कुछ साल पहले राष्ट्रीय सुरक्षा का मतलब होता था, देश की भौगोलिक सीमाओं की रक्षा. आज की सीमाविहीन दुनिया में राष्ट्रीय सुरक्षा का एक नया अर्थ है. अब देश की सुरक्षा साइबर सिस्टम से जुड़ी हुई है. आर्थिक प्रणाली और आधुनिक राष्ट्रों की प्रक्रिया की सुरक्षा पूरी तरह से सूचना प्रणालियों पर निर्भर हैं. किसी राष्ट्र की जनसांख्यिकीय और आर्थिक जानकारियां अगर अन्य देशों को मिल जाएं, तो यह भयावह हो सकता है. सरकार को अभी इसका एहसास हुआ है और अब वह साइबर सुरक्षा संगठन की स्थापना की प्रक्रिया में है. दुर्भाग्य से, सरकार इस मामले में देरी कर चुकी है. यूएस सरकार द्वारा जासूसी की घटना को स्नोडेन द्वारा सामने लाने से साबित होता है कि हम पहले ही अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता कर चुके हैं. यूआईडी योजना और इसकी प्रक्रियाओं की इस संदर्भ में जांच होनी चाहिए.
यूआईडी योजना
इस योजना में कई अलग-अलग सर्वर में एक केंद्रीय डाटा-बेस को संग्रहित किया जाना है, जिसमें जनसांख्यिकीय (नाम, पता, माता-पिता का नाम, उम्र व लिंग) और भारत के सभी निवासियों की बॉयोमीट्रिक जानकारियां शामिल होंगी. व्यक्तिगत पहचान प्रमाणित करने के लिए इन डाटा का इस्तेमाल सेवा प्रदाता कर सकेंगे. राज्य सरकारें, बैंक, बीमा कंपनियां, अस्पताल, स्कूल और शैक्षणिक संस्थान आदि भी यूआईडीएआई के केंद्रीय डाटा-बेस में मौजूद जानकारियों के अतिरिक्त अन्य जानकारियों के साथ अपना-अपना डाटा-बेस तैयार करेंगे. उपरोक्त संस्थान केवाईसी (अपने ग्राहक को जानिए) मानदंड के बहाने ये अतिरिक्त डाटा इकट्ठा करेंगी. यूआईडीएआई डाटा-बेस सार्वजनिक वित्त की मदद से स्थापित किया जा रहा है. यूआईडीएआई डेवलपिंग एप्लिकेशंस के लिए निजी कंपनियों को इन डाटा-बेस का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. जाहिर तौर पर डाटा-बेस के रखरखाव की लागत पूरी करने के लिए यह एक तरह का राजस्व मॉडल है. भारत के जनसांख्यिकीय डाटा का यूआईडीएआई द्वारा व्यापारिक फ़ायदा उठाए जाने का यह एक विचित्र व्यवसाय है. इस व्यवसाय मॉडल का विचार कैबिनेट रैंक प्राप्त एक आदमी का है और जो संविधान द्वारा लोगों की गोपनीयता के अधिकार की रक्षा के वचन से बंधा हुआ है. यह अधिकार सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, जीवन के अधिकार में निहित है. यह हमारे लिए एक झटके जैसा है. शायद एक न चुने गए सांसद के तौर पर यूआईडीएआई प्रमुख के लिए यह सब चिंता की बात नहीं थी.
यूआईडी प्रक्रिया
डाटा संग्रह, यहां तक कि बुनियादी आंकड़ों का संग्रह भी एक समय लेने वाली और श्रमसाध्य प्रक्रिया है. आबादी के आंकड़े तेजी से और लगातार परिवर्तित होते हैं. लोग सेकेंड में पैदा होते हैं, मरते हैं. लोग काम, शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य कारणों के लिए हमेशा गतिशील रहते हैं. एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहते हैं. इसलिए इस डाटा को अपडेट रखना या इसका सत्यापन और भी मुश्किल होता है. यूआईडीएआई ने इसके लिए आसान रास्ता निकाला और डाटा संग्रह का काम निजी एजेंसियों को दे दिया. इन्हें इन्रॉलिंग एजेंसीज (ईएएस) का नाम दे दिया गया. चयनित ईएएस का पैनल बनाया गया. यूआईडीएआई की वेबसाइट पर ईएएस की एक प्रारंभिक सूची थी. इसके पास पंजीयकों की भी एक सूची थी, जो सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन या सरकारी विभाग थे. इन रजिस्ट्रारों ने ईएएस पैनल में से कांट्रैक्टर्स का चयन कर उन्हें यूआईडी योजना में लोगों का इन्रॉलमेंट (नामांकन) करने का काम दे दिया. जैसा कि पहले कहा जा चुका है, यूआईडीएआई ने नामांकन करते समय लोगों से पहचान-पत्र और पते के प्रमाण के सुबूत देने को कहा. इन दस्तावेज़ों का सत्यापन नहीं किया गया, क्योंकि यह असंभव था. इससे कई तरह की धोखाधड़ी हुई. ईएएस का चयन और पैनल का गठन भी बेतरतीब ढंग से किया गया. चाय बागानों, शैक्षणिक संस्थानों, शेयर दलालों और यहां तक कि प्रिंटिंग प्रेस को ईएएस के रूप में नामांकित किया गया है.
विदेशी निजी कंपनियों को यूआईडीएआई के ठेके
इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि विदेशी निजी कंपनियों को यूआईडीएआई के ठेके दिए गए हैं. बॉयोमीट्रिक प्रौद्योगिकी के लिए एक निजी विदेशी अमेरिकी कंपनी एम/एस एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन को ठेका दे दिया गया. इस कंपनी को अब एक फ्रांसीसी कंपनी साफरान द्वारा टेकओवर कर लिया गया है. साफरान का नाम अब मोर्फो ट्रस्ट हो गया है. कंपनी के बोर्ड मेम्बर्स में पूर्व एफबीआई और सीआईए अधिकारी शामिल नहीं हैं. यह मूल रूप से दो अमेरिकी कंपनियों, मेसर्स विसाज टेक्नोलॉजी और आईडेंटिक्स के विलय के बाद बनी है. विसाज ने अपना क्लास-एक्शन मुक़दमा रफा-दफा किया, जिसमें उसके निदेशकों पर आरोप था कि उन्होंने एक नकारात्मक वित्तीय तिमाही रिपोर्ट की अग्रिम जानकारी की वजह से अपने स्टॉक बेच दिए थे. विसाज वही कंपनी है, जिसके स्टेट ड्राइवर्स लाइसेंस को जॉर्जिया राज्य के सुप्रीम कोर्ट ने ग़लतबयानी का आरोप लगाते हुए ग़ैर-क़ानूनी करार दिया था. यहां इस कंपनी से संबंधित जानकारी देने वाली इंटरनेट साइट का लिंक दिया जा रहा है:- http://americanpolicy.org/2010/10/28/the-revolving-door-that-never-stops-turning/.यूआईडीएआई और इस कंपनी के बीच हुए अनुबंधों की प्रतियां आरटीआई के तहत मांगी गईं, तो यूआईडीएआई ने देने से इंकार कर दिया. यूआईडीएआई की दूसरी कांट्रेक्टर कंपनी मेसर्स एसेंचर है. यह कंपनी ऑर्थर एंडरसन की पूर्व साझीदार (जो एनरॉन की ऑडिटिंग कंपनी थी और एनरॉन घोटाले के बाद धराशायी हो गई थी) द्वारा स्थापित की गई है. शुरुआत में यह कंपनी एक टैक्स हेवन बरमूडा में पंजीकृत थी, लेकिन जल्द ही यह अमेरिकी रक्षा मंत्रालय का कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने में कामयाब हो गई थी. अमेरिका में टैक्स हेवन में पंजीकृत कंपनियों पर प्रतिबंध है, जिससे बचने के लिए इस कंपनी ने आयरलैंड में दोबारा अपना पंजीयन कराया. एसेंचर को अमेरिका में रिश्वत विरोधी क़ानून, सौदे (निगोसिएशन) में सच्चाई के क़ानून और झूठा दावा क़ानून के तहत दोषी पाया गया था. यूआईडीएआई ने इस कंपनी के साथ हुए अपने अनुबंधों की प्रतियां देने से भी इंकार कर दिया.
आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (डी) का हवाला देते हुए यूआईडीएआई ने कहा कि इस कॉन्ट्रैक्ट की जानकारी आम करने से प्रतिस्पर्धा को नुक़सान पहुंचेगा. हालांकि, कॉन्ट्रैक्ट की प्रतियां न देने के लिए यह एक उचित कारण नहीं है, क्योंकि इसके कॉन्ट्रैक्ट पहले ही दिए जा चुके हैं और सरकार द्वारा फंड भी जारी किया जा चुका है. यूआईडीएआई पहले से ही बॉयोमीट्रिक प्रौद्योगिकी के लिए एक और ठेका साफरान की सहायक कंपनी एल आइडेंटिफाई सोल्यूशंस को दे चुका है. तो, यहां स्थिति ऐसी है कि एक ही विदेशी कंपनी के दो सहायक एक ही काम के लिए यूआईडीएआई के साथ अनुबंध किए हुए हैं.
यूआईडीएआई के ठेकेदारों के रूप में काम कर रही विदेशी कंपनियों से संबंधित एक आरटीआई पर लोक सूचना अधिकारी का जवाब है कि इन कंपनियों के मूल देश की पुष्टि करने का कोई तरीका नहीं है. संदिग्ध पृष्ठभूमि वाली इन विदेशी संस्थाओं को दिए जाने वाले ये ठेके राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वास्तविक और आसन्न ख़तरा हैं. हाल में अमेरिकी सरकार द्वारा हमारे देश की जासूसी का पर्दाफाश और इन कंपनियों का अमेरिकी खुफिया एजेंसियों से जुड़ा होना कई बातें साबित करता है. भारत में सक्रिय इन कंपनियों को रोकने के लिए तत्काल क़दम उठाने और कार्रवाई करने की ज़रूरत है. उनके कब्जे में पहले से ही जा चुके डाटा का हमारे ख़िलाफ़ ग़लत इस्तेमाल रोक पाना संभव होगा.
दोहरा ख़तरा
दो प्रमुख क्षेत्र हैं. नंबर एक, यूआईडीएआई डाटा संग्रह करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया. संदिग्ध पृष्ठभूमि वाली निजी कंपनियों को ईएएस पैनल में शामिल करना एक ख़तरा है. इन कंपनियों की निगरानी करने का कोई तरीका नहीं है. धोखाधड़ी की कई ख़बरें आ चुकी हैं. जांच के विवरण दबाकर रखे जाते हैं. तीन-चार साल बाद भी अदालत में आरोप-पत्र दाखिल किए जाने की कोई ख़बर नहीं है. यह राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत गोपनीयता के प्रति लापरवाही है. दूसरा ख़तरा अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के साथ इन कंपनियों के संबंधों से है. आख़िर भारत सरकार ने कैसे इसे स्वीकार किया?
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