अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्ज़िद का ध्वंस हुआ था ।फिर इस सामूहिक अपराध का महिमा मंडन हुआ ।शौर्य दिवस मनाए गए ।अदालत में लंबी कार्रवाई के बाद भी किसी पर अपराध साबित नहीं हुआ ।सभी आरोपी बरी हो गए। वो सामूहिक अपराध सिर्फ़ बाबरी मस्ज़िद का ही ध्वंस नहीं था ।मानवीय मूल्य ,भारत के संवैधानिक मूल्यों ,धर्म निरपेक्ष मूल्यों ,अमन ,सहिष्णुता और भाईचारा का भी ध्वंस हुआ था ।
राजनीतिक सत्ता के लिए फासीवादी ताकतों का यह दुष्चक्र अब बेखौफ होकर चल रहा है ।भारत अब फासीवाद के शिकंजे में फंस गया है ।बाबरी मस्ज़िद का तो ध्वंस हुआ ,लेकिन इससे जुड़े सवालों का कभी भी ध्वंस नहीं हो सकता ।सवाल तो रहेंगे ।इतिहास के अध्यायों में सवालों के कठघरे में यह समय तो हमेशा ही रहेगा कि यह सामूहिक अपराध क्यों हुआ । इन सवालों से ही एक बड़ी संभावना भी बनी रहेगी ।
शैलेन्द्र शैली