यह वही संघठन है ! जिसके लोगों ने 30 जनवरी 1948 के दिन महात्मा गाँधी जी की हत्या की है ! चोर उपर से सिनाजोरी का बिभत्स रुप हिंदु महासभा के वर्तमान बंगाल प्रदेश के अध्यक्ष चंद्रचूड गोस्वामी ने दिखाया है ! एक मिनिट के लिए मान ले कि आसुर के वाली मूर्ति महात्मा गाँधी जी के जैसी दिखाई दे रही है ! लेकिन इस बहाने चंद्रचूड गोस्वामी का नाम इसके पहले कभी सुना नहीं था ! उसे अचानक राष्ट्रीय स्तर पर बोलने का मौका मिला तो उसने जो जहर उगला है ! इसी जहर देकर नाथूराम गोडसे को उम्र के उन्नीस साल का था और वह रत्नागिरी के सावरकर के गृहबंदी काल में, सुबह निंद से उठने के बाद रात को सोने के पहले तक ! बारह घंटे से अधिक समय ! सावरकर की सोहबत में रहने के कारण ! सावरकर ने अपनी बैरिस्टर की प्रॅक्टिस तो कभी की नही ! लेकिन उन्होंने उस शिक्षा का उपयोग विभिन्न युवाओं को आकर्षित करके ! जिसमें उधमसिंह से लेकर, और भी एक दर्जन से अधिक हत्या के षड्यंत्र करते हुए ! विभिन्न अंग्रेजी अफसरों को मारने का काम अलग – अलग युवाओं को लेकर किए हैं !
और स्वतंत्रता के बाद भारत का पहला ! और सावरकर का आखिरी षड्यंत्र ! महात्मा गाँधी को मारने के काम करने के लिए ! अनायास ही नाथूराम के पिता की रत्नागिरी के पोस्ट में तबादला होने के कारण ! मैट्रिक की परीक्षा में नथूराम ने पढाई अधूरी छोड़ कर ! रत्नागिरी में पहुचने के तीन दिन के भीतर ही सावरकर के साथ होने के कारण ! पुरानो के विषकन्या के जैसे दर्जनों विषपुत्र तैयार किए हैं ! वैसे ही नाथूराम भी तैयार हुआ है मनोहर मलगावकर की किताब द मेन हूँ किल्ड गांधी मे लिखा है कि “Within three days of his arrival in Ratnagiri, Nthuram went to see Savarkar. Once he had come under Savarkar’s influence, Nthuram was never the same man again. Nthuram venerated Savarkar as Guru, as someone who bore a touch of divinity. And it was his blind devotion to the potent preachings of the master, and his shattering disillusionment at the way everything in Savarkar’s scenario had gone wrong. that ultimately led Nthuram to the insane expedient of murder and self immolation.” यह लिखने वाले आंतरराष्ट्रीय स्तर के लेखक और पत्रकारिता करने वाले मनोहर मलगावकर साफ-सफाई से नाथूराम के महात्मा गांधी के हत्या की मानसिकता बनाने का काम रत्नागिरी के वास्तव में बहुत ही चालाकी से किया है !
तो खुद विनायक दामोदर सावरकर रत्नागिरी के गृहबंदी के बाद (1924 -1937 ) तेरह साल की गृहबंदी के बाद भी आजादी मिलने को और दस साल बाकी थे तो उस समय उन्होंने क्या काम किया है ?
फिर आजादी के बाद भी 26 फरवरी 1966 के निधन होने के पहले 19 साल भारत आजाद होने के समय भारत विभाजन की विभीषिका के समय अपने अनुयायियों से कभी हत्याएं करवाने के इंग्लैंड से भारत तक के अनुभवी प्रशिक्षक बॅरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर ने अपने हिंदू महासभा के लोगों को लेकर कौनसी बटवारे को रोकने की कोशिश की है ? उल्टा 23 मार्च 1940 के मुस्लिम लिग के पाकिस्तान बनाने के लाहौर प्रस्ताव के बाद सिंध और बंगाल प्रांतों में मुस्लिम लिग के साथ मिलीजुली सरकार का गठन किया और उस गठबंधन का कॉमन – मिनिमम – प्रोग्राम क्या था ? क्या आप के मुस्लिम लिग के साथ सरकार बनाने से बटवारे को रोकने के लिए कुछ फायदा हुआ ? और अगर बटवारा हो ही गया तो शांति और समझदारी से बटवारा होने की जगह विश्व का सबसे बड़ा विस्थापन और उसमे हुई जान – माल की नुकसान में कोई कमी हुई है ? तो फिर आप के मुस्लिम लिग के साथ इस तरह की हिंसा और मारकाट करने के लिए कोई समझौता हुआ था ? क्योंकि मुस्लिम लिग के साथ आपके गठबंधन की वजह क्या है ? और आपके प्रिय प्रशिक्षित शिष्योत्तम नथुराम गोडसे और उसके साथियों को सावरकर सदन की फोटो और यशस्वी भव आशिर्वाद देने का कष्ट कौन किया है ? और आपके साथ नाथूराम और अन्य सहयोगी साथियों के साथ फोटो सेशन कीस खुशी में ?
क्योंकि आपने कोर्ट में अपने बचाव में कहा कि मुझे रोज काफी लोग मिलने आते हैं ! वैसे ही नाथूराम आया होगा तो मुझे याद नहीं और जहाँ तक मेरी याददाश्त का सवाल है मुझे इस आदमी से मिलने वाली मुलाकात याद नहीं है !
फिर रत्नागिरी में उन्नीस साल का नाथूराम ( 1929 – 37 ) से सुबह से रात तक आप की सोहबत में आठ साल तक रहा है और उसके बावजूद आपने अपने बचाव में झूठी गवाही क्यों दी और वैसाही झुठी गवाही नाथूराम ने कहा कि मैं कभी सावरकर के साथ मिला नहीं हूँ !
सरकारी वकील शायद आपसे मिल गया था या उसने अपना होमवर्क ठीक नहीं किया होगा ! अन्यथा आप दोनों गुरु – शिष्यों के रिश्ते में रहने वाले लोग एक दूसरे को जानते नही इस बात पर कोर्ट सबूतों के अभाव में आपको बरी कर देता है ! क्या उसी समय से भारत की न्यायिक प्रणाली में आपने अपने लोगों को बहाल करना का काम मिलीजुली सरकारो के समय कर लिया था ?
बंगाल हिंदू महासभा के चंद्रचूड गोस्वामी कह रहे है कि हमारे गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में मतभेद है और सिर्फ सुभाष चंद्र बोस और शहिद भगत सिंह के कारण हमारे देश को आजादी मिली है ! चलिए हम इस बात को मान लेते हैं ! तो भगत सिंह के साथ आपके हिंदूमहासभा का कौनसा संबंध था क्योंकि हिन्दू महासभा की स्थापना 1909 में ही हो चुकी थी !
वैसे ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस को, अपनी आई एन एस को देश की स्वतंत्रता के लिए मदद करने के लिए ! विशेष रूप से कलकत्ता छोड़कर महाराष्ट्र आपके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन संघप्रमुख डॉ केशव बलिराम हेडगेवार से मुलाकात करने के लिए आये थे ! साथ में हेडगेवार के पुराने सहयोगी बालासाहब हुद्दार थे ! और उन्होंने अपनी इस बात का स्मरण लेख विदर्भ साहित्य संघ के मुखपत्र युगवाणी में लिखा भी है ! लेकिन हुद्दार लिख रहे हैं कि डॉ हेडगेवार सुभाष चंद्र बोस आने के पहले तक अपने सहयोगियों के साथ हास्य – विनोद करणे खिलखिलाते हुए हंस रहे थे ! लेकिन मैंने जैसे ही कहा कि बाहर नेताजी सुभाष चंद्र बोस आपसे मिलने के लिए आए हुए हैं तो तुरंत एक ब्लेंकेट उठाकर सरसे पाव तक अपने उपर ओढकर सोते हुए बोले कि देखो ना मेरी तबीयत कितनी खराब है और मेरे मुंह से कोई शब्द भी नहीं निकल सकता इतना मै बिमार हूँ ! इस तरह जिस नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारत की स्वतंत्रता के सब से बड़ा नेता बोलने वाले संघठन के प्रमुख ने भेटने से मना कर दिया और कह रहे हैं कि महात्मा गाँधी जी के भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान में हमारी आपत्ति है ! और इसलिए उन्हें अपने साथियों के हाथों से मारने के बावजूद चौहत्तर साल पहले मारकर भी माॉ दुर्गा की पूजा पंडाल में गांधी जी को आसुरो के रूप में दिखाकर हिंदु महासभा अपने बौद्धिक दिवालिया पन का प्रदर्शन के साथ मां दुर्गा का भी अपमान कर रहे है ! धार्मिक आयोजनों की आड में अपनी मानसिक विकृति दिखाना सांस्कृतिक पतन का लक्षण है ! और इस पर कडी से कडी कारवाई करने की मांग कर रहा हूँ ?
डॉ सुरेश खैरनार, 4 अक्तूबर 2022, नागपुर