, लेकिन पूर्वांचल का विषय राजनीतिक नफा-नुकसान के बोझ तले दबकर कभी आम बहस के केंद्र में नहीं आ सका. उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन की मांग का फायदा केवल राजनीतिक तबका ही नहीं, बल्कि विकास की संभावनाओं को केंद्र में रखते हुए बुद्धिजीवी वर्ग भी उठाता ही रहा है.
दिसंबर 2016 के ‘इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ में ‘द डिमांड फॉर डिवीज़न ऑफ़ उत्तर प्रदेश एंड इट्स इम्प्लिकेशन्स’ शीर्षक से प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि ‘उत्तर प्रदेश का असमान क्षेत्रीय विकास राज्य के बड़े और अप्रबंधनीय आकार के कारण है, जो कि राज्य के विकास और बेहतर प्रशासन के लिए राज्य को छोटे राज्यों में पुनर्गठित करने का प्रमुख कारण बनता है.’ इसके अतिरिक्त 18 जनवरी 2018 को ‘रिफ्लेक्शन ऑफ़ इंडियाज डेमोग्राफिक फ्युचर’ विषय पर वक्तव्य देते हुए अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा था, ‘उत्तर प्रदेश का पुनर्गठन अपरिहार्य है.’