वर्षों से उपेक्षित बिहार का कश्मीर कहे जाने वाले ककोलत की वादियां एक बार फिर पर्यटकों से गुलजार हो गई हैं. बिहार का प्रसिद्ध और चर्चित जलप्रपात ककोलत नवादा जिले के गोविन्दपुर प्रखंड में पड़ता है. पिछले डेढ़ दशक से यहां देशी-विदेशी पर्यटकों का आना बहुत कम हो गया था. कारण था ककोलत तक पहुंचने वाली जर्जर सड़क और पर्यटकों की सुरक्षा का अभाव. दूसरी ओर नक्सलियों की ककोलत के आस-पास बढ़ती सक्रियता से भी पर्यटक नहीं आना चाहते थे.
इन्हीं कारणों ने डेढ़ दशक से ककोलत की रौनक को समाप्त कर दिया था. राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर नवादा जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है फतेहपुर मोड़. यहीं से ककोलत जाने का रास्ता है. फतेहपुर से ककोलत जाने वाली सड़क बहुत जर्जर हुआ करती थी. हालत ये थी कि एक बार इस सड़क से गुजरने के बाद पर्यटक दोबारा इधर आने का साहस नहीं जुटा पाते थे.
ऐसी स्थिति के कारण ककोलत जलप्रपात की रौनक समाप्त होने लगी थी. 2012 की बाढ़ में तो ककोलत की सीढ़ियां भी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई थीं. यहां पहुंचने पर सैलानियों की सुरक्षा भी प्रशासन के लिए बड़ी समस्या थी. नक्सलियों का आसपास के इलाकों में बढ़ती चहलकदमी की भी चर्चा अक्सर होती थी, जिसके कारण आसपास के जिले के लोग भी यहां आने से कतराने लगे. गर्मी के दिनों में बिहार का कश्मीर कहा जाने वाला ककोलत सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनकर रह गया था.
इस वर्ष के शुरू में फतेहपुर से थाली और थाली से ककोलत जाने वाली सड़क का निर्माण होने और वन विभाग की ओर से टूटी सीढ़ियों को बना देने से पर्यटकों का जलप्रपात तक पहुंचना आसान हो गया है. आवाजाही के बेहतर साधन होने के बाद गर्मी के शुरू से ही यानी फरवरी महीने से लोग ककोलत जलप्रपात का रुख करने लगे. बिहार का पर्यटन विभाग भी अपनी बसों से पर्यटकों को ककोलत की सैर कराने लगा है, जिससे विदेशी पर्यटकों का आना भी यहां शुरू हो गया है.
आज गर्मी में प्रतिदिन औसतन दस हजार लोग ककोलत जलप्रपात के शीतल जल में डुबकी लगाकर गर्मी की तपिश मिटा रहे हैं. अब फिर से ककोलत की रौनक लौटने लगी है. ककोलत विकास परिषद के अध्यक्ष मसीउद्दीन बताते हैं कि परिषद के कार्यकर्ता यहां आने वाले पर्यटकों की सुरक्षा व उनकी सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. वाहनों की सुरक्षा से लेकर नाश्ता-भोजन कराने की जिम्मेवारी भी ककोलत विकास परिषद के कार्यकर्ताओं की है.
ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को अपने दामन में समेटे ककोलत एक खूबसूरत पहाड़ी से गिरता हुआ एक झरना है. फतेहपुर मोड़ से थाली नामक स्थान पहुंचने पर ही ककोलत जलप्रपात की शीतलता का अहसास होने लगता है. ककोलत जलप्रपात में 150 से 160 फीट से पानी नीचे गिरता है. पहले इस जलप्रपात के नीचे स्थित तालाब में उबड़-खाबड़ पत्थरों के रहने के कारण कई लोगों की जान जा चुकी है.
1996 में गया के तत्कालीन वन पदाधिकारी वाईके सिंह चौहान ने नवादा जिला प्रशासन की मदद से इस तालाब की भूमि को बराबर कर आकर्षक रूप प्रदान किया था. वन विभाग का गेस्ट हाउस भी तब वहां बना था, तब ककोलत जलप्रपात के नए रंग-रूप से दूर-दराज के लोगों का भी आना शुरू हो गया था. कुछ वर्षों तक गर्मी में देशी-विदेशी पर्यटकों का आना जारी रहा, धीरे-धीरे जब यहां पहुंचने वाली सड़क जर्जर हो गई और सुरक्षा का अभाव दिखने लगा, तब लोगों का आना बहुत कम हो गया. लेकिन आज स्थिति बिल्कुल बदल गई है.
ककोलत जलप्रपात के संबंध में चर्चित पौराणिक आख्यान के अनुसार त्रेता युग में एक राजा को किसी ने शाप दे दिया. शाप के कारण राजा अजगर बन गया और वह यहां रहने लगा. द्वापर युग में पांडव अपना वनवास व्यतीत करते हुए यहां आए थे. पांडव के आशीर्वाद से राजा को इस शाप से मुक्ति मिली. शाप से मुक्ति मिलने के बाद राजा ने भविष्यवाणी की कि कोई भी इस झरने में स्नान करेगा, वह कभी भी सर्प योनि में जन्म नहीं लेगा.
यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग ककोलत जलप्रपात में स्नान करने आते हैं. वैशाखी और चैत्र संक्रांति के अवसर पर विसुआ मेले का आयोजन किया जाता है. इसी मेले के बाद ककोलत आने की शुरुआत भी मानी जाती है. वैसे लोग फरवरी से ही यहां आने लगते हैं. जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, ककोलत जलप्रपात की रौनक भी बढ़ती जाती है.