महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में 60 लाख संदिग्ध कपास के बीज बिक रहे हैं, कपास के ये बीज कहीं क़ातिल न बन जाएं
अभी देश के कई राज्यों में हर्बीसाइड टॉलेरेंट (कीट प्रतिरोधी) और आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) कपास के बीज की बढ़ती बिक्री ने किसानों को खतरे में डाल दिया है. इस खतरे की आशंका किसी एनजीओ या निजी संस्था ने नहीं, बल्कि खुद सरकार द्वारा गठित एक कमेटी ने व्यक्त की है. जाहिर है, जिस कपास के बीज पर सरकार को भरोसा नहीं है, वही बीज बिना किसी रोकटोक के बाजार में उतार कर बेची जा रही है और वह भी करीब 60 लाख पैकेट.
ये बीज महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश समेत उन सभी राज्यों में बिक रहे हैं, जहां कपास की खेती की जाती है. यानि, नियामक विफलता ने चालू खरीफ सीजन में गैर अनुमोदित हर्बिसाइड प्रतिरोधी व आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) कपास बीज की बिक्री में वृद्धि की है, जिससे महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों में हजारों किसानों की फसल और जान, दोनों जोखिम में है. हद तो यह है कि पर्यावरण मंत्रालय के तहत अनुवांशिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति (जीईएसी), जिसे जीएम फसलों के व्यावसायीकरण पर फैसला लेने का काम दिया गया था, को अभी भी प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा स्थापित विशेषज्ञ समिति की अंतिम रिपोर्ट का इंतजार है. यह समिति पीएमओ ने पिछले साल अक्टूबर में स्थापित किया था.
बायोटेक्नोलॉजी विभाग के तहत गठित फील्ड निरीक्षण और वैज्ञानिक मूल्यांकन समिति के अनुसार खरीफ सीजन 2018 से पहले राज्य प्राधिकरणों द्वारा जब्त किए गए सभी एचटी कपास बीजों को नष्ट कर देना चाहिए था. इस समिति ने इस खतरे से निबटने के लए कठोर उपाय सुझाए हैं. समिति ने तुरंत ग्लाइफॉसेट (हर्बीसाइड, जिसका उपयोग कीट को खत्म करने के लिए होता है) की बिक्री और उपयोग को रोकने के लिए कदम उठाने को कहा और साथ ही इस मुद्दे पर एक अंतर-मंत्रालयी समिति बनाने की भी वकालत की.
हालांकि, समिति को अभी भी पीएमओ को अपनी अंतिम रिपोर्ट जमा करनी है, जबकि कपास की खेती के लिए बीज खरीदने का काम किसान लगभग पूरा कर चुके हैं. पिछले साल अवैध एचटी कपास बीज की 3.5 मिलियन पैकेट की बिक्री हुई थी, वहीं इस बार करीब 6 मिलियन पैकेट बिक्री के लिए बाजार में उतारे गए है. सरकारी विभाग के सूत्रों के मुताबिक, भारत में जीएम कपास बीज पैदा करने वाली 46 कंपनियां अवैध बीज उत्पादन और बिक्री में शामिल हैं.
सवाल है कि जिस तकनीक को सरकार से स्वीकृति नहीं मिली है, उसी तकनीक के आधार पर तैयार कपास के बीज कैसे किसानों के खेत तक पहुंच रहे हैं. आज, महाराष्ट्र में बिक्री के लिए कपास बीज के पर्याप्त पैकेट उपलब्ध हैं. ऐसे में अगर यदि ये बीज असफल हो जाते हैं, फसल चौपट हो जाती है, क्योंकि ये सन्दिग्ध बीज हैं, तो इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा. गौरतलब है कि भारत में हर साल करीब 45 मिलियन कपास बीज पैकेट की बिक्री होती है. इसी में ये अवैध जीएम कॉटन सीड भी बेचे जा रहे हैं.
इन बीजों का इस्तेमाल करीब 80 लाख कपास किसान इस्तेमाल करते हैं. जाहिर है, ये स्थिति जितनी दुखद है, उतनी ही लापरवाही का नमूना भी है. सवाल है कि क्या अवैध तरीके से कपास के बीज बनाने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई न करने के लिए कोई राजनीतिक दबाव है? ये अवैध बीज लगभग 1500 रुपए प्रति पैकेट उपलब्ध हैं और किसान जोखिम होने के बावजूद इन्हें खरीद रहे हैं. दिलचस्प तथ्य यह है कि यह कीमत अनुमोदित बीटी कपास बीज के लिए कृषि मंत्रालय द्वारा तय 740 रुपये प्रति पैकेट की अधिकतम बिक्री मूल्य से दोगुनी है.
आंकड़े बताते हैं कि 1997 से अब तक भारत में क़रीब 3 लाख से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं. ऐसी स्थिति में देश में बीटी कॉटन समेत अन्य जेनेटिकली मॉडिफाइड बीजों का प्रचलन ज़ोर पकड़ता चला गया. साल 2002 में, जहां देश में क़रीब 27 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्र में बीटी कॉटन की खेती होती थी, यह दायरा 2006 में बढ़ कर 38 लाख हैक्टेयर पहुंच गया और अब तो यह आंकड़ा और भी अधिक हो चुका है. इसी के साथ किसानों की परेशानियां भी बढ़ती चली गई.
किसान आत्महत्या के कारणों पर सरकारी संस्थाओं के अलावा तमाम गैरसरकारी संगठनों के अध्ययनों व रिपोर्टों को देखा जाए तो इसमें एक बड़ी वजह जीएम तकनीक वाले बीजों पर अंकुश लगाने में कमी, देशी बीजों, देशी तकनीक को प्रोत्साहित न करने जैसे कारण भी हैैं. लेकिन इससे भी ज्यादा जोखिम का मसला है अवैध जीएम सीड्स, जिसे सरकार से अनुमोदन नहीं मिला है, फिर भी वे बाजार में बिक रहे हैं. सवाल है कि इस तरह के व्यापार में बीज कंपनियों के अलावा और किन-किन की भागीदारी है? किसानों को लूटने वाली इस मुनाफाखोरी में किन-किन का हिस्सा है?