आज डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के 131 वी जयंतीपर संपूर्ण रात जागकर पूना पॅक्ट का असली विवरण ! मैंने डी जी तेंदुलकर जी के व्हाल्युम तीन से ज्यादा तर संदर्भ सामग्री दी है !
हिंदु धर्म और अस्पृश्यता के संदर्भ में महात्मा गांधी के रंगून की सभा का व्यक्तव्य ! जानबूझकर इस लेख की शुरुआत करने जा रहा हूँ !

In the race of life in the which all the religion’s of the World are today engaged, I think, either Hinduism has got to perish or Untouchability has to be routed out completely, so that the fundamental fact of Advaita Hinduism may be realised in practical life यह महात्मा गाँधी जी ने रंगुन (वर्तमान म्यांमार की राजधानी) मतलब दुनिया के सभी धर्मों में अपने – अपने अस्तित्व के लिए जो स्पर्धा जारी है, उसमें हिंदु धर्म ने नष्ट हो जाना चाहिए या अस्पृश्यता का समुल निर्मुलन होना चाहिए तोही अद्वैतवादी हिंदु धर्म के जीवन का अभिन्न अंग बनना चहीए ! यह डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के महाराष्ट्र शासन के तरफसे छपे डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के Dr. BABASAHEB AMBEDKAR WRIGHTINGS AND SPEECHES VOL. 20, बहिष्कृत भारत के 15 मार्च के पत्रिका में का उद्धरण है ! पन्ना नंबर 72 में देखने के बाद महात्मा गाँधी जी के खिलाफ जातीयता के समर्थन का आरोप कितना हास्यास्पद है ? यह पूना पॅक्ट के पहले का गांधी जी के वचन है ! उसी तरह दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद कोचरब के आश्रम की शुरुआत करने के साथ-साथ गांधी जी ने एक अस्पृश्य पती-पत्नी को भी अपने आश्रम में रहने की व्यवस्था की तो कुछ आश्रम वासियों ने आपत्ति जताई थी ! जीसे गांधी जी ने एक सिरे से खारिज कर दिया था ! यह देखकर अहमदाबाद के कुछ धनी लोगों ने गांधी जी को धमकाया की अगर वह अस्पृश्य पती-पत्नी को आश्रम से बाहर नहीं निकालते तो वह आश्रम की आर्थिक सहायता देना बंद कर देंगे तो गांधी जी ने कहा कि आप लोग भले ही आर्थिक मदद देना बंद कर दीजिए ! लेकिन मैं इस जोड़ी को आश्रम से नही निकालुंगा यह रंगून के पंद्रह साल पहले का वाकया हैं ! जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका से आने के बाद अपने पहले आश्रम अहमदाबाद के पास कोचरब नाम की जगह पर बनाया था ! फिर उसके बाद साबरमती नदी के किनारे पर दुसरा आश्रम स्थापित किया था !
उसी तरह से आश्रम में चरखे के उपर सुतकताई होने लगी ! लेकिन बुनाई के लिए कोई जानकार नही था तो एक दलित परिवार को बुनाई आती थी तो उन्हें भी आश्रम में दाखिल कर लिया तो उसका भी विरोध हुआ ! तो गांधी जी ने कहा कि जिन्हें छुआछूत का पालन करना होगा वह आश्रम छोड़कर जा सकते हैं ! जिसमें उनकी विधवा बहन भी थी ! गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका से भारत तक जितने भी आश्रम रहे हैं उनमे सभी जातियों तथा संप्रदाय के लोग रहते थे ! छुआछूत तो दूर की बात थी ! ब्राम्हणो से पाखाना साफ करने से लेकर मरे हुए गाय – बैलो की चमड़ा निकालने के काम में अप्पासाहेब पटवर्धन जैसे कोकणस्थ ब्राह्मण ने विशेषता हासील की ! और उसी परंपरा को निभाने के लिए और भी लोग आज भी वह काम कर रहे हैं !
सफाई भंगी का काम, मरे हुए जानवर की चमडी खोलने की पारंपरिक ढोर नाम कि जाती के लोग होते है ! और इसी कारण मनुस्मृति के अनुसार इन कार्यों के कारण ही उंचनिंच और उसी कारण अस्पृश्यता की प्रथा शुरू हुई है ! तो जब अन्य जातियों के लोग इस तरह के अलग अलग काम करने के लिए तैयार हो जाऐंगे तो जाती को जो पचडा हिंदु धर्म में हजारों सालों से जारी है ! तो उसे तोड़ने के लिए इस तरह के प्रयोग महात्मा गाँधी जी के जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा हैं ! तो जाती निर्मूलन का इससे कारगर उपाय और कौनसा हो सकता है ?
गांव – समाज है और उनके आवश्यकता है कि सफाई चप्पल – जुते बनाने के लिए तथा लुहार काम, कारपेंटर तथा मट्टी के बर्तन बनाने से लेकर जिसे मराठी भाषी बलुतेदार बोलते थे ! जो किसानों को जरूरी सामान बनाने या दुरूस्त करने का काम किया करते थे ! अब यह व्यवस्था कहा तक टिकी हुई है यह एक संशोधन करने की स्थिति बनी हुई है ! लेकिन महात्मा गाँधी जी के आश्रम में रहकर इन सभी कार्यों का काम जीसे जो पसंद हो वह करता है !

खुद गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका की जेल में बंद रहे तब जनरल स्मट्स के लिए एक चप्पल खुद बनाकर जेल से बाहर निकलने के पहले उन्हें भेट दी है यह इतिहास प्रसिद्ध प्रसंग गांधी सिनेमा में बहुत ही अच्छा दिखाया है !
कर्म आधारित जाती को बदलने के लिए गांधी जी के द्वारा किया गया प्रयोग ज्यादा असरदार और कारगर कदम उठाने वाले गांधी जी को जाति-व्यवस्था के समर्थक बोलने वाले लोगों की बुद्धि पर तरस आता है !
( 1)अस्पृश्यता हिंदु धर्म का अंग नहीं: और अगर वह है तो वह हिंदु धर्म मुझे मंजूर नहीं है !
(2) अगर हिंदु धर्म में विधवाओं को पुनर्विवाह करने का हक नहीं है तो विधुर पुरूषों को भी पुनर्विवाह करने का हक नहीं होना चाहिए !
(3) महिलाओं को पडदे के अंदर रहने की जब रही होगी तब की बात अलग है ! लेकिन वर्तमान समय में भी वही प्रथा जारी रखने की बात गलत है और वह राष्ट्र के लिए हानिकारक है ! पडदा पालन का आज भी आग्रह करना सिर्फ लोकभ्रम ही नहीं उसमें मुझे पाप भी दिखता है !
(4) हिंदु – मुस्लिम के अंदर हार्दिक ऐक्य के बगैर इस देश की प्रगति होना असंभव है !
(5) कल मुझे कोई अस्पृश्यता कायम रखने की शर्त पर स्वराज देने की पेशकश करेगा तो मैं ऐसे स्वराज्य को नकारता हूँ !
गांधी के इसी द्रष्टि के कारण अंग्रेजी सरकारने जब मुसलमानों के जैसा दलितों को भी विभक्त मतदारसंघ देने की भनक 1932 के प्रारंभ में ही लग गई थी ! जो गाँधीजी को मुसलमानों को भी विभक्त मतदातासंघ देना मंजूर नहीं था ! क्योंकि उसमें ही बटवारे के निंव डालने की अंग्रेजों की कुटनिति (बाटो और राज करो, लेकिन लोकमान्य टिळक ने 1916 मे लखनौ समझौते के उपर बॅरिस्टर जीना के साथ हस्ताक्षर कर दिया था ! जब गांधी जी की हैसियत एक मामुली कार्यकर्ता से आगे नहीं थी ! उन्हें भारत आकर सिर्फ कुछ दिन हुए थे और लोकमान्य टिळक कांग्रेस के सर्वोच्च नेता थे ! उन्होंने लखनऊ प्रस्ताव में मुसलमानों को उनके जनसंख्या से भी ज्यादा सिटे देने के बावजूद हिंदुत्ववादीयो ने आज तक भी उन्हें मुस्लिम पस्त नही कहा ! लेकिन महात्मा गाँधी जी को गाहे-बगाहे मुस्लिम पस्त बोलते हुए उनकी हत्या तक कर दी !

 

महात्मा गाँधी जी ने जैसे ही देखा कि अंग्रेजी सरकार का इरादा दलितों को समस्त हिंदुओं से मुसलमानों के जैसा अलग करने की बाटो और राज करो वाली है और यह सिलसिला शिख, अंग्लो इंडियन तथा अन्य जातियों और संप्रदाय के साथ भी अंग्रेज करेंगे यह अंदाज गांधी जी के समझ में आ गया था और इसी कारण उन्होंने 11 मार्च 1932 को गांधी जी ने कहा भारत मंत्री सर सॅम्युअल होअर को खत लिखकर कहा कि “दलितों को विभक्त मतदारसंघ देकर भारत के हिंदु और दलितों में अलगाववादी तत्वों को हवा देने की कृति को मेरा विरोध है ! इस तरह के मतदारसंघोका राजनीतिक महत्व आपको समझमे आता होगा, लेकिन उसमेसे निर्माण होने वाले सामाजिक – धार्मिक – नैतिक सवाल काफी बडे है और अंग्रेजी सरकार अगर यह करने के लिए ठान लिया होगा तो मैं अपने प्राणों के अंत तक अनशन करके विरोध करूंगा यह बात भारत मंत्री सॅम्युअल होअर को साफ – साफ लिखा था ! तो सॅम्युअल होअर ने 13 अप्रैल को गांधीजी को दिए जवाब में कहा कि अभी इस बारे में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है और वह लेते वक्त आप का विचार ध्यान में रखते हुए ही हम निर्णय लेंगे ! लेकिन 17 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधान मंत्री रॅमसे मॅकडोनाल्ड ने दलितों के स्वतंत्र मतदारसंघ की घोषणा ब्रिटिश पार्लमेंटमे गांधी जी के आपत्तियों की अनदेखी कर के कर दिया ! यही अंग्रेजी कुटनिति ने सबसे पहले मुसलमानों को लेकर भावी बटवारे की निंव डालने की शुरुआत कर दी थी ! अब दलितों को लेकर एक और बटवारे की निंव डालने का काम किया ! और महात्मा गांधी की कोशिश एक मां की ममता जैसा भारत की आजादी के पहले ऐसा फटा टूटा भारत का भविष्य वह अपने ममतामयी नजर से देखने के कारण 1932 में वह साठ साल पार कर चुके थे ! उसके बावजूद वह प्राणांतिक अनशन का निर्णय दुसरे ही दिन 20 सितंबर को शुरू होगा यह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मॅक्डोनाल्ड को बताया तो मॅकडोनाल्ड इतना शातिर उन्होंने गांधी जी को लिखे पत्र में अपने ही निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि मुझे लगता है कि यह निर्णय आप को पसंद आयेगा ! और आगे जाकर वह लिखते हैं कि संयुक्त मतदातासंघ का विचार किया लेकिन उसमे से चुनकर जाने वाले प्रतिनिधियों को सवर्ण वर्ग के लोग ही चुनकर देंगे तो वह दलित समाज के सच्चे प्रतिनिधि हो नहीं सकते और आगे चलकर मॅकडोनाल्ड कह रहे हैं कि दलितों को सर्वसामान्य मतदारसंघमे एक और उनके लिए बीस साल आरक्षित रहने वाले जातिय मतदातासंघ में एक ऐसी दो मतो के देने के अपने सरकार का न्याय है यह गांधी जी को सुचित किया !
9 सितंबरको दिया जवाब में गांधी जी ने कहा कि “आपका इरादा हिंदु समाज में बाटने का काम शुरू कर रहे हैं ! और हिंदु समाज के ओर भी टुकड़े करने का सबसे बड़ा षडयंत्र मुझे नजर आ रहा है ! और इस तरह समाजमे वैधानिक विभाजन करने की हर तरह की किसी भी योजना का मै विरोध करूंगा ! और ऐसे विखंडित समाज पर देश का नया संविधान थोपी गई तो “देश के इतिहास में जितने भी इतिहास में सुधारकोने जो भी काम किया उसके उपर पानी फिर जायेगा !” और मुझे जाती – धर्म के आधार पर कोई भी विभक्त मतदाता संघ मान्य नहीं है ! इसके बाद अंग्रेजी सरकार के साथ उनका पत्राचार थम गया ! और वह अपने अनशन की तैयारी में जुट गए ! और गांधी जी का यह निर्णय नेहरू के साथ कांग्रेस के ज्यादातर लोगों को पसंद नहीं आया ! और उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई ने काफी गति पकडी है तो गांधी सामाजिक सवालों में उलझकर अटक रहे हैं ! यह कहते हुए नेहरू ने कहा कि मात्र गांधी जी को ऐसे मुश्किलों का सामना करने के समय अच्छे भविष्य के जवाब भी मिलते हैं !
गांधी जी की यह भुमिका आंबेडकरजी को मान्य होने का सवाल ही नहीं आता है ! क्योंकि 1920 में ही वह दलितों को स्वतंत्र मतदारसंघ मांग चुके हैं ! सर्वसाधारण मतदाता संघ से उनके साथ संख्याबल के अभाव में वह चुनकर नही आते हैं और सर्वसामान्य प्रतिनिधि दलितों के सवाल पर न्यायोचित भुमिका नही लेते हैं ! ऐसा आंबेडकरजी का मानना था जो गाँधीजी के भुमिका के विपरीत जाने वाली होने के कारण 1932 के मॅकडोनाल्ड सरकार के प्रस्ताव पर बवाल मचना स्वाभाविक ही था ! और वह मचा भी !


एक बात सच थी कि 1932 तक डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के पिछे जानेवाला वर्ग महाराष्ट्र के उनकी खुद की जाती के महारो का ही था ! इसके उल्टा महात्मा गाँधी जी के साथ महाराष्ट्र सह संपूर्ण देश में के सवर्ण के साथ दलितों के भी वर्ग खड़े थे ! इसलिये यह संघर्ष एक राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ एक जाति ने समर्थन दिया था ! और इसी घटना से डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी की प्रतिमा काफी बड़ी होने में काम आई और बाद में वह सिर्फ महाराष्ट्र के महारो से आगे बढ़ने के लिए विशेष रूप से काम आया ! और बाद में एक व्यक्ति ने एक राष्ट्र समुह के विरोध में किया हुआ भले वह मर्यादीत रहा होगा लेकिन मिले हुए यश की कहानी उसमेसे निर्माण होने वाली थी !
शांतिनिकेतन से रविंद्रनाथ टागौर की तार आई “देश के ऐक्य के लिए अपने मौलिक जिवन को नोछावर करना, यही जीवन का सार्थक है ! और यह राष्ट्रीय शोकांतिका रोकने हेतू संपूर्ण देश अपना प्राण समर्पित करेगा, इसका मुझे विश्वास है ! आपका शब्द देश को प्रमाण है!”


गांधी जी के साथ 20 सितंबर 1932 को देशभर में करोड़ों लोगों ने उपवास किया ! और संपूर्ण देश में प्रार्थनाएं की गई !” इस देश पर एक भयंकर काले ग्रहण की काली छाया फैल गई थी ! “ऐसे वचन टागौर के मुहसे निकले थे” और उन्होंने कहा कि “प्रत्येक देश के का एक स्वतंत्र भूगोल होता है और उसमे एक आस्तिक्य का वास होता है ! और उसपर भौतिक सत्ता नही चलती हैं ; लेकिन महान लोगों का महात्म उसपर राज्य करता है ! गांधी जी ने शुरू किया अनशन यह वही संदेश है !
अंतिम दिन 24 अक्तुबर 1932 को डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने संयुक्त मतदातासंघ को मान्यता दी और उनकी संख्या मॅकडोनाल्ड के अनुसार 97 थी ! जिसमें बाबा साहब अंबेडकरजी ने और पचास सिटे बढ़ाने के लिए कहा और गांधी और राजाजी के आपसी सहमति से डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के सुलह की वजह से इतिहास प्रसिद्ध पूना पॅक्ट जो एरवडा जेल में पास हुआ है ! महात्मा गाँधी छोड़कर बाकी सभी दलित और हिंदु नेताओं ने हस्ताक्षर किये ! बादमे मुंबई की सर्व संबंधित लोगों की सभा में उस पॅक्ट को मान्यता भी दी गई !
लेकिन ब्रिटेन की सरकार जबतक उसे मान्यता नहीं देता है तबतक गांधी उपवास छोडने के लिए तैयार नहीं हुए ! उस योजना पर ब्रिटेन की सरकारने रविवार को रात में विस्तार से चर्चा की और सुबह पांच बजे अंग्रेज सरकारने पूना पॅक्ट को मान्यता देने की अधिकृत घोषणा की तब कहीं महात्मा गाँधी जी ने अपने उपवास खोलने के लिये मुक्त हुए !
उसी दिन मुंबई की सभा में डाॅ बाबा साहब अंबेडकरजी ने कहा कि “मुझमें और गांधी में के साम्य को देखते हुए मुझे बहुत आस्चर्य चकित कर के गए पहले हममें मतभेद थे ; पर जैसे-जैसे मतभेदों के मुद्दे उनके सामने उठाये गये ! वैसे – वैसे गांधी मेरे ही तरफसे बोलते हुए मैंने उन्हें पाया! मुझे बहुत बड़ा चक्रव्यूह से निकालने में मददगार सिद्ध हुए महात्माजी का मै हमेशा – हमेशा के लिये कृतज्ञ हूँ ! मुझे रह – रहकर लगता है कि यही स्टॅण्ड उन्होंने गोलमेज परिषद में क्यों नहीं लिया ! इसका ही मुझे आस्चर्य है !”गांधी जी के चित्रकारों के हिसाब से, आंबेडकरजी ने गांधी जी का जो वर्णन यथार्थ किया है वह आंबेडकर के सिवा किसी दूसरे को करना संभव नहीं था !
डॉ सुरेश खैरनार 14 अप्रैल, 2022, नागपुर.

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