घरों की साफ-सफाई, बाथरूम, किचन, सिंक, शॉवर्स और कपड़ों की धुलाई आदि से जो पानी निकलता है, वो पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है. एक बार उपयोग करने के बाद हम दुबारा उस पानी को प्रयोग में नहीं लाते हैं और वो नालियों में बहता हुआ बेकार चला जाता है. उसके बाद पीने के अलावा पानी से जुड़े दूसरे कार्यों के लिए भी हम फिर से भूमिगत जल पर निर्भर हो जाते हैं. आज के समय में जिस तरह से पानी की कमी होती जा रही है और भूमिगत जल का स्तर दिन-ब-दिन और नीचे होता जा रहा है, हमें अब इसे बचाने की तरफ ध्यान देना चाहिए.
इसके लिए हम घरेलू गंदे पानी को पुन: उपयोग में लाने का काम कर सकते हैं. हम यहां जिस घरेलू गंदे पानी की बात कर रहे हैं, उसका अभिप्राय मलमूत्र रहित उस दूषित जल से है, जो आमतौर पर किचन, साफ-सफाई और कपड़ों की धुलाई से निकलता है. ये घरेलू दूषित जल अपशिष्ट जल की अपेक्षा कम रोगजनक होते हैं. इसलिए इस जल को उपचारित करना ज्यादा आसान होता है और टॉयलेट फ्लशिंग, फसलों की सिंचाई जैसे कामों में ये पुन: उपयोगी साबित हो सकता है.
पूरी दिल्ली को सप्लाई किए जाने वाले 1000 एमसीएम पानी में से उपयोग के बाद करीब 800 एमसीएम पानी गंदे पानी के रूप में निकलता है. इसमें से करीब 465 एमसीएम को ही ट्रीट किया जाता है, बाकी का पानी या तो नालों के माध्यम से यमुना में पहुंच जाता है या ऐसे ही सड़कों मुहल्लों का गंदा करता है. ये पानी एक तरह से बर्बाद हो जाता है. लेकिन अगर चाहा जाय, तो इसे ट्रीट करके इसका घरेलू इस्तेमाल किया जा सकता है. घरेलू साफ-सफाई के
साथ-साथ खेती-किसानी में सिंचाई के रूप में भी इस पानी का प्रयोग किया जा सकता है. हाल ही में ऐसी एक अध्ययन रिपोर्ट भी आई थी, जिसमें घरेलू गंदे पानी से सिंचाई पर बल दिया गया था. उत्तराखंड के जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, नोएडा के गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय और देहरादून के भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा एक अध्ययन किया गया. इसमें ये बात सामने आई कि कृषि वानिकी में सिंचाई के लिए घरेलू दूषित जल के उपयोग से कम अवधि में तैयार होने वाली प्रजातियों के वृक्ष लगाने से एक साथ कई फायदे हो सकते हैं. ये अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि इस पहल से एक तरफ तो गंदे पानी के निपटारे में मदद मिलेगी, वहीं कृषि वानिकी में सिंचाई के लिए पानी की कमी और जैव ईंधन की कमी को भी इसके जरिए दूर किया जा सकेगा.
इस अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया था कि यूकेलिप्टस (यूकेलिप्टस हाइब्रिड), पॉपलर (पॉपलस डेल्टोइड्स), नम्रा (व्हाइट विलो) और बकाइन (चाइनाबेरी ट्री) के वृक्ष एक प्लाट में नियंत्रित रूप से लगाए गए. इन वृक्षों की सिंचाई के लिए समान्य साफ जल नहीं बल्कि घरेलू दूषित जल का उपयोग किया गया. इसके बाद इनकी तुलना उन पेड़ों से की गई जो सामान्य साफ जल से सिंचित किए गए थे. तुलना में ऐसा पाया गया कि घरेलू दूषित जल से सिंचित पेड़ों का जैव द्रवयमान (बायोमास) और उसकी आर्थिक उपयोगिता सामान्य साफ पानी से सिंचित पेड़ों से अधिक है. इसके आर्थिक मूल्यांकन से शोधकर्ताओं ने पाया कि ताजे पानी से सींचे गए पेड़ों की अपेक्षा घरेलू दूषित जल से सिंचित पेड़-पौधों से ज्यादा लाभ हो सकता है.