भोपाल। त्यौहार के मायने खुशी और खुशी का अर्थ दूसरों के चेहरे पर मुस्कान। सबकी खुशी में अपना सुख तलाशने वाले कम पाए जाने वाले लोगों में आर्किटेक्ट एसएम हुसैन का नाम भी शामिल है। जिन्होंने ईद की सच्ची खुशी महसूस करने एक नई इबारत खड़ी कर डाली। आमतौर पर कुर्बानी के बकरे का एक निर्धारित हिस्सा गरीब, कमजोर और मजलूम लोगों में वितरित करने का रिवाज और धार्मिक आदेश है। लेकिन हुसैन ने गरीबों की खुशियों को बढ़ाने एक या दो नहीं तीन बकरे ही ऐसे लोगों के हवाले कर दिए, जिन्होंने अपनी मुफलिसी की वजह से कभी खुद कुर्बानी करने का सुकून हासिल नहीं किया था।

राजधानी भोपाल के आर्किटेक्ट एसएम हुसैन वैसे तो कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं और हमेशा किसी नवाचार के लिए कोशिश में जुटे रहते हैं। इस बार उन्हें ये मौका ईद उल अजहा के रूप में मिला। करीब एक सप्ताह पहले वे काम के सिलैले में इंदौर के नवलखा क्षेत्र की एक गरीब बस्ती में पहुंचे थे। कुछ मजदूर पेशा लोगों में उन्हें मुस्लिम समुदाय के लोग मिले तो उन्होंने ईद के हवाले से कुर्बानी करने के बारे में इन मजदूरों के विचार जाने। जवाब मिला, दो वक्त की रोटी बमुश्किल कमा पाते हैं, कुर्बानी कर पाना उनके लिए ख्वाब जैसा है। मजदूरों ने ये भी बताया कि शहर से दूर बसे होने के चलते उनकी फिक्र के लिए वे लोग भी नहीं आ पाते, जो आमतौर पर त्योहारों के दौरान गरीबों का खयाल रखने का दावा करते हैं। हुसैन को मजदूरों को यह मजबूरी आहत कर गई और उन्होंने आनन फानन में एक बकरा खरीद कर इनके हवाले किया। साथ ही इस बकरे की कुर्बानी पर होने वाला खर्च भी उन्होंने अदा किया। इस बकरे की कुर्बानी से मिलने वाले मीट पर पूरा अधिकार इन गरीब लोगों का होगा ये ऐलान भी वे करके आए हैं।

फिर आगे बढ़ा सिलसिला
हुसैन ने अपने इस नवाचार के बारे में अपने मिलने वालों और रिश्तेदारों को बताया तो वे भी इससे बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने भी इस प्रक्रिया को अपनाने में अपनी रुचि जाहिर की। इस मंशा के साथ जब तलाश की गई तो इंदौर के ही खजराना क्षेत्र में ऐसे कुछ लोग मिल गए। इन्हें भी एक अलग बकरा सौंपकर कुर्बानी का सुख और सवाब हासिल करने के लिए दिया गया। हुसैन के कदम यहीं नहीं ठहरे और उन्होंने भोपाल में अपनी एक टाउनशिप के मजदूरों के लिए भी एक बकरे का इंतजाम करवा दिया।

करके देखो, अच्छा लगता है
आर्किटेक्ट एसएम हुसैन कहते हैं हम अपने लिए जीते हैं, कमाते हैं और सारे कर्म उसके आसपास ही केंद्रित रखते हैं। लेकिन किसी और के लिए किए गए किसी काम से जो राहत, सुकून, तसल्ली मिलती है, वह नायाब और दुर्लभ है। किसी के चेहरे की मुस्कान अपने दिल के हर कोने का सुकून बन जाती है। ये करके ही महसूस किया जा सकता है।

काजी साहब से पूछा मसला
कुर्बानी के लिए दिए गए जानवर से मिले गोश्त को तीन हिस्सों में बांटने का धार्मिक फरमान है। इसमें एक हिस्सा खुद के लिए, दूसरा रिश्तेदारों और तीसरा हिस्सा गरीबों को देने का हुक्म है। हुसैन ने शहर काजी सैयद मुश्ताक अली नदवी से मसला पर व्यवस्था पता की कि यदि एक हिस्सा पड़ोसियों के नाम किया जाए तो क्या ये मुनासिब होगा। जवाब मिला ऐसा किया जा सकता है। हुसैन कहते हैं कि इस बार किए गए इस काम को आने वाले साल में और आगे बढ़ाएंगे। साथ ही इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करेंगे।

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