गुरुनानक देव जी का 552वा प्रकाश पर्व…! चांदनी छिटकने से पहले ही, सूर्य की किरणें एक संदेश लेकर चली आईं…! तुम जीते हम हारे… का उद्बोधन साहेब को उस दायरे से बाहर लाकर खड़ा करने वाला है, जिसमें उन्हें हठधर्मी और बात पर अडिग, अटल रहने वाला निरूपित किया जाता रहा है…!
महीनों की मुश्किलें, सड़क की जिंदगी, अपनी बात मनवाने के लिए घर छोड़ बैठने की ज़िद… कई के खेत, मकान, संपत्तियां और जमा पूंजी जाति रही तो कई के अपने दुनिया से रुखसत हो गए…! प्रकाश पर्व पर आए इस फैसले ने ये साबित कर दिखाया कि सच्ची लगन और तरीके से अपनी बात कही जाए तो असर जरूर होता है, भले उसमें देर हो जाए…!
किसानों के सिर से कानूनों का बोझ हट जाने का जश्न मनाया जाना चाहिए, बजाए इस बहस में पड़ने के, कि फैसला कुछ चुनावों की हार से सबक लेकर किया गया है या किसी चुनावी तैयारी के अधीन किया गया है…! अभिनेत्री और नेत्री के बयानों को इस समय में तवज्जो नहीं दी जाना चाहिए कि दोनों के चरित्र में अदाकारी भी है, मक्कारी भी और अपने मफाद के लिए कुछ भी कहते रहने की इनकी अदा भी है…! विपक्ष को साहेब के इस फैसले से खुश होने की जरूरत बाकी नहीं है, कारण न तो उन्होंने कानून वजूद में आते समय उसको डिगाने की कोई मशक्कत की थी और न ही कमोबेश सभी तरह के मौसम सड़क पर गुजार चुके किसानों की हौसला अफजाई की कोई पहल…!
मन परिवर्तन के इस दौर अब साहेब को थोड़ी छाती और चौड़ी करने की जरूरत है…! एक फैसले से एक समुदाय के बड़े लोगों को राहत दी गई है…! इसी मुल्क की एक और कौम एक नए कानून की तलवार के नीचे रखे हुए हैं…! अच्छा होता लगे हाथ उसके समापन का ऐलान भी कर दिया गया होता…! कह दिया गया होता कि उस आने वाले कानून के खिलाफ महीनों सड़कें आबाद करने वालों से कोई नाराजगी नहीं है, उसके लिए विरोध स्वर बुलंद करने वालों पर लादे गए केस रद्द किए जा रहे हैं, जेलों की भीड़ बढ़ा रहे ऐसे सभी लोगों को आज़ाद किया जा रहा है…!
एक मुल्क में दर्जनों धर्म की मौजूदगी ने इसको विश्व पटल पर अलग दर्जा दिया है…! सभी के लिए एक समान नज़रिया, समान कानून और एक जैसा व्यवहार भी नई ऊंचाई देगा…! करके देखिए साहेब अच्छा लगेगा…!!
पुछल्ला
न आतंक की तहरीर, न जुल्म की कहानी, फिर क्यों चुभ रहे हबीब…?
नवाब रियासत के आखिरी सुलतान होने से पिछड़ गए नवाबजादे हबीब उल्लाह खान अपनों की ही बेवफाई का शिकार हुए थे। अब सदियां बीतने के बाद उनके नाम पर नाक भौं सिकोड़ने वालों के पास बताने के लिए कोई कारण नहीं है कि हबीब क्यों नहीं? और हबीब की जगह विराजित होने वाला क्यों? बदला बदली में समय बहुत जाया हो जाएगा, क्योंकि हमीदिया, सुल्तानिया, इकबाल, सदर, हमीद, शौकत जैसे कई नाम अभी सवार हैं शहर के माथे पर। बेहतर ये होता कि नए कालखंड में कुछ नई तमीरात हो जाती और उनके के शान से महापुरुषों के नाम आबाद किए जाते।