कुछ अशआर पेश-ए-ख़िदमत है…
हाकिम ए वक़्त से उम्मीद न पाली जाये।
हक़ कि आवाज़ में आवाज़ मिला ली जाये।
कोई हसरत कोई उम्मीद न पाली जाये।
ज़िंदगी जैसे चले वैसे चला ली जाये।
दिल की बातों में फ़क़त दिल की रज़ा ली जाये।
दिल कि बातों में मुई अक़्ल न डाली जाये।
मुत्तहिद हो के अगर ठान लिया जाये तो।
कैसे मुमकिन है कि संसद में मवाली जाये।
जिसको पढ़कर मिले नफ़रत से भरा मुस्तक़बिल।
ऐसी तारीख़ प तो ख़ाक ही डाली जाये।
एक हक़ वाला अगर दस को मुतासिर कर दे।
एन मुमकिन है कि सरकार बना ली जाये।
जब तलक चलती रहे सच की क़लम चलने दो।
जब कोई रोके तो तलवार उठा ली जाये।
पहले तस्दीक़ करें जाने ‘विजय’ का मक़सद।
बे सबब ही न कोई राय बना ली जाये
|| विजय तिवारी ||
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