देश में कोविड 19 टीकाकरण महाभियान फिर हिचकोले खाने लगा है। इसके तीन कारण हैं। पहला तो मप्र सहित कई राज्यों में वैक्सीन का फिर टोटा पड़ गया है। भोपाल जैसे शहर में तीन दिनो से ज्यादातर सेंटरों पर लोग बिना वैक्सीन लगवाए ही लौट रहे हैं। क्योंकि कोई-सी भी वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। दूसरे, राज्य में एक दिन में सर्वाधिक वैक्सीन लगवाने का जो रिकाॅर्ड बना, उसके फर्जीवाड़े भी उजागर होने लगे हैं। तीसरे, टीकाकरण रिकाॅर्ड बनवाने क्या लोगों को जबर्दस्ती टीका लगवाना सही है? यह सवाल इसलिए क्योंिक मेघालय हाई कोर्ट ने हाल में कहा कि जबरन टीकाकरण करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन है। आशय यह कि आप किसी को जबरन टीका नहीं लगा सकते, अगर वह इसके लिए सहमत नहीं है।
पूरे मामले में संतोष की बात इतनी है कि जैसे भी हो, टीकाकरण अभियान पूरी तरह ठप नहीं हुआ है। असली समस्या समय पर टीका उपलब्ध कराने की है, जिसको लेकर मोदी सरकार की नीति-रीति पर पहले भी सवाल उठा है। वही सवाल अब भी है कि जब देश में टीकाकरण महाभियान छेड़ा गया तो जरूरत के मुताबिक और समय पर वैक्सीन उपलब्ध कराने की क्या कार्ययोजना थी? वैक्सीनेशन के पक्ष में सरकार ने खूब प्रचार किया। मीडिया और सामाजिक संगठनों ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई। क्योंकि अभी भी कोरोना से बचने का वैक्सीन ही एक मात्र उपाय है। शुरू में लोग वैक्सीन लगवाने से हिचक रहे थे, लेकिन जब व्यापक जागरूकता अभियान और कोरोना की तीसरी संभावित लहर के भय के चलते लोग वैक्सीन लगवाने सेंटरों पर पहुंचने लगे तो टीकों की कमी के कारण उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा है।
हालांकि इसे अस्थायी दिक्कत मानना चाहिए, लेकिन टीकाकरण को लेकर जोश का जो एक माहौल बना था, उस पर पानी पड़ गया है। इस मामले में राज्य सरकारें भी असहाय हैं। उन्होंने टीकाकरण की व्यापक व्यवस्थाएं कीं, लेकिन टीका उत्पादन और वितरण का जिम्मा केन्द्र सरकार के पास ही है। अभी भी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्द्धन राज्यो के पास पड़े कोविड डोज के आंकड़े दे रहे हैं, लेकिन हकीकत में ज्यादातर सेंटरों पर वैक्सीन खत्म हो जाने की चर्चा से बच रहे हैं।
दूसरी बात देश में रिकाॅर्ड टीकाकरण के आंकड़ों की है। विश्व योग दिवस पर मप्र सर्वाधिक 87 लाख टीके लगाने का दावा कर देश में अव्वल रहा। लेकिन यह रिकाॅर्ड कैसे और किस कीमत पर बना, इसकी हकीकत भी सामने आने लगी है। मीडिया रिपोर्टों में उजागर हुआ कीकई फर्जी नामों से टीके लगे दिखा दिए गए हैं।
कुछ लोगों को पता ही नहीं है कि उनके नाम से टीका लगाया जा चुका है। कहते हैं कोरोना वायरस हमारे इम्युन सिस्टम को चकमा देकर हमे संक्रमित कर देता है, लेकिन सरकारी तंत्र ने रिकाॅर्ड बनाने के चक्कर में पूरे सिस्टम को जो चमका दिया है, उसके आगे तो कोरोना भी हाथ जोड़ लेगा। वैसे सरकार ने कोविन के रूप में एक अच्छा ऐप तैयार किया है। लेकिन लोगों ने उसमें भी कलाकारी कर वैक्सीनेशन का रिकाॅर्ड बनवा दिया। इसका अर्थ यह नहीं है की पूरा ही फर्जीवाड़ा है। सही काम भी काफी हुआ है। लेकिन ऐसी घटनाएं पूरे महाभियान की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह जरूर लगाती हैं। यह भी सही है कि मप्र ने एक दिन में सर्वाधिक वैक्सीन का रिकाॅर्ड जरूर कायम किया, लेकिन उसके बाद इस काम में सुस्ती आ गई है। अगर 28 जून 2021 के राष्ट्रीय आंकड़े देखें तो पूरे देश में कुल 32 करोड़ 90 लाख से अधिक लोगों को वैक्सीन लगाई गई है। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में मप्र का नंबर अभी भी 7 वां है। जबकि महाराष्ट्र 3 करोड़ 17 लाख टीकों के साथ पहले और यूपी 3 करोड़ 10 लाख टीकों के साथ दूसरे नंबर पर है।
यूं तो इन राज्यों के वैक्सीनेशन आंकड़ों की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं। लेकिन फिलहाल हमे इसी पर भरोसा करना होगा। ऐसा नहीं है कि वैक्सीन की कमी से मोदी सरकार बेखबर है, लिहाजा दूसरी विदेशी वैक्सीनों के आयात और भारत में निर्माण के लिए कोशिशें जारी है। स्पूतनिक वी के बाद अब माडर्ना कंपनी की वैक्सीन को अनुमति दे दी गई है। उधर सीरम इंस्टीट्यूट ने भी जुलाई से कोविशील्ड वैक्सीन उत्पादन बढ़ाकर 10 करोड़ डोज प्रतिमाह करने का काम शुरू कर दिया है। इन सबके बावजूद देश में कोरोना की तीसरी लहर के संभावित आगमन के पहले देश की 80 फीसदी आबादी का वैक्सीनेशन पूरा होने की संभावना बहुत कम है। क्योंकि 32 करोड़ टीकों तक पहुंचने में ही हमे 164 दिन लगे हैं। अभी भी करीब सौ करोड़ आबादी को टीके लगना बाकी है। देश में वैक्सीन ड्राइव का हल्ला बनवाने हाल में सरकार ने एक प्रचार यह किया कि भारत में अमेरिका से ज्यादा टीके लगे। यह तुलना बेमानी है क्योंकि अमेरिका की कुल आबादी ही करीब 33 करोड़ है। वहां 46 फीसदी आबादी को दोनो डोज लग चुके हैं, हमारे यहां दोनो डोज का आंकड़ा महज 4 फीसदी है।
वैक्सीनेशन महाभियान के बीच एक विचारणीय मुद्दा जबरन टीका लगाने या न लगवाने का है। इसमें जहां अंधविश्वास की बड़ी भूमिका है, वहीं यह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के हनन का सवाल भी बन गया है। मेघालय सरकार ने सभी व्यवसायियों को अपना कारोबार दोबारा शुरू करने के लिए कोविड टीकाकरण अनिवार्य कर दिया था। हाई कोर्ट ने इसका संज्ञान लेते हुए अपने फैसले में कहा कि कहा कि टीकाकरण आज की जरूरत है और कोरोना के प्रसार को फैलने से रोकने के लिए आवश्यक कदम है, लेकिन राज्य सरकार ऐसी कोई कार्रवाई नहीं कर सकती, जो संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत निहित आजीविका के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो। यह संविधान में कल्याण के मूल उद्देश्य को प्रभावित करता है। बेहतर है कि सरकार वैक्सीन की उपयोगिता लोगों को समझाए। हालांकि कोर्ट ने वैक्सीन को लेकर भ्रम फैलाने की कड़ी आलोचना की। यह मामला मेघालय तक ही सीमित नहीं है।
ऐसे ही एक मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने जामनगर में तैनात भारतीय वायुसेना के एक कनिष्ठ अधिकारी को अस्थाई राहत दी थी। वायुसेना ने कोरोना टीका नहीं लगवाने पर कारपोरल योगेन्द्र कुमार को कारण बताओ नोटिस जारी कहा था कि क्यों न उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाए? जबकि योगेन्द्र का कहना था कि उसकी अंतरात्मा टीका लगाने की अनुमतिक नहीं देती। उसका यह भी कहना था कि चूंकि वह कोरोना से बचने और इम्युनिटी बढ़ाने आयुर्वेदिक दवाएं ले रहा है, इसलिए टीका क्यों लगवाए? उधर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में यूपी रोडवेज के अधिकारी ने आदेश निकाला कि वैक्सीन न लगवाने वाले कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलेगा। जिससे कर्मचारियों में हड़कंप मच गया। अमेरिका के ह्यूस्टन में वैक्सीन न लगवाने के कारण एक अस्पताल के 153 कर्मचारियों की नौकरी चली गई।
अब सवाल यह कि क्या सरकार को महामारी रोकने के लिए उसका टीका लगाना अनिवार्य करने का कानूनी अधिकार है? जानकारों का कहना है कि 1897 के महामारी रोग अधिनियम की धारा 2 राज्य सरकारों को किसी भी महामारी को फैलने से रोकने के लिए वैक्सीन अनिवार्यता जैसे कड़े नियम बनाने के अधिकार देती है। साथ ही 2005 से लागू राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन क़ानून भी आपदा या महामारी के दौरान केंद्र सरकार को उसे रोकने की अथाह शक्ति प्रदान करता है। हालांकि सभी को टीका लगाने की कानूनन अनिवार्यता को लेकर बहुत स्पष्टता नहीं है। कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना जैसी घातक महामारी के मामले में व्यक्ति के मौलिक और निजता के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार के बीच सामंजस्य बनाना जरूरी है। क्योंकि अगर किसी को टीकाकरण के लिए बाध्य करना भले सही न हो, लेकिन उस व्यक्ति के टीका न लगवाने से दूसरे किसी व्यक्ति के संक्रमित होने का खतरा है। जबकि उस दूसरे व्यक्ति को भी स्वस्थ रहने का पूरा अधिकार है। हालांकि टीका लगवाना भी कोरोना से बचने की सौ फीसदी गारंटी नहीं है। फिर भी वो हमे एक मानसिक आश्वस्ति तो देता ही है और मानसिक आश्वस्ति भी शारीरिक स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण कारक है। सरकार को भी समझना होगा कि कोविड टीकाकरण जैसे महाभियान हर स्तर पर चुस्ती जरूरी है, तभी इसका अनुकूल नतीजा निकलेगा। महामारियों से लड़ना कोई राजनीतिक युद्ध नहीं होता।