-राघवेंद्र
बिहार और झारखंड में स्ट्रॉन्ग पॉलिटिकल कॉम्बिनेशन बनाने के लिए बिहार के कुशवाहा वोटबैंक के सबसे बड़े चेहरे केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा और झारखंड की कुर्मी राजनीति के हैवीवेट सुदेश महतो आने वाले दिनों में हाथ मिला सकते हैं. ऐसी खबरें आ रही हैं कि रालोसपा और आजसू के रणनीतिकारों के बीच इस बात पर कई बार मंथन हो चुका है. अगर ये दोनों दल किसी सियासी फार्मूले पर सहमत हो गए तो झारखंड और बिहार की कोयरी-कुर्मी राजनीति नए तरीके से गोलबंद होगी और आने वाले दिनों में जो नतीजे आएंगे वो चौंकाने वाले होंगे.

झारखंड में आदिवासी वोट बैंक तकरीबन 26 प्रतिशत है, उसके बाद सबसे बड़ी आबादी मुसलमान और कुर्मी वोटरों की है. अभी तक सुदेश महतो और हेमंत सोरेन दोनों ही कुर्मी वोट में अपनी सेंधमारी करते रहे हैं. कई इलाकों में इस वोट बैंक पर सुदेश महतो की पकड़ मजबूत है. सुदेश महतो ने इस वोट बैंक को गोलबंद करने के लिए हाल के दिनों में हर विधानसभा क्षेत्रों में कई कार्यक्रम किए हैं. वे खुद प्रदेश के हर हिस्से में जाकर कुर्मी नौजवानों को साथ आने का सन्देश दे रहे हैं. झारखंड की राजनीति को नजदीक से देखने वाले मनोज कुमार सिंह कहते हैं कि कुर्मी वोटरों की ये बड़ी आबादी झारखंड की राजनीति को प्रभावित कर सकती है. इस वोट बैंक में सेंध लगाने की सुदेश महतो की कोशिश का सकारात्मक असर भी देखने को मिल रहा है. कई अन्य जानकार भी बताते हैं कि झारखंड में कुर्मी वोट बैंक एकजुट नहीं है. अलग-अलग इलाकों के अलग समीकरण हैं. मसलन, कोल्हान क्षेत्र के कुर्मी ज्यादातर झामुमो उम्मीदवारों के पक्ष में खड़े नज़र आते हैं. यहां झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई कद्दावर कुर्मी नेता रहे हैं. शहीद निर्मल महतो से लेकर उप मुख्यमंत्री रहे सुधीर महतो तक इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. यहां आदिवासी और कुर्मी समाज साथ-साथ वोट करते हैं. बीच में भाजपा ने कुछ कुर्मी नेताओं को खड़ा कर, इस इलाके में झामुमो के वोटिंग पैटर्न को तोड़ने की कोशिश की. इसमें वे कुछ हद तक कामयाब भी हुए. सुदेश महतो की आजसू ने भी कोल्हान में कुर्मी समाज के नौजवानों को टिकट देकर चुनाव में सेंधमारी करने की कोशिश की. लेकिन इसमें वे बहुत कामयाब नहीं हुए.
कोल्हान के उलट संथाल परगना में कुर्मी वोटर पूरी तरह झामुमो के साथ खड़े दिखते हैं. यह झामुमो का गढ़ है. यहां से शिबू सोरेन सांसद हैं. पार्टी का एक और सांसद राजमहल से है. खुद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन संथाल से ही जीतते हैं. ऐसे में संथाल परगना क्षेत्र में मांझी (आदिवासी) महतो (कुर्मी) और मियां (मुसलमान) के दशकों पुराने सोशल इंजीनीयरिंग फार्मूले को तोड़ना किसी भी दल के लिए आसान नहीं है.

हालांकि हाल के वर्षों में भाजपा ने जरूर अपने संगठन का विस्तार किया है और उसके कई उम्मीदवार इस इलाके से जीते हैं. लेकिन कुछ माह पहले संथाल की एक सीट पर हुए उप-चुनाव में राज्य सरकार द्वारा पूरी ताकत लगाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम के बाद भी यहां से भाजपा का उम्मीदवार हार गया. झामुमो के उम्मीदवार ही यहां से जीते. यहां भाजपा का संगठन पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने खड़ा किया था. अभी उनकी जेवीएम पार्टी भी संथाल की कई सीटों पर मजबूत है. ऐसे में यहां आजसू को खड़ा करना सुदेश महतो के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. हाल के दिनों में सुदेश महतो ने उप राजधानी दुमका में कई कार्यक्रम किए हैं. उनकी सभाओं में काफी भीड़ जुट रही है. भीड़ को देखकर सुदेश आह्लादित भी हैं. उनका कहना है कि युवाओं का भरोसा आजसू में लगातार बढ़ रहा है. सुदेश आशान्वित हैं कि आने वाले दिनों में कुर्मी ही नहीं सभी समाज के युवा उनकी पार्टी से जुड़ेंगे और दल के चुनावी नतीजे बेहतर होंगे.

झारखंड की राजनीति के जानकार बताते हैं कि बिहार के कुर्मी-कोयरी और झारखंड के कुर्मी-कुशवाहा वोटरों में एक बड़ा अंतर है. यहां के कुर्मी अपने को आदिवासी के साथ जोड़कर देखते हैं और इसलिए वे एसटी दर्जा के लिए हमेशा सवाल उठाते हैं. ओबीसी दर्जे से यहां के कुर्मी संतुष्ट नहीं हैं. हालांकि प्रदेश में आदिवासियों की ही तरह कुर्मी समुदाय के लोगों की जमीनों की खरीद फरोख्त पर भी रोक है. कोई सामान्य श्रेणी का व्यक्ति कुर्मी की जमीन नहीं खरीद सकता. जबकि यादव या वैश्य के साथ ऐसा नहीं है. कुर्मी समाज के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री लालचंद महतो का कहना है कि झारखंड में कुर्मी समाज के साथ लगातार नाइंसाफी हुई है. इस समाज को सभी दलों ने छला है. इस समुदाय को काफी पहले एसटी दर्जा मिल जाना चाहिए था. वो कहते हैं कि कोयलांचल के कुछ इलाकों में सुदेश महतो का प्रभाव बढ़ा है, लेकिन पूरे राज्य में उनकी उपस्थिति नहीं है. वे कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा का झारखंड में व्यापक प्रभाव नहीं है, लेकिन अगर सुदेश महतो और उपेंद्र कुशवाहा साथ आए, तो निश्चितत रूप से दोनों समुदायों पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा. लालचंद महतो जैसे कई नेताओं के अलावा स्थानीय लोगों का भी मानना है कि चतरा और पलामू के तकरीबन आधा दर्जन कुशवाहा बहुल सीटों तथा कोयलांचल और बिहार सीमा से सटे कई सीटों पर ये युगलबंदी अपना कमाल दिखा सकती है.

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