बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के मामले में भले ही ‘जीरो टॉलरेंस’ का दावा करते हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. केन्द्र अथवा राज्य सरकार के द्वारा संचालित लगभग सभी योजनाओं को भ्रष्टाचार घुन की तरह खोखला करने में लगा है. समय-समय पर कई मामले सामने आते हैं और कार्रवाई के नाम पर जांच के आदेश भी जारी किए जाते रहे हैं.
लेकिन हास्यास्पद स्थिति तब पैदा हो जाती है, जब आरोपियों के ही सिर जांच का जिम्मा थोप दिया जाता है या महज जांच टीम गठित कर खानापूर्ति कर ली जाती है. भ्रष्टाचार के कारण असफल हो रही योजनाओं को लेकर कई बार आंदोलन का ताना-बाना भी बुना जाता है, लेकिन फिर अन्य मामलों की तरह भ्रष्टाचार का भी मामला दफन होकर रह जाता है.
व्यवस्था पर तरस तो तब आती है, जब कफन से जुड़ी कबीर अंत्येष्टि योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती दिखती है. सहरसा, सुपौल, मधेपुरा के साथ-साथ खगड़िया में लगभग दो सौ फरियादी ऐसे हैं, जो किसी अपने को खोने के बाद कफन की राशि के लिए मुखिया से लेकर पदाधिकारियों तक के चक्कर लगा रहे हैं. खगड़िया के बेलदौर, परबत्ता और अलौली में भी कबीर अंत्येष्टि योजना की राशि के लिए, मौत के शिकार हुए गरीबों के परिजन दर-दर की ठोंकरें खा रहे हैं.
इससे जुड़े लगभग दो सौ आवेदन कोसी के विभिन्न इलाकों में फाइलों की धूल चाट रहे हैं. अब मुखिया से लेकर नौकरशाह भी यही कह रहे हैं कि कई माह से कबीर अंत्येष्टि योजना के मद में आवंटन नहीं आया है. परबत्ता प्रखंड के प्रमुख श्रीकांत सिंह और इटहरी पंचायत की मुखिया रजिया देवी भी स्वीकारते हैं कि कबीर अंत्येष्टि योजना की राशि के लिए गरीबों को दर-दर की ठोंकरें खाने को मजबूर होना पड़ रहा है. दर्जनों आवेदन कई माह से लंबित पड़े हैं.
भ्रष्टाचार की बात पर मुहर लगाते हुए प्रखंड प्रमुख श्रीकांत सिंह कहते हैं कि यह बात सही है कि बिना चढ़ावे के यहां कुछ नहीं होता. लेकिन बीडीओ के साथ-साथ जिला स्तरीय पदाधिकारियों के साथ वार्ता कर इस समस्या का हल निकाला जाएगा.
हालांकि ऐसी बात नहीं है कि इन घटनाओं से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों में कोई कार्रवाई नहीं की गई हो. लगातार अभियान चलाकर दर्जनों भ्रष्ट नौकरशाहों को दबोचा भी गया है और कई के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की तलवार भी लटक रही है. कोसी इलाके की बात की जाय तो यहां संचालित अन्य योजनाओं का हश्र भी ऐसा ही है. बेलदौर में ऐसे कई मामलों में नौकरशाहों की मिलिभगत सामने आई है.
जिलाधिकारी जय सिंह की कानूनी चाबुक का असर नौकरशाहों में खौफ पैदा करने लगा है. कुछ कर्मचारियों की बर्खास्तगी का साहस दिखाकर तो कुछ पदाधिकारी-कर्मचारी के विरुद्ध प्रपत्र-क गठित कर डीएम जय सिंह इलाके में सुर्खियां बटोर रहे हैं.
फर्जी बहाली से लेकर फर्जी भुगतान के कई मामलों में स्थानीय शिक्षा विभाग के पदाधिकारी-कर्मचारी फंसते दिख रहे हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था भी भ्रष्टाचार की जद में पूरी तरह बीमार नजर आती है.
उसी तरह खगड़िया का शिक्षा विभाग आर्य समाज कन्या विद्यालय में फर्जी बहाली को लेकर चर्चा में है. जिला शिक्षा पदाधिकारी डॉ. ब्रजकिशोर सिंह, डीपीओ के सिर भ्रष्टाचार का ठीकरा फोड़ने में लगे हैं, जबकि डीपीओ सुरेश साहु ने विद्यालय के प्रधानाध्यापक नंदलाल साह को दोषी ठहराते हुए प्राथमिकी तक दर्ज कराई है.
फर्जी शिक्षकों को वेतन देने के नाम पर लाखों रुपए लुटाए जाने के मामले में हो रही कार्रवाई की खानापूर्ति के कारण विद्यालय के सचिव नील कमल दिवाकर भी गुस्से में हैं. लेकिन जिलाधिकारी शिक्षा विभाग के अधिकारारियों के नाम आदेश जारी करने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं. कमोवेस यही हाल स्वास्थ्य विभाग का भी है.
रोज नए-नए घपले-घोटाले के साथ-साथ कई अन्य तरह के विवाद भी सामने आ रहे हैं. बावजूद इसके कार्रवाई का आदेश बेअसर साबित हो रहा है. वृद्वावस्था पेंशन के लिए वृद्व महिला-पुरूष मुखिया जी से लेकर डीएम साहब के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं. लेकिन उन्हें भी सांत्वना के अलावा कुछ नहीं मिल रहा.
खगड़िया जिले के सोनमनकी बांध पर रहकर किसी तरह जीवन यापन कर रहे रघुनी चौधरी, बानो राम, आनंदी राम, प्रभु सदा सहित दर्जनों वृद्धों का कहना है कि वृद्वावस्था पेंशन की आस में हम मौत के मुहाने तक आ गए लेकिन मुखिया जी के द्वारा केवल आश्वासन ही दिया जा रहा है. इधर भ्रष्टाचार उन्मूलन मंच ने भी विभिन्न योजनाओं के नाम पर मची लूट को लेकर नौकरशाहों व जनप्रतिनिधियों को घेरना शुरू कर दिया है.
मंच के जिलाध्यक्ष पवन चौधरी कहते हैं कि विभिन्न योजनाओं के नाम पर कोसी इलाके में पॉकेट भरने की परम्परा का अंत करने के लिए कमर कस लिया गया है. जिलाधिकारी के जनता दरबार में हाजिरी लगाने के बाद भी कार्रवाई संभव नहीं दिख रही है. इसलिए भ्रष्ट नौकरशाहों के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों को सबक सिखाने के लिए जन अदालत का आयोजन किए जाने की रणनीति पर विचार किया जा रहा है.
दूसरी तरफ खगड़िया के साथ-साथ सहरसा, सुपौल और मधेपुरा के डीएम का भी कहना है कि भ्रष्टाचार के मामले को लेकर जिला प्रशासन गंभीर है. भ्रष्टाचार के मामले जब-जब सामने आए हैं, तब-तब गंभीर कार्रवाई का सामना भ्रष्टाचारियों को करना पड़ा है. इन मामलों को भी खंगाल कर जल्द ही गुनहगारों की गिरेबां पर हाथ डाला जाएगा.
लेकिन कब तक के सवाल पर पदाधिकारी भी कन्नी काट जाते हैं. बहरहाल, यह कहना तो शायद जल्दबाजी होगी कि भ्रष्टाचार के मामले को लेकर ईमानदार कार्रवाई होगी या अन्य मामलों की तरह इस मामले को भी दफन कर दिया जाएगा.