aadiwasiउत्तर प्रदेश विधानसभा में आदिवासियों के लिए सीट आरक्षित करने के लिए आदिवासी अधिकार मंच ने पिछले दिनों दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन किया. पिछले लंबे अर्से से उत्तर प्रदेश के सोनभद्र और अन्य आदिवासी बहुल इलाकों में चल रहे आंदोलन के क्रम में आदिवासी समुदाय के लोगों, किसानों, मजदूरों और महिलाओं ने बड़ी तादाद में राजधानी दिल्ली के धरना-प्रदर्शन में हिस्सा लिया.

उत्तर प्रदेश में आदिवासी समुदाय की आबादी 11 लाख से अधिक है. हाईकोर्ट ने 2012 में आदिवासी समुदाय को उनकी आबादी के अनुपात में विधानसभा में सीट आरक्षित करने का आदेश दिया था. इसके अनुपालन में तत्कालीन सरकार ने अध्यादेश और विधेयक के जरिए दुद्धी और ओबरा विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने की अधिसूचना जारी कर दी.

लेकिन विडंबना यह रही कि केंद्र सरकार ने 4 जुलाई 2014 को राज्यसभा में विधेयक वापस ले लिया. इस वजह से अधिसूचना लागू नहीं हो पाई और उत्तर प्रदेश के आदिवासी राजनीतिक प्रतिनिधित्व से ही वंचित हो गए. राजधानी दिल्ली में आयोजित धरना-प्रदर्शन के माध्यम से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पूर्व केंद्र सरकार से अध्यादेश लाकर दुद्धी और ओबरा विधासभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने की मांग की गई. इस संबंध में प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया गया.

जंतर-मंतर पर ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) समर्थित आदिवासी अधिकार मंच की तरफ से आयोजित धरना और आमसभा का नेतृत्व पूर्व मंत्री विजय सिंह गोंड़ ने किया. आइपीएफ के प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर ने सभा का संचालन किया.

आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि मोदी सरकार संविधान द्वारा प्रदत्त दलित, आदिवासी और उत्पीड़ित समुदाय के अधिकारों को खत्म करने में लगी हुई है. किसानों, मजदूरों, आदिवासियों, दलितों व अल्पसंख्यकों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है. कारपोरेटपरस्त नीतियों के जरिए इन तबकों के अस्तित्व पर हमला किया जा रहा है. संविधान और उसमें दिए अधिकारों की रक्षा के लिए आदिवासी समाज का यह आंदोलन देश में चल रहे लोकतांत्रिक आंदोलनों की धुरी बनेगा और एक नई जन राजनीति को जन्म देगा.

स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने आदिवासी आंदोलन का समर्थन करते हुए स्वराज अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रशांत भूषण का संदेश सुनाया, जो बीमारी की वजह से धरने में शामिल नहीं हो पाए थे. प्रशांत भूषण ने आश्‍वासन दिया है कि यूपी विधानसभा में आदिवासी समाज के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के संवैधानिक अधिकार की रक्षा के लिए वे सर्वोच्च न्यायालय से अपील करेंगे.

योगेंद्र यादव ने कहा कि मोदी सरकार के सबका विकास मॉडल में इस देश में रहने वाले आदिवासी, दलित, महिलाएं और अल्पसंख्यक नहीं हैं. भाजपा और उसकी सरकारों का एक ही मकसद है, आदिवासी समाज को खत्म करना. छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, असम, तेलंगाना, ओड़ीशा से लेकर देश के हर हिस्से में रहने वाले आदिवासी समाज के अस्तित्व और अस्मिता पर हमला हो रहा है. आदिवासियों के पक्ष में उठने वाली लोकतांत्रिक आवाज को खामोश करने की कोशिश हो रही है. 

सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने यूपी के आदिवासियों के सवाल को संसद में उठाने का आश्‍वासन देते हुए सीपीएम की तरफ से आदिवासी मांगों का समर्थन किया. करात ने कहा कि मोदी सरकार ने वृक्षारोपण के लिए कैम्पा कानून बनाकर वनाधिकार कानून को कमजोर कर दिया है और घने जंगलों में प्रतिबंधित मुख्य खनिजों के खनन की अनुमति प्रदान कर इन जंगलों में रह रहे आदिवासी, दलित व वनाश्रित जातियों की बड़े पैमाने पर बेदखली का रास्ता खोल दिया है.

मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही आदिवासियों और दलितों के विकास के लिए बजट में आवंटित होने वाली धनराशि में भी 32105 करोड़ रुपये की भारी कटौती कर दी. आदिवासियों के लिए वर्ष 2014-15 में आवंटित 26,714 करोड़ को घटाकर वर्ष 2015-16 में 19,980 करोड़ और वर्ष 2016-17 में 23,790 करोड़ रुपये कर दिया गया है. आदिवासियों के जीवन के लिए जरूरी मनरेगा, शिक्षा व स्वास्थ्य और छात्रवृत्ति के बजट में भी भारी कटौती की गई है.

पूर्व आईजी व आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एसआर दारापुरी ने आदिवासी समाज को विकास की मुख्यधारा से काट दिए जाने के कुचक्र पर चिंता जताई और कहा कि यूपी के सोनभद्र का आदिवासी क्षेत्र ओड़ीशा के कालाहांडी से भी बदतर है, जहां गांवों में जाने को सड़क तक नहीं है. लोग चुआड़, नालों और बांध से पानी पीकर मरने के लिए अभिशप्त हैं. शिक्षा और इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है.

पूर्व मंत्री विजय सिंह गोंड़ ने कहा कि उत्तर प्रदेश में आदिवासी समाज के साथ बड़ा अन्याय हुआ है. 2003 में गोड़, खरवार, चेरों, मांझी, पनिका, अगरिया, भुइंया, बैगा समेत जिन दस आदिवासी जातियों को आदिवासी का दर्जा दिया गया, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी आज तक विधानसभा और लोकसभा में राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया. जबकि इन जातियों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्‍चित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने 2012 में तत्कालीन केंद्र सरकार को निर्देश दिए थे.

उसके अनुपालन में अध्यादेश और विधेयक लाया गया और चुनाव आयोग ने जनसुनवाई कर दुद्धी एवं ओबरा विधानसभा सीटों को आदिवासी समाज के लिए आरक्षित करने की अधिसूचना भारत सरकार को 13 जनवरी 2014 को भेज दी. लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे लागू करने के लिए जरूरी विधेयक को संसद से पारित नहीं किया और मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति प्रतिनिधित्व का पुनः समायोजन विधेयक (तीसरा) 2013 वापस ले लिया.

समाजवादी पार्टी और बसपा ने भी आदिवासी समाज के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए संसद में रखे विधेयक का समर्थन करने के बजाय इसका इसका विरोध किया. यह भी विडंबना ही है कि उत्तर प्रदेश की कोल, धांगर जैसी आदिवासी जातियों को आदिवासी का दर्जा तक नहीं है. जिन गोड़, खरवार समेत दस आदिवासी जातियों को आदिवासी का दर्जा भी दिया गया उन्हें भी पूरे प्रदेश में आदिवासी नहीं माना गया. कुछ जिलों में वह अनुसूचित जनजाति में है तो प्रदेश के बडे हिस्से में वह अनुसूचित जाति में है.

केंद्र सरकार से मांग की गई कि यूपी के विधानसभा चुनाव से पहले अध्यादेश लाकर दुद्धी व ओबरा विधानसभा सीट आदिवासी समाज के लिए आरक्षित की जाए. मंच ने यह भी मांग की कि उत्तर प्रदेश में सभी आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए और वनाधिकार कानून के तहत आदिवासियों और वनाश्रितों को जमीन पर अधिकार दिए जाएं.

आमसभा को दिल्ली विश्‍वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, जेएनयू की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद, दिल्ली के जोशी अधिकारी संस्थान के विनीत तिवारी, गांधी संस्थान की रजिस्ट्रार मुनीजा रफीक खान, पूर्व सांसद राम निहोर राकेश, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष अनीता राकेश, इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष लाल बहादुर सिंह, अखिल भारतीय गोंड़ महासभा के अध्यक्ष राजेश गोंड़,

गोंड़वाना स्टूडेन्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष अरविन्द गोंड, गोंड़वाना गणतंत्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशर्फी सिंह परस्ते, पूर्व प्रधान राम दुलारे गोंड़, प्रधान राजेन्द्र ओयमा, बबई मरकाम, ललित गोंड़, रमेश सिंह खरवार, रामेश्‍वर प्रसाद, रामजी गोंड़, नसीम खान, मुक्ति तिर्की, राजमंगल गोंड़, अजीत सिंह यादव, राजेश सचान, मनोज शाह, विजय सिंह मरकाम, सुरेन्द्र पाल, रवि कुमार गोंड़, अंजनी पटेल, परमेश्वर कोल, अरुण गोंड़ आदि ने भी संबोधित किया.

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