भाजपा के दिग्गज रणनीतिकारों को उत्तराखंड में जद्दोजहद करनी पड़ रही है. उत्तराखंड के प्रति पूरी पार्टी बेहद सतर्क है. 70 विधानसभा वाले छोटे हिमालयी राज्य के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने दो-दो चुनाव प्रभारी नियुक्त किए हैं. जेपी नड्डा और धर्मेन्द्र प्रधान की गिनती पार्टी में बड़े रणनीतिकारों के साथ ही बेहद संगठनकर्ता के रूप में की जाती है. मोदी-शाह की जोड़ी हिमालय पर कमल खिलाने के साथ देश को कांग्रेस मुक्त हिमालय का भी संदेश देने के प्रयास में लगी हुई है.
भारतीय जनता पार्टी का उत्तराखंड फतह का सपना दिवास्वप्न ही सिद्ध हो रहा है. मोदी लहर के दौर में राज्य में सभी पांच की पांच संसदीय सीटों पर भगवा लहराने वाली भाजपा के विजय रथ को राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ऐसे थाम लिया है कि भाजपा के दिग्गज रणनीतिकारों को उससे पार पाने में मुश्किलें पेश आ रही हैं. गुजरात मॉडल का ढोल पीट कर भारत पर विजय पताका लहराने वाली मोदी-शाह की जोड़ी इन दिनों हिमालय फतह पर नित्य नई रणनीति को अमली जामा पहना रही है. कैलाश विजय वर्गीय को उत्तराखंड भेज कर हरीश सरकार में धनबल से भारी बगावत का बिगुल बजाने वाले भाजपा के दिग्गज रणनीतिकारों की हरीश सरकार को धराशाई करने की रणनीति परवान नहीं चढ़ सकी. मुकद्दर के सिकन्दर हरीश रावत ने भाजपा की रणनीति को ध्वस्त कर दिया. इस राजनीतिक हार से तिलमिलाए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह का अपनी पार्टी के दिग्गजों पर भरोसा नहीं रह गया. शाह अपने दिग्गज भामाशाहों को दरकिनार कर कांग्रेस से दगा करके आए उन दस विभीषणों पर कुछ ज्यादा भरोसा कर मिशन 2017 फतह की जिम्मेदारी उन्हें ही सौंपने पर विचार कर रहे हैं. भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता आज भी सूबे के हित के लिए ‘खंडूरी है जरूरी’ का नारा लगा रहे हैं, लेकिन उम्रदराज होने के कारण नेतृत्व उन्हें लगातार नकार रहा है. राज्य में पार्टी हाईकमान ने हरीश रावत सरकार की पोल खोलो यात्रा की जिस गर्मजोशी के साथ शुरुआत की थी, उसे परवान चढ़ने से पहले ही हरीश रावत ने उनसे उल्टा सवाल करके उसकी हवा निकाल दी. सधी भाषा में हरीश ने जो सवाल दागे उससे भाजपा को जवाब नहीं सूझा. हरीश रावत ने पूछा कि हमारे ही लोग जिन्हें कल तक भाजपा के लोग दैवी आपदा और कृषि सहित कई घोटालों के लिए खलनायक बताती थी, वही लोग आज भाजपा के नायक बने बैठे हैं, तो फिर पोल किसकी खोलेंगे!
भौगोलिक दृष्टि से छोटा लेकिन सियासी दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण राज्य उत्तराखंड के प्रति पूरी पार्टी बेहद सतर्क है. यही कारण है कि इस राज्य के 70 विधानसभा वाले छोटे हिमालयी राज्य के लिए शाह ने दो-दो चुनाव प्रभारी नियुक्त किए हैं. इस छोटे राज्य में रत्ती भर की चूक की गुंजाइश न रहे इसके लिए दो-दो दिग्गजों को मैदान में उतारा गया है. उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के सवाल पर कांग्रेस और भाजपा में सियासी दंगल का एक दौर पूरा हो चुका है, जिसमें राजनीतिक चूक के कारण भाजपा की देश की सर्वोच्च अदालत में भारी किरकिरी हो चुकी है. राज्य में वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा पर्वतीय राज्य में सत्ता पर वापसी की कवायद में लगी है. दूसरी तरफ कांग्रेस हाईकमान हरीश रावत पर पूरा भरोसा कर चल रहा है.
कांग्रेसियों को रावत-कांग्रेस का भय
धर्म नगरी हरिद्वार से हरीश रावत सरकार के विरुद्ध उठी चिंगारी को शोला में बदलने का भाजपा को इंतजार है. कांग्रेस के एक पूर्व विधायक द्वारा इंदिरा गांधी के नाम पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री रावत ने प्रदेश संगठन के मुखिया किशोर उपाध्याय के न चाहते हुए भी भाग लेकर यह स्पष्ट कर दिया की रावत अपने बूते चलते हैं, प्रदेश संगठन के बूते नहीं. कार्यक्रम इंदिरा गांधी के नाम पर आयोजित था, लेकिन इसके लिए कांग्रेस आलाकमान से मंजूरी नहीं ली गई थी. इसीलिए कांग्रेसी उसे कांग्रेस का कार्यक्रम नहीं मान रहे थे. इसी कारण प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय भी नहीं चाहते थे कि मुख्यमंत्री या कोई अन्य नेता उस कार्यक्रम में जाएं. उन्होंने यह भी कहा था कि जो नेता उस कार्यक्रम में जाएगा उसके खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई भी की जा सकती है. लेकिन मुख्यमंत्री हरीश रावत उस कार्यक्रम में बाकायदा मौजूद हुए. कांग्रेसी कहते हैं कि रावत की मनमानी के कारण ही कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और डॉ. हरक सिंह समेत 10 नेता कांग्रेस छोड़ कर अमित शाह के कांग्रेस मुक्त उत्तराखंड अभियान को साकार करने चले गए. मुख्यमंत्री रावत और प्रदेश अध्यक्ष किशोर में इन दिनों राजनीतिक महत्वाकांक्षा की खींचतान जबरदस्त चल रही है. कांग्रेस के दिग्गजों के साथ-साथ आम कार्यकर्ताओं को भी रावत-कांग्रेस के अस्तित्व में आने का भय सता रहा है.