ssजनता दल (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संघ-मुक्त भारत और शराब-मुक्त समाज के आह्वान के साथ अपना मिशन 2019 आरंभ कर दिया है. मिशन 2019 के पहले अग्निपरीक्षा उत्तर प्रदेश में होनी है, लिहाजा उन्होंने अपना पहला पड़ाव देश के सबसे बड़े राज्य को बनाया है. नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी के पिंडरा में अपने मिशन की शुरुआत की. इसके बाद नीतीश लखनऊ पहुंचे. 12 मई को पिंडरा में और 15 मई को लखनऊ में नीतीश ने बिगुल फूंका.

इस अभियान को लेकर कुछ खास बातें उभर कर सामने आई हैं जिसे जदयू सुप्रीमो की भावी राजनीति के संकेत के रूप में देखा जा सकता है. साफ है कि नीतीश कुमार के शराब मुक्त समाज के नारे को व्यापक समर्थन मिलता दिख रहा है. महिलाओं की सक्रियता बढ़ने से यह अभियान गति पकड़ रहा है.

समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी को खुलकर ललकारने से नीतीश कुमार अब तक बचते रहे, लेकिन लखनऊ में शराबबंदी को लेकर उन्होंने सपा सरकार के समक्ष चुनौतियां उछालीं. इन सब गतिविधियों के बीच कांग्रेस को लेकर नीतीश का रुख हिन्दीपट्टी में नए राजनीतिक समीकरण की उम्मीदों को जन्म दे रहा है. उधर, बिहार में महागठबंधन के सबसे बड़े घटक राष्ट्रीय जनता दल के बड़े नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के बयान भी कम महत्व के नहीं माने जा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में नीतीश कुमार के दो कार्यक्रमों में से एक राजनीतिक था तो दूसरा बिल्कुल गैर राजनीतिक. वाराणसी के राजनीतिक आयोजन में उन्होंने मुख्यतः नरेंद्र मोदी, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को निशाने पर लिया और गत संसदीय चुनावों के दौरान देश से किए गए उनके वायदों को लेकर उनकी नीयत पर कई सवाल खड़े किए. भाजपा पर हमले के बाद उन्होंने शराबबंदी का मसला उठाया. बिहार में शराबबंदी के मिल रहे सकारात्मक नतीजों का उन्होंने जिक्र किया. उत्तर प्रदेश में नीतीश कुमार के अभियान को लेकर कुछ सवाल नए सिरे से उठ रहे हैं.

चौधरी अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) से पहले तो तालमेल की बात चली, फिर जदयू में उसके विलय की चर्चा चली. लेकिन यह धरातल पर नहीं उतरा. चौधरी अजित सिंह की कुछ स्वाभाविक शर्त्तें होती हैं, जो सब जानते हैं, लिहाजा तालमेल क्यों नहीं हुआ यह समझ में आता है. हालांकि नीतीश कुमार कहते हैं कि चौधरी का

दरवाजा अब भी खुला है. इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में सक्रिय एक क्षेत्रीय पार्टी से भी चुनावी तालमेल की चर्चा है. लेकिन जमीन पर अभी कहीं नहीं दिख रहा. नीतीश कुमार ने पिंडरा की सभा में पूर्वी उत्तर प्रदेश की 127 विधानसभा सीटों की खासतौर पर चर्चा की और पूर्वांचल को लेकर तैयारियों का संकेत दिया. उधर, झारखंड की हालत से दल में संतोष है.

धनबाद में शराबबंदी अभियान को लेकर आयोजित एक सभा में नीतीश कुमार के साथ मंच पर झारखंड विकास मोर्चा (झविमो) के सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भी मौजूद थे. मरांडी की मौजूदगी जदयू के साथ उनकी नजदीकियां जाहिर करती हैं और भविष्य में राजनीतिक साझीदार बनने के संकेत देती हैं. नीतीश कुमार के मिशन-2019 व मिशन उत्तर प्रदेश का राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने सार्वजनिक तौर पर समर्थन किया है. उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने भी अपने मुख्यमंत्री में पीएम मैटीरियल पाया है.

लेकिन पुराने समाजवादी और राजद के बड़े नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने नीतीश कुमार के इस अभियान को लेकर दो टूक बातें की हैं. उन्होंने नीतीश कुमार को नसीहत दी है कि वे बिहार पर ध्यान दें, यहां की स्थिति बिगड़ रही है. चूंकि स्टीयरिंग सीट पर नीतीश कुमार ही हैं तो सवाल भी उन्हीं से होना है और जवाब भी उन्हीं को देना है. इसके कुछ दिन बाद रघुवंश बाबू का दूसरा बयान आया कि नीतीश कुमार के ऐसे राजनीतिक अभियान से देश की सेकुलर राजनीति को नुकसान होगा. कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि महागठबंधन तो है ही नहीं, कुछ नेता आपस में मिल गए हैं.

रघुवंश बाबू के इन बयानों पर नीतीश कुमार और उनके खास नेताओं ने कोई टिप्पणी नहीं की है. उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने इसे रघुवंश बाबू की निजी राय कहा. राजद सुप्रीमो इस पर खामोश हैं. महागठबंधन में शरीक कांग्रेस नीतीश में पीएम मैटीरियल नहीं देखती. कांग्रेस गांधी परिवार को छोड़ कर किसी को बतौर नेता पेश नहीं कर सकती. गांधी परिवार की सारी उम्मीदें राहुल गांधी पर टिकी हैं और राहुल अधर में टंगे हैं.

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