बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उत्तर प्रदेश में दो कार्यक्रमों की सुगबुगाहट से ही समाजवादी पार्टी इतनी सक्रिय हो गई कि आनन-फानन कुर्मी वोट मैनेज करने की कवायद होने लगी और मुलायम को बेनी प्रसाद वर्मा याद आने लगे. पार्टी ने ताबड़तोड़ प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और मीडिया के सामने बेनी को पेश कर दिया.
बेनी को सपा में शरीक कराया और अगले ही दिन राज्यसभा भेजे जाने वाले नेताओं की सूची जारी हो गई जिसमें बेनी का नाम चस्पा हो गया. बेनी के साथ-साथ अमर सिंह भी राज्यसभा के लिए सपा की पसंद बने, जिसकी संभावना पहले से थी. संभावना में एक चैनेल के मालिक का नाम पहले से चल रहा था, लेकिन लिस्ट जारी होते ही वह चर्चा थम गई.
इसी धुप्पल में समाजवादी पार्टी ने उस विवादास्पद बिल्डर संजय सेठ को भी राज्यसभा भेजने का फैसला संलग्न कर लिया, जिसके विधान परिषद भेजने पर राज्यपाल राम नाईक ने कानूनी आपत्ति जताई थी और राज्य सरकार राज्यपाल के विरोध का कोई जवाब नहीं दे पाई थी. इसके बाद संजय सेठ के ठिकानों पर आयकर और प्रवर्तन निदेशालय के छापे भी सुर्खियों में रहे. इन छापों के बाद इटावा में संजय सेठ द्वारा मुलायम को भेंट की गई आलीशान कोठी भी सुर्खियों में रही.
एवजिया पुरस्कार में संजय सेठ को राज्यसभा की सीट मिल गई. कानून अपनी जगह झेंपता रहा. सपा की तरफ से राज्यसभा के लिए चुने गए नामों में बेनी प्रसाद वर्मा, अमर सिंह, सुखराम यादव, रेवती रमण सिंह, विशम्भर प्रसाद निषाद, अरविंद सिंह और संजय सेठ शामिल हैं. सपा ने विधान परिषद के प्रत्याशियों के नाम भी साथ-साथ घोषित किए, जिनमें मुलायम के प्रिय सेवक रहे जगजीवन प्रसाद भी शामिल हैं. जगजीवन के अलावा बलराम यादव, शतरुद्र प्रकाश, यशवंत सिंह, बुक्कल नवाब, राम सुन्दर दास निषाद और गोंडा के रणविजय सिंह के नाम भी शामिल हैं.
राज्यसभा की लिस्ट फाइनल करने में सपा नेतृत्व ने राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव और अखिलेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री आजम खान की नाराजगी का कतई ध्यान नहीं रखा. इससे यह स्पष्ट संकेत मिला कि आने वाले समय में खास तौर पर विधानसभा चुनाव के समय रामगोपाल और आजम खान की क्या वकत रहने वाली है. रामगोपाल और आजम दोनों ने ही अपने-अपने अंदाज में पार्टी नेतृत्व का विरोध किया, लेकिन मुलायम पर इस विरोध का कोई असर नहीं पड़ा. बेनी और अमर को राज्यसभा भेजने पर मुलायम अडिग थे और वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव उनका साथ दे रहे थे.
रामगोपाल और आजम के कारण ही अमर सिंह पार्टी से बेदखल हुए थे और पार्टी में उनकी वापसी नहीं हो पाई थी. मुलायम सिंह यादव ने अमर सिंह को राज्यसभा का टिकट देकर आजम और रामगोपाल की कोई परवाह नहीं की. मुलायम सिंह का 75वां सालगिरह आलीशान तरीके से रामपुर में मनाने वाले आजम खान ने उनके 76वें सालगिरह पर अमर सिंह को देख कर कहा था कि जब तूफ़ान आता है तो कूड़ा करकट आ ही जाता है. ऐसा कह कर वे सैफई से चले गए थे. लेकिन उनके विरोध को नजरअंदाज कर मुलायम ने अमर सिंह को राज्यसभा का टिकट दे ही दिया. संसदीय बोर्ड की बैठक में प्रो. रामगोपाल ने विरोध दर्ज कराया लेकिन मुलायम ने उनके नाम पर मुहर लगा दी.
शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि जब नेताजी चाहेंगे अमर सिंह की पार्टी में वापसी भी हो जाएगी. अमर सिंह को राज्यसभा का टिकट दिए जाने से नाराज़ आजम खान ने कहा, नेताजी समाजवादी पार्टी के मालिक हैं, जिसे चाहें पार्टी में रखें. उनके फैसले को चुनौती देना मेरा अधिकार नहीं है. हालांकि यह बहुत दुखद कदम है.
बेनी प्रसाद वर्मा भी अमर सिंह के तीखे आलोचक रहे हैं. बेटे को टिकट न मिलने से नाराज होकर बेनी 2007 में पार्टी छोड़ गए थे. बेनी के बेटे राकेश वर्मा को अमर सिंह की वजह से ही टिकट नहीं मिला था. राज्यसभा का टिकट मिलते ही बेनी बोले कि पिछले दो साल से कांग्रेस पार्टी में उनका दम घुट रहा था. मुलायम सिंह यादव ने बेनी प्रसाद वर्मा का स्वागत करते हुए कहा कि बेनी हमारे पुराने साथी हैं. बेनी ने ही पार्टी को समाजवादी नाम दिया था. पार्टी बनाने में उनका बड़ा सहयोग मिला है. मेरे सारे राजनीतिक निर्णय में बेनी प्रसाद वर्मा हमारे साथ रहे. उनके पार्टी में शामिल होने से पूरे देश में एक संदेश जाएगा और सपा लखनऊ के साथ-साथ दिल्ली की लड़ाई भी लड़ेगी.