संघ के सौ साल पूरे होने मे सिर्फ चार साल बाकी है ! लेकिन इतने लंबे सफर की उपलब्धि मे संपूर्ण स्वतंत्रता का आंदोलन मे संघ ने भाग लेना तो दूर की बात है उल्टा मुस्लिम लिग के जैसे ही अंग्रजों की जी हुजूरी करने मे ही लगे रहे ! और इसी कारण एक भी राष्ट्रीय स्तर पर नेता नहीं है कि संघ परिवारके पास उनका अपना कह सके ऐसा एक भी नहीं है और इसीलिए कभी स्वामी विवेकानंद तो कभी सरदार पटेल को भुनाने की कोशिश करते हैं तो अब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के 124 वी जयंती पर बंगाल मे जाकर नेताजी को जोर-जबर्दस्ती से भांजने की कोशिश कर रहे हैं!और वही नेताजी विदेशी भूमि से स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जाने के पहले महाराष्ट्र में मुंबई में ठहरे थे तो नासिक में ठहरे हुए संघ संस्थापक
डॉ हेडगेवार की भारत के आजादी के आंदोलन मे मदद लेने हेतु संघ के प्रथम महासचिव रहे श्री जी एम हुद्दार को विशेष रूप से मिलने के लिए नासिक डॉ हेडगेवार जी से मिलने के लिए भेजा था और यह आगे की बात हुद्दार की भाषा में! मेरे साथ कोई शाह नामके सज्जन को भी भेजा कि मेरी उनके साथ स्वतंत्रता आंदोलन के लिए संघ की मदद के संबंध में मुलाकात हो सकती है क्या ? तो मै और शाह नासिक पहुंचने के बाद डॉ हेडगेवार जहाँ पर ठहरे थे उस जगह पहुँच कर देखा तो डॉ हेडगेवार कुछ नौजवानों के साथ हांसी मजाक कर रहे थे ! जो सभी संघ के स्वंयसेवक थे ! मेरी प्रार्थना पर वह स्वयंसेवक उस कमरे से चले गए और मैने अपने आने का उद्देश्य बताया कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आपसे मिलने के लिए विशेष रूप से मुंबई से नासिक आना चाहते हैं तो मुझे उन्होंने सिर्फ आपसे मुलाकात तय करने हेतु भेजा है ! तो डॉ हेडगेवारजीने कहा कि मै अपने स्वास्थ्य ठीक नहीं है इसलिए नासिक में आराम लाभ हेतु आया हूँ तो मैंने आग्रह किया कि इतने बड़े नेता आपसे मिलने के लिए विशेष रूप से नासिक आना चाहते हैं तो कम-से-कम आप उनसे मिलने मे क्या हर्ज़ है ? लेकिन वह मुझे कहने लगे कि बालासाहेब मै सचमुच ही बहुत ही बीमार हूँ और मै बातचीत भी नहीं कर सकता और चारपाई पर लेट गये ! तो मै जैसे ही उस कमरे से बाहर आया तो जो स्वयंसेवक बाहर खड़े थे वह कमरे में दाखिल हो गये और कमरे से फिरसे हास्य-व्यंग्य की आवाजें आ रही थी !
मै मुंबई आकर नेताजी को मेरी रिपोर्ट बताया जो उनके विदेश जाने की पहले की बात है ! यह विवरण जी एम हुद्दार के 7 अक्तूबर 1979 के द इलेस्ट्रेटेड वीकली के अंक मे प्रकाशित हुआ है !
21 जून 1940 के दिन उनके निधन के बाद श्री माधव सदाशिव गोलवलकर संघ प्रमुख बने जो अबतक के सबसे लंबे समय के उस पदपर रहे संघ प्रमुख रहे हैं जो 5 जून 1973 को निधन होने के बाद यानी कुल मिला कर 33 साल गुरूजीने संघ प्रमुख की जिम्मेदारी का वहन किया है !
और आज वर्तमान संघ की जो भी कुछ उग्र हिंदूत्व की छवि को तराशने का काम उन्होंने किया है और उनके ही कार्यकाल में स्वतंत्रता आंदोलन मे भाग नहीं लेने की बात कायम रही ! उल्टे अंग्रेजी राज के लिए सेना भर्ती करने के लिए विशेष रूप से संघ की मदद हुई है !
उल्टा भारत छोड़ो आंदोलन के कारण कांग्रेस के लोगों ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने कारण सिंध और बंगाल में मुस्लिम लिग के साथ संयुक्त मंत्रीमंडल में शामिल थे और उसी समय बंगाल के फजलूल हक और सुर्हावर्दि के नेतृत्व में बंगाल प्रांतीय सरकार मे श्यामा प्रसाद मुखर्जी वित्त मंत्री थे और उन्होंने तत्कालीन गवर्नर को 1942 के आंदोलन को कुचलने की सिफारिश करने वाले पत्र दिनांक 26 जुलाई 1942 को जाॅन हर्बट बंगाल के गवर्नर को लिखा है ! किस तरह से बंगाल में भारत छोड़ो आंदोलन के साथ निपट सकते हैं !
उसी तरह से स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर की बात है कि 4 जुलाई 1911 को उन्हें सेलुलर जेल अंदमान मे बंद करने के छ महीने के भीतर ही उन्होंने माफी मांगने के लिए पहलापत्र लिखा है और इस तरह के छ माफी मांगने के लिए पत्र लिखे हैं पहला पत्र (1911,1913,1914,1915,1918,और 1920 ) कुल मिला कर छ पत्र लिखे हैं और सभी पत्रों मे ब्रिटिश शासन की खिदमत मे कोई कोर-कसर नहीं रखने की गारंटी दे रहे हैं !
साथियों आपातकाल 26 जून 1975 से 1977 लगभग 19 महीने ! उस समय भी संघ के संघ प्रमुख श्री बालासाहेब देवरस जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी के काम की सराहना करते हुए उन्होंने शुरु किया हुआ 21 कलम के कार्यक्रम में संघ परिवार के लोगों द्वारा योगदान देने का वचन दिया था ! और प्रिंटेड माफीनामा बनाकर देश भर के लिए जेलो मे भेजा गया था ! लेकिन इंदिरा गाँधी जी के तरफसे कोई भी पाजिटिव रिस्पांस नहीं मिला ! लेकिन वह पत्र पुणे के एरवडा जेल के रिकार्ड मे दर्ज है ! शायद आचार्य विनोबा भावे जी को भी मध्यस्थता करने के लिए विशेष रूप से विनती का भी पत्र है !
एक मिनट के लिए हम यह मानते हैं कि एक स्टेटेजी के तहत सावरकर जी ने क्योंकी पचास साल की सजा सुनाई गई थी तो जेल में ही मरने के बजाय इस तरह के माफी मांगने के बाद बाहर आकर कुछ काम करने के लिए इस तरह के माफी मांगने के लिए लिखा होगा ऐसा माना तो कोई रिकार्ड नहीं दिखाई देता है कि ! 1924 मे वह अंदमान की सेलुलर जेल से रिहा होने के बाद यानी कुल मिला कर 23 साल आजादी मिलने तक एक भी ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखाई देता है कि उन्होंने भारत की आजादी के लिए कोई काम किया हो !
उल्टा भारत छोड़ो आंदोलन के समय अंग्रेजों की मिलिटरी में रिक्रूटिंग के लिए विशेष रूप से काम किया है ! और बाटो और राज करने के लिए हिंदू महासभा जैसे सांप्रदायिक संगठन के लिए विशेष रूप से बौद्धिक और संघटन के काम करने के लिए विशेष रूप से जुड़े जोकि अंग्रेजी राज के लिए बहुत ही मदद हुई है दुसरी तरफ मुस्लिम लिग को अंग्रेजों ने प्रोत्साहन दिया है और उसके ही जैसे हिंदू संघटन को जिस कारण कांग्रेस के लिए आजादी का आंदोलन करने मे अडचन पैदा हो ! बाटो और राज करने निति के तहत और उसके ही परिणाम रहा कि 1940 को मुस्लिम लिग के लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान की मांग का प्रस्ताव पारित किया गया !
हालांकि इस प्रस्ताव की नींव डालनेका काम सावरकर ने यह 1917 मे अंदमान की सेलुलर जेल से रिहा होने के पहले ही चोरी छुपे द्विराष्ट्र सिद्धांत के लिए हिंदूत्व की पंडू लिपि बाहर भिजवाने का काम किया है!
और 1937 के अहमदाबाद हिंदू महासभा के अधिवेशन के अध्यक्ष के नाते द्विराष्ट्र सिद्धांत का प्रस्ताव पारित किया गया है ! और उसके तीन साल बाद मुस्लिम लिग के लाहौर का प्रस्ताव पारित किया गया है !और भारत विभाजन का असली गुनाहगार कौन है ?
आजादी के आंदोलन मे विरोधी,भारत विभाजन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार और जाति व्यवस्था के प्रबल समर्थक महिलाएं दलित,आदिवासी योके विरोधी और वर्तमान समय में किसानों के आंदोलन के भी विरोधी ! 95% प्रतिशत जनसंख्या के विरोधी और सिर्फ मंदिर-मस्जिद,लव-जेहाद,जैसे भावनाओं को भडकाने वाली बातें करके भारत जैसे बहुलतावादी संस्कृति के देश में इस तरह के विचार से देश की सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं है ?
और इसीलिए रेजिमेंटेड संघ की 96 साल की यात्रा के बाद एक भी राष्ट्रीय स्तर पर नेता नहीं तैयार हो सका और दुसरे राष्ट्रीय नेताओं को जोर-जबर्दस्ती से भांजने की कोशिश करते रहते हैं ! अब बंगाल के चुनावों को मद्देनजर रखते हुए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को,रवींद्रनाथ टैगोर और अन्य नेताओं को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं और अपने ढंग से किसी को राष्ट्र वादी तो किसी को देशभक्ति के प्रतिक बोले जा रहे हैं ! और उसी समय जय श्रीराम के नारे जानबूझकर लगवाने के लिए विशेष रूप से अपने स्वयंसेवक तैयार कर के कार्यक्रम का गुडगोबर कर रहे हैं और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे सेक्युलर नेता को और छोटे बनाने की कोशिश कर रहे जिसकी मै निंदा करता हूँ !
डॉ सुरेश खैरनार 24 जनवरी 2021, नागपुर