आज नानक देव जी की जयंती का दिवस है पंद्रहवीं शताब्दी में नानक जी के समकालीन आसाम में शंकर देव, माधव देव, बंगाल में चैतन्य महाप्रभु तथा कबीरदास, रैदास (1469-1539) जैसे संतों के समकालीन थे !
लेकिन अध्यात्मिक समानता के अलावा नानक देव जी के चिंतन में दलित, स्री, तथा अन्य धर्मों के बारे में औदार्य और उनके लिए न्याय के लिए कि गई विशेष कोशिश, विशेष रूप से उनकी अलग पहचान दिखती है ! तत्कालीन शासको की निरंकुशता और स्वार्थी ब्राह्मणशाही के कब्जे से मुक्त समाज और नैतिक रूप से प्रेरित, कर्मयोगी जीवन का स्वप्न के परिणाम स्वरूप उनके सृजनशिल दूरदर्शीता के परिणाम स्वरूप शिख संप्रदाय का जन्म हुआ है !
विश्व के अन्य धर्मों की तुलना में इसे सबसे तरुण धर्म कहा तो भी गलत नहीं होगा ! वैसे इराणमे बहुउल्ला ने दो सौ साल पहले बहाई पंथ की स्थापना की है ! लेकिन वह धर्म का रूप अबतक नहीं ले सका ! एक छोटा समुदाय के रूप में ही उसका अस्तित्व है !
लेकिन पंद्रहवीं शताब्दी में नानक जी द्वारा स्थापित इस धर्म का उदय, भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य के और अंग्रेजी साम्राज्य का बीच का समय होने के कारण ! वर्तमान भारत और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में बहुत ही आक्रमक और क्रांति के आग में लहलहाती स्थिति में शिख धर्म फैला हुआ है ! अगल-बगल की परिस्थिति उस समय के लोगों का मानस बनाने का काम करती है ! और इसी कारण उनके अनुयायियों को देखकर लगता है कि हमारे देश के सबसे निर्भय कौम अगर कोई है तो शिख !
खुद नानक देव जी का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के लाहौर के पास राय-भोय-की तलवंडी नाम के गांव में हुआ है ! जो अब पाकिस्तान में है ! और उसका अब नानकाना साहब के नाम से जाना जाता है ! मेहता कालू उर्फ कल्याण राय नाम के एक हिंदू व्यापारि और पटवारी का काम करने वाले किसान परिवार में हुआ है ! आज 19 नवम्बर 1469 के दिन ! यानी आज पाचसौ बावन साल पूरे हो रहें हैं ! 2019 में साडे पाँच सौ साल हुए थे !
कुल सत्तर साल की उम्र के जीवन के शुरू में ! उनके चिंतनशील स्वभाव को देखकर घर वाले लोगों को लगा कि यह साधु, बैरागी न बने ! इसलिए अठारह साल की उम्र के थे तो शादी कर दी ! सुलख्खनी माता के साथ विवाह होनेके पस्चात दो लडकोका जन्म हुआ ! बडा श्रीचंद बचपन से ही सन्यस्त स्वभाव का था ! तो उसने शिखोके अंदर ही उदासी नाम के संप्रदाय की स्थापना की है ! इस पंथ के लोग विरक्त जीवन जीते हुए धर्म, तत्वज्ञान के क्षेत्र में ज्ञानसाधना का काम करते हैं ! अठारहवीं सदी में जब तत्कालीन शासको की निरंकुशता के कारण ! काफी शिख मारे गए ! लेकिन उदासी संप्रदाय के लोगों ने अधिकृत रूप से शिख धर्म का स्वीकार नहीं करने के कारण, वह बच गए ! यह संप्रदाय के लोगों ने शिखोके मंदिरों की देखभाल करने ! और शिख धर्म का प्रचार-प्रसार करने की ! बहुत बड़ी भूमिका निभाने का काम किया है ! और नानकजी के छोटे बेटे लखमीदासने यथासमय विवाह किया है ! और उनके कारण पैदा हुई संतति को आगे चलकर, शिख संप्रदाय में बेदी-साहबजादे के नाम से बहुत ही सम्मानित माना जाता है ! और गुरु नानक देव जी के वंशज होने के कारण काफी सम्मानित माना जाता है !
हालांकि खुद नानक देव जी ने अपने दोनों बेटों के बावजूद अपने उत्तराधिकारी के रूप में ,लहना नाम के अपने निष्ठावान शिष्य को अंगद नामकरण करके ! अपना उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया है ! और इस निर्णय का विवाद भी हुआ है ! कि उन्होंने अपने दोनों बेटों के रहते हुए क्यों किसी पराये को अपना उत्तराधिकारी बनाया ? लेकिन इस तरह के विवाद की परवाह न करते हुए अपने उन्होंने अपने दोनों बेटों में से किसी भी एक को नहीं बनाया ! और यह बात आजसे साडे पाँच सौ साल पहले की है ! जबकि किसी जनतांत्रिक पद्दती का नामो-निशान तक नहीं था उल्टा सामंती समाज व्यवस्था के कारण राजशाही का दस्तूर था !
वर्तमान परिवार आधारित राजनीति ! जो मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति मे आज हावी है ! और सबसे ज्यादा भारत में ! आज गुरु नानक देव जी के पाचसौ बावन साल के जन्मदिन पर प्रकाश पर्व मनाने के साथ ! अगर थोड़ा प्रकाश भारत की राजनीति और समजनिती में भी आ जाय ! तो कितनी बडी बात होगी ? और यही सच्ची भक्ति गुरु नानक देव जी के बारे में होगी ! नहीं सिर्फ उनके नामस्मरण के कर्मकांड करने से ! और लहना शुरू से ही सेवाभावी होने के कारण ! गुरु नानक देव जी ने उसके समर्पण की भावना को देखकर ! और उसकी काबिलियत को देखकर ही उसे अपने पारिवारिक सदस्यों के विरुद्ध जाकर उसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया है ! और अंगदने अपनी योग्यता का परिचय श्री गुरु नानक देव जी की रचनाओको संकलित कर के ! उन्हे अंतिम रूप देने का महत्वपूर्ण योगदान दिया है ! और गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में आज उसे जाना जाता है ! और समस्त विश्व के शिख उसे पूजते हैं !
उसमें की प्रातकालीय प्रार्थना जपुजी करके विशेष रूप से देखकर पता चलता है ! कि गुरु नानक देव जी ने इन छोटे छोटे पदों में इश्वरविषयक अंतर्दृष्टि, अध्यात्मिक उन्नति के मार्ग के बारे में, आत्मशोधनके लिए सचमुच की जद्दोजहद और परोपकारी कर्म की सहयोगी भावना शब्दांकित की है ! और यह सब गुरुमुखी लिपि में लिखने का काम किया है ! और गुरूमुखी लिपिको विकसित करने का श्रेय भी अंगदकोही जाता है !
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में अरबस्थान के मक्का से लेकर भारत के सुदूर आसाम से लेकर श्रीलंका, तक की यात्रा की है ! कितनी जगहों पर जाकर अपने सर्वधर्म समभाव का संदेश को फैलाने का काम किया है ! और उनका सबसे मुख्य उद्देश्य विभिन्न धर्मों के समन्वय का काम यही रहा है ! जो भारत जैसे बहुधर्मिय देश के लिए बहुत आवश्यक है ! तब भी और आज भी ! क्योंकि भारतीय समाज की सबसे बड़ी दुर्दशा के लिए धार्मिक विवाद सिर्फ हिंदू-मुस्लिम ही नहीं उनके अंदर के पंथ उपपंथ हिंदूओ से लेकर मुसलमानों तक यही आलम है !
गुरु नानक देव जी के जीवन का उद्देश्य ,ही विरोधी धर्मों में समन्वय साधना रहा है ! और उनकी मान्यता थी कि भारतीय समाज की अधोगति का कारण , शेकडो सालों से हिंदू-मुस्लिम इनके भीतर ही नहीं ! उनके अंदर के अलग-अलग पंथ-उपपंथ में के, मतभेद देखकर वह खुद बहुत हैरान हुए थे ! और उन्हें आश्चर्य लगता था ! कि उच्च मूल्यों के शोधकर्ता और सच्चे धार्मिक जीवन की खोज करने वाले लोगों के ध्यान में यह सब कैसे नहीं आता है ? और यह सब बहुत ही पीड़ादायक है ! ऐसा उन्हें लगता था !
दुनिया के पतनशीलता का सबसे प्रमुख कारण जबसे वर्ण- व्यवस्था में समाज का विभाजन हुआ तब से शुरू हुआ है ! दस सन्यासी तो बारह योगी , पंथोमे विभाजित हो गए हैं ! और अनेक आश्रमवासी, जैन मुनि, दिगंबर, श्वेताम्बर, एकांतवासी एक दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोपों की अंतहीन चर्चा में उलझ कर रह गए ! शास्र, वेदांत और पुराणों का अर्थ, लगाने का कलह ब्राह्मणों ने शुरू किया ! छह पंथ बढते-बढते अंधश्रद्धा के छत्तीस प्रकारोमे विभाजित होकर ,आपस में झगडने लगें ! कोई काली जादू में अटक गया, तो कोई अमृत की खोज करने के प्रयास में ! और अन्य तरह के भ्रष्टाचार में डुब गए ! इस तरह अखंड सत्य के अनेकों-अनेक टुकडे हो कर समाज विद्रूप हो गया है ! और सचमुच ही कलियुग ने लोगों को अपने मायाजाल में फंसाकर, अनेक प्रवाह हो गए हैं !
मोहम्मद पैगंबर अपने साथियों के साथ अवतरित हुए ! लेकिन उनके भी अनुयायियों की बहत्तर पंथोमे विभाजन होने के कारण और संघर्ष बढ गया !उन्होंने रोजे, नमाज़ अनिवार्य करके, और एक कर्मकांड लादनेका काम किया है ! और मुसलमानों में भी धर्म गुरू और उनके अनेक संप्रदाय, हिंदूओके जैसे संप्रदाय वाद विवाद में फंसने के कारण, लोगों के भीतर बेतहाशा झगडे शुरू होकर, अहंकार, क्षुद्रता और मग्रुरी बढकर ! गंगा और वाराणसी हिंदूओके लिए पवित्र स्थल हो गया ! तो मुसलमानों के लिए मक्का-और काबा !
मुसलमानों ने सुंता को महत्व दिया तो हिंदू ओके लिए जनेऊ और तिलक को ! राम और रहीम इन नामों से एकही ब्रह्म का अर्थ होने के बावजूद ! उनमें भेद करने के कारण ! लोग सत्य के मार्ग से दूर होकर , वेद, और कुरान को भूलकर ! लोभ और सांसारिक मोह-माया के कारण, सैतानकी राह पर चलने लगे ! सत्य परे रह गया ! और ब्राह्मण-मौलवी आपसमेही कडाके के, झगड़ोमे उलझ कर रह गए ! और पुनर्जन्म की मुक्ति के मार्ग पर कोई भी नहीं चल रहा था !
इस तरह की दूर्दैवी परिस्थिति में गुरु नानक देव जी के शब्दों में सुणी पुकार दातार प्रभु गुरु नानक जग मही पठाया ! यह सब परिस्थिति देखकर ही ! और लोगों की करूण पुकार सुन कर, इश्वर ने गुरु नानक जी को ,इस दुनिया में शांति और सद्भाव के लिए भेजा है !
बेई नदी में स्नान करने के बाद उन्होंने पहले शब्द का उच्चारण किया कि ” कोई हिंदू नही ,नहीं कोई मुसलमान ” इस तरह की अविभक्त मानवता का रूप दुनिया के सामने रखा है ! और यही संदेश फैलाने के लिए ! दूर-दराज के इलाकों में जाकर ,अज्ञानता तथा उसके के कारण फैलीं कुप्रथाओं के विरूद्ध जाकर ,सच्चे धर्म का प्रचार-प्रसार करने की बहुत बड़ी भूमिका ! आज से साढे पाचसौ साल पहले की है ! और आज भारत और कमअधिक प्रमाण में संपूर्ण विश्व ! फिर उसी स्थिति में चला गया है ! तो गुरु नानक देव जी की जन्मतिथि मनाने का कर्मकांड करने की जगह उनके संदेश को लेकर आज काम करने की सबसे बड़ी आवश्यकता है !