काशी विश्वनाथ मंदिर को साढ़े तीन सौ साल पहले अहिल्या बाई होल्कर ने दोबारा प्रयास करके बनवाया था. यहां के ज्योतिर्लिंग को मुगल शासकों द्वारा तोड़ कर उस जगह पर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई थी. अहिल्या बाई होल्कर ने टूटेे मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य करवाया, प्रांगण से अलग हटकर उन्होंने एक मंदिर बनवाया और ज्योतिर्लिंग की पुनःस्थापना की. धीरे-धीरे इस क्षेत्र की जनसंख्या बढ़ती गई और लोग मंदिर के आसपास के क्षेत्र पर कब्जा करते गए और मकान बनाते गए.
वर्तमान में जब यह प्रोजेक्ट प्रारंभ हुआ, उस वक्त तक मंदिर परिसर सिमटकर केवल 2000 वर्ग फीट क्षेत्रफल में आ गया था. मंदिर तक पहुंचने के सभी रास्ते अत्यधिक संकीर्ण थे और ज्यादा संख्या में श्रद्धालुओं के आने पर लगातार भगदड़ मचने का खतरा बना रहता था. दम घुटने जैसी दुर्घटनाएं हो सकती थीं, यहां गंदगी का भी काफी प्रकोप था. इन सब चीजों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस क्षेत्र के सौंदर्यीकरण का बीड़ा उठाया और यह प्रोजेक्ट बनाया गया.
प्रोजेक्ट के तहत, मंदिर के आसपास लगभग तीन हजार स्न्वायर मीटर का क्षेत्र और कुल 30 हजार स्न्वायर मीटर जमीन खरीद कर उस जगह पर श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों के लिए विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध कराने का कार्य प्रारंभ किया गया. तीन सौ ऐसे मकान और हैं, जिन्हें इस प्रोजेक्ट के लिए खरीदा जाना है और उस जगह का पुनर्निर्माण होना है. इससे एक बार फिर से मंदिर का प्रांगण बड़ा हो जाएगा. मंदिर प्रांगण तक पहुंचने के लिए जो विभिन्न मार्ग हैं, अभी बहुत संकीर्ण हैं. उन्हें चौड़ा किया जाना है. मंदिर एवं जिला प्रशासन इस प्रोजेक्ट के तहत यह प्रयास भी कर रहा है कि जो दिव्यांग या अत्यंत वृद्ध हैं, वो भी आराम से सीधे सड़क से मंदिर तक पहुंच सकें और दर्शन पूजन कर सकें.
मंदिर तोड़ने की अ़फवाह
इस क्षेत्र में आने वाले पुराने मंदिरों के बारे में अफवाह उड़ाई जा रही है कि उन्हें तोड़ा जा रहा है. यह अफवाह सरासर गलत है. ऐसे सभी मंदिरों को प्रशासन ने चिन्हित किया है. अभी तक ड्रोन सर्वे में 43 मंदिर की पहचान हुई है, जिनके बारे में स्टडी की जा रही है. मंदिर प्रशासन, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और निजी कंसलटेंशन के माध्यम से पता लगा रहा है कि कौन से मंदिर पुरातन हैं.
विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्री विशाल सिंह कहते हैं कि इन मंदिरों का अगर लिखित इतिहास मिल जाए, तो उन्हें इकट्ठा करके इनका जीर्णोद्धार किया जाएगा. कई मंदिरों में दुकानें खोल ली गई हैं या लोग घर बनाकर रह रहे हैं. ऐसे मंदिरों को कब्जे से मुक्त कराना हमारा मकसद है. श्री सिंह बताते हैं कि हम इन सारे मंदिरों का निर्माण एक ही शैली में करवाएंगे, जो संभवत: नागरशैली होगी. गौरतलब है कि इसी शैली में पुराना प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर बनाया गया था.
अब एक बार फिर इस क्षेत्र में आने वाले टूटे मंदिरों को नागर शैली में निर्मित किया जाएगा. मंदिर प्रशासन यहां ग्रीन जोन भी बनाने का प्रयास कर रहा है. यहां पर मंदिरों का एक संकुल होगा. मंदिर प्रशासन की योजना के तहत, जो भी तीर्थयात्री गंगा स्नान करने के बाद मंदिर तक आते हैं, उस पूरे रास्ते में आधुनिक तकनीक की मदद से इस क्षेत्र के संपूर्ण इतिहास और क्षेत्र के पौराणिक महत्व का प्रदर्शन किया जाएगा. साथ ही, इस जगह पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं होंगी, ताकि श्रद्धालु जहां चाहें, वहां बैठकर स्नान ध्यान करने के बाद योग कर सकें, साधना कर सकें. प्रशासन की कोशिश है कि इस क्षेत्र में आकर तीर्थयात्री एक ऐसा अनुपम अनुभव लेकर जाएं कि वो बार-बार यहां आना चाहें.
दरअसल, वाराणसी दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक है. जाहिर है, शुरुआत में निर्माण को लेकर आज की तरह नियम नहीं रहे होंगे. इस वजह से यह भी नहीं कहा जा सकता है कि तब लोगों ने अवैध निर्माण कर लिया था या अतिक्रमण कर लिया था. शहर की बनावट भी शुरू से ऐसी ही रही. 1834 से पूर्व के जमीन रख-रखाव का कोई व्यवस्थित रिकॉर्ड भी मंदिर प्रशासन के पास नहीं है.
नतीजतन, नियम के अभाव में लोग आवश्यकता अनुरूप निर्माण करते चले गए. लेकिन मंदिर की जो अपनी व्यवहारिक आवश्यकताएं थी, उसे लोगों ने अतिक्रमित करना शुरू कर दिया. मंदिरों पर लिंटर डाल दिए गए थे, मंदिरों के गर्भगृह को दुकान की तरह प्रयोग करने लगे थे. जाहिर है, लोगों पर आर्थिक दबाव बढ़ने का ही नतीजा रहा होगा. जनसंख्या भी धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी.
आज इस क्षेत्र में मकान मालिक से अधिक किराएदार के रूप में लोग रहते हैं. धीरे-धीर अतिक्रमण बढ़ता गया, भले वह कानूनी अतिक्रमण न हो, लेकिन मंदिर के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो अतिक्रमण तो हुआ ही. अब मंदिर प्रशासन इस अतिक्रमण को हटाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अतिक्रमण हटाने का काम गलत तरीके से किया जा रहा है. मंदिर प्रशासन हर एक निर्माण का मूल्यांकन कर रहा है और नियमों और बाजार मूल्य के हिसाब से जो धनराशि बनती है, उसका भुगतान भी कर रहा है.
स्थानीय सहभागिता से हो रहा है काम
गौरतलब है कि शुरू में जब मंदिर प्रशासन ने मंदिर क्षेत्र के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया था, तब सोशल मीडिया के जरिए ऐसी खबरें फैलाई जाती थीं कि स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं. लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है.
मंदिर प्रशासन अब तक शांतिपूर्ण तरीके से इस क्षेत्र की आवश्यक जमीन में से 60 प्रतिशत के आसपास संपत्ति खरीद चुका है. इसे लेकर कहीं कोई स्थानीय स्तर पर विरोध नहीं हुआ. इस बारे में वाराणसी के आयुक्त श्री दीपक अग्रवाल चौथी दुनिया से बात करते हुए कहते हैं, ‘हमें कभी भी स्थानीय लोगों के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा.
कुछ लोगों की वैचारिक सहमति शायद योजना के साथ नहीं हो सकती है. यह विरोध की स्थिति नहीं है. आज लोग लगातार हमारे काम को देख रहे हैं और हमारे काम की पारदर्शिता और प्रयास को देखते हुए हमारा समर्थन कर रहे हैं. हम भी स्थानीय लोगों को, हितधारकों को अपने काम में शामिल करते हैं, उनसे सलाह लेते हैं. ऐसी अफवाह बार-बार उड़ाई जाती है कि मंदिर तोड़े जा रहे हैं, लेकिन अब हम सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए अपना काम और सही खबर लोगों तक पहुंचा रहे हैं. जो थोड़ा-बहुत विरोध था, धीरे-धीरे अब वो भी समर्थन में परिवर्तित हो रहा है.’
पंडों की दादागीरी से मुक्ति
मंदिर प्रशासन द्वारा पिछले सात-आठ महीनों में लगातार ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे तीर्थयात्रियों को पंडों की आपाधापी से मुक्ति मिल सके. प्रशासन अभी लगभग साढ़े तीन सौ पंडों का रजिस्ट्रेशन कर रहा है और पुलिस वेरिफिकेशन के बाद ही उनका मंदिर में प्रवेश होगा. तभी उन्हें पास जारी किया जाएगा. पूर्व में जारी किए गए सभी पास निरस्त कर दिए गए हैं और नए सिरे से बकायदा ऑनलाइन सिस्टम के द्वारा सभी रिकॉर्ड लेने और पुलिस सत्यापन के बाद ही पास जारी किए जा रहे है.
पंडों के हस्तक्षेप पर काफी हद तक रोक लगी है. मंदिर प्रशासन ने पंडों को नियंत्रित करने के लिए सभी पंडों का पुलिस वेरिफिकेशन कराना शुरू कर दिया है. फिर भी कोई शिकायत मिलने पर तत्काल जांच कर पुलिस को रिपोर्ट की जाती है. कई गलत पंडों को जेल भी भेजा गया है.
सुुगम दर्शन प्रणाली
मंदिर प्रशासन ने अभी एक सुगम दर्शन प्रणाली प्रारंभ किया है. इसके तहत, जो यात्री समयबद्ध तरीके से दर्शन करना चाहते हैं, वो सीधे ऑनलाइन एप के माध्यम से, वेबसाइट के माध्यम से, फोन करके या हेल्पलाइन डेस्क पर आकर अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं और एक घंटे के अंदर दर्शन करके निकल सकते हैं.
इस दर्शन प्रणाली में तीर्थयात्री को कौन सा शास्त्री (पुजारी) मिलेगा, क्या पूजन करेंगे, पूजन सामग्री की कीमत क्या होगी, इन सबकी जानकारी एकसाथ मिल जाएगी और इन सबके लिए होने वाला पेमेंट भी ऑनलाइन माध्यम से एकमुश्त किया जा सकेगा. इस तरह पूजा के लिए किसी बिचौलिए की जरूरत नहीं रहेगी. भाषाई समस्या से निपटने के लिए मंदिर प्रशासन अब तमिल, तेलुगु, कन्नड़, बंगाली, गुजराती, हिन्दी और इंग्लिश आदि भाषाओं में लगातार अनाउंसमेंट करवाता है.
हेल्प डेस्क के लोग भी कई भाषाओं के पारंगत हो गए हैं, ताकि वो लोगों को सही तरीके से सूचना दे पाएं. पूरे मंदिर प्रांगण को, जहां यात्री प्रतीक्षा करते थे, कवर कर दिया गया है. वहां कूलर-पंखे की पूरी व्यवस्था कर दी गई है. वहां साफ-सफाई रखी जा रही है. अब मंदिर में रैम्प के माध्यम से दर्शन करने की व्यवस्था है. दिव्यांगों को मुफ्त में व्हील चेयर उपलब्ध कराया जाता है, जिसकी सहायता से वो गेट नंबर तीन से सीधे मंदिर में जाकर दर्शन कर सकते हैं. मंदिर के अंदर ही आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था भी है.
हाईटेक दान व्यवस्था
काशी विश्वनाथ मंदिर में अब दान के तरीके भी हाईटेक बनाए जा रहे हैं. वैसे बहुत सारे लोग अभी भी हुंडी में नगद दान करते हैं, लेकिन मंदिर प्रशासन द्वारा ई-डोनेट मशीनें लगाई गई हैं, जिनके जरिए श्रद्धालु सीधा डोनेट कर अपना रसीद ले सकते हैं. इसके अलावा, श्रद्धालु मंदिर के सूचना केंद्र पर जाकर चेक, ड्राफ्ट के माध्यम से डोनेट कर रसीद प्राप्त कर सकते हैं. लोग मंदिर में चांदी, सोना, हीरे, जवाहरात भी चढ़ाते हैं, कई बार लोग इन चीजों को भी हुंडी में डाल देते हैं.
हुंडी भरने तक मंदिर प्रशासन इंतजार करता है और हर तीसरे दिन इसे खोला जाता है. पैसे या सोना-चांदी की गणना करने के लिए बकायदा एक पूरा मैकेनिज्म है. कई सीनियर रिटायर ऑफिसर, आयकर विभाग के अधिकारी आदि की मौजूदगी में ये काम होता है. काउंटिंग का पर्यवेक्षण होता है और कैमरे में रिकॉर्ड किया जाता है. पिछले सात-आठ महीनों में लगभग 40-50 प्रतिशत नगद दान मिला है जबकि सोने-चांदी जैसे दान का हर छह महीने पर मूल्यांकन करवा कर उसे स्ट्रॉन्ग रूम में जमा करा दिया जाता है. अब श्रद्धालु ऑनलाइन भी काफी चढ़ावा चढ़ाने लगे हैं.
सभी धर्म के लोगों के लिए खुला रहेगा अन्न क्षेत्र
मंदिर प्रशासन हर दिन दोपहर और शाम को दोनों समय दंडी आश्रम के साधुओं को भोजन करवाता है और उन्हें 101 रुपए की दक्षिणा भी दी जाती है. ये प्रक्रिया अनवरत जारी है, जब से मंदिर है. इसके अलावा, जो श्रद्धालु बाबा के दरबार में अंगवस्त्र और अन्य वस्त्र चढ़ाते हैं, उसका वितरण भी गरीबों के बीच किया जाता है. मंदिर परिसर में एक पांच मंजिला अन्न क्षेत्र का निर्माण हो रहा है, जो जनवरी तक पूरा हो जाएगा. यहां एक साथ पांच हजार लोग भोजन कर सकेंगे. मंदिर प्रशासन की योजना है कि यहां पांच हजार लोगों का भोजन दिन-रात यानि चौबीसों घंटे चलता रहे. यह अन्न क्षेत्र हर इंसान के लिए खुला होगा, चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो.
हमें कभी भी स्थानीय लोगों के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा. कुछ लोगों की वैचारिक सहमति शायद योजना के साथ नहीं हो सकती है. आज लोग लगातार हमारे काम को देख रहे हैं और हमारे काम की पारदर्शिता और प्रयास को देखते हुए हमारा समर्थन कर रहे हैं. हम भी स्थानीय लोगों को, हितधारकों को अपने काम में शामिल करते हैं, उनसे सलाह लेते हैं. ऐसी अफवाह बार-बार उड़ाई जाती है कि मंदिर तोड़े जा रहे हैं, लेकिन अब हम सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए अपना काम और सही खबर लोगों तक पहुंचा रहे हैं. जो थोड़ा-बहुत विरोध था धीरे-धीरे अब वो भी समर्थन में परिवर्तित हो रहा है.
-श्री दीपक अग्रवाल, आयुक्त, वाराणसी
इन मंदिरों का अगर लिखित इतिहास मिल जाए, तो उन्हें इकट्ठा करके इन मंदिरों का जीर्णोद्धार किया जाएगा. कई मंदिरों में दुकानें खोल ली गई हैं या लोग घर बनाकर रह रहे हैं. ऐसे मंदिरों को कब्जे से मुक्त कराना हमारा मकसद है. हम इन सारे मंदिरों का निर्माण एक ही शैली में करवाएंगे, जो संभवत नागरशैली होगी.
-श्री विशाल सिंह, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, विश्वनाथ मंदिर