महामारी के मारों की खिदमत में जुटे गाबा, मकसद किसी को मिल जाए जिंदगी
भोपाल। इंदौर जिले के समीपस्थ गौतमपुरा (देपालपुर तहसील) के ग्राम भील बडोली के शासकीय प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक तपस्या गाबा तो कोविड से जंग हार गईं लेकिन पति को मानव सेवा की राह दिखा गईं। रतलाम के जीएमसी हॉस्पिटल में आए दिन हो रही कोविड पेशेंट की मौत से भयभीत पत्नी को ढ़ाढ़स बंधाने के लिए पत्रकार प्रिंस गाबा (दैनिक भास्कर) डीन के सामने गिड़गिड़ाए, अस्पताल प्रबंधन ने उनसे अंडर टेकिंग का पत्र लिखवाने के बाद पीपीई किट में आईसीयू में दाखिल पत्नी की देखरेख की अनुमति भी दे दी लेकिन सात दिन तक की उनकी सेवा भी तब निर्रथक हो गई जब सामने के बेड पर एक गर्भवती पेशेंट और समीप के पलंग पर एक अन्य वृद्धा मरीज की मौत का सदमा उनकी पत्नी नहीं झेल पाईं और कार्डियक अटैक से हुई मौत ने प्रिंस (राजेश) गाबा की तमाम उम्मीदें भी तोड़ दी।
पत्नी रतलाम में थीं, एक सुबह प्रिंस को फोन किया कि हरारत सी लग रही है। मुंबई के भास्कर कार्यालय में पदस्थ प्रिंस गाबा ने तुरंत डॉक्टर से संपर्क को कहा। शहर में जब कोरोना कफ्र्यू लगा हो तो अकेली-बीमार पत्नी और वृद्धा मौसी के लिए अस्पताल तक जाना भी किसी चुनौती से कम नहीं था। घर से एक किमी दूर अस्पताल ले जाने के लिए 500 रुपए में ऑटो वाला राजी हुआ। प्रिंस ने भोपाल में पत्रकार शैलेंद्र चौहान से मदद मांगी, उन्होंने रतलाम (तत्कालीन) कलेक्टर गोपाल ढांढ को परेशानी बताई। कलेक्टर ने जिला अस्पताल में इंतजाम भी करा दिया। वहां गए तो जवाब मिला कोविड वाले हॉस्पिटल ले जाओ, कलेक्टर की पहल और समाजसेवी गोविंद काकानी की मदद से जीएमसी में बेड मिल गया। वृद्धा मौसी तो अटैंडर रह नहीं सकती।
काकानी मददगार बने, इस बीच मुंबई कार्यालय में पदस्थ प्रिंस ने जिस ट्रेन में टिकट बुक कराया, स्टेशन पहुंचे तो आंखों के सामने ट्रेन जा रही थी। कुछ देर बाद दूसरी ट्रेन में बेटिकट बैठे-जुर्माना भरा रतलाम पहुंचे और सात जन्मों की साथी की सात दिन-रात सेवा की लेकिन ईश्वर को कुछ और मंजूर था। अस्पताल में दाखिल रहने के दौरान पत्नी के अनुरोध पर वो बाकी मरीजों के लिए दवाई-अन्य जरूरतों में मदद करते रहे कि इन सब की दुआओं से शायद पत्नी की तबीयत सुधर जाए। इसी बीच भील बड़ोली के प्रिंसिपल के फोन से तपस्या के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तब आ गई जब स्पीकर पर यह सुना कि सेकंड ग्रेड एग्जाम में वो टॉपर रही हैं, लेकिन स्कूल स्टॉफ को भी कहां पता था वो कोरोना से हार जाएंगी।
10 मई को पत्नी को सुहागन के श्रृंगार में अंतिम विदाई देकर लौटे और वृद्धा मौसी राज बावेजा को जीएमसी में दाखिल करना पड़ा। बस तबसे प्रिंस गाबा मौसी की देखभाल के साथ ही कोविड वार्ड के मरीजों को मोटिवेट करने, परिजनों से उनकी बात कराने, उनसे खाने की मनुहार, उनकी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने में जुटे रहते हैं, उनका कहना है कि जीवन का यह नया मिशन है। जन सेवा मानव सेवा, जिस भी रूप में कर पाऊं। मैंने कोविड के डर, अकेलेपन और इलाज को करीब से देखा। पत्नी की तो एंटीजन रिपोर्ट भी नेगेटिव आ गई थी। डॉक्टर 4 दिन में उसे डिस्चार्ज करने वाले थे। उन्होंने मेरी सोनिया की बॉडी मुझे दी हमने दुल्हन की तरह सजाधजा कर श्रृंगार करके रतलाम में भक्तन की बावड़ी में उसे विदा किया।
मौसी जी को ये नहीं बता पाया कि उनकी बेटी सोनू चली गई। उसे ये बोला वो ठीक है। क्योंकि 79 साल की मौसी ये बर्दाश्त नहीं कर पाएंगी। रोज उनके सामने 2 नारियल के पानी लाता हूं और कहता हूं एक आपके लिए और एक सोनिया को पिलाने जा रहा हूं। मैं अभागा उनके सामने रो भी नहीं सकता। उनके वॉर्ड के बाहर बैठा रहता हूं और वाहेगुरु से यही अरदास करता हूं किसी और को ये दुख ना देना। समाजसेवी गोविन्द काकानी जी के साथ कोविड पेशेंट को मोटिवेट करने के मिशन से जुड़ गया हूं। मुझे लगता है कोविड पेशेंट को दवा के साथ दुआ और मोटीवेशन की बहुत जरूरत है। रोज शाम 6 से 9 तीन घंटे कोविड पेशेंट से मिलने, उनसे बात करने, उनकी प्रॉब्लम समझने और उन्हे मोटिवेट करने जाता हूं। ये मिशन अब जारी रहेगा।
उनकी प्रॉब्लम को डॉक्टर्स और सिस्टर्स को बताता हूं। रतलाम मेडिकल कॉलेज से सेवा की शुरुआत करने का मकसद यही कि मैंने पत्नी को यहीं खोया। मेरे हाथों में उसने अंतिम सांस ली थी। शायद मेरे इस काम से ही तपस्या (सोनिया) की आत्मा को शांति मिल जाए…! जिन हालातों का मैंने इन दिनों सामना किया है एक ही बात समझ आई है कि अस्पतालों में लोग कोरोना से कम, अकेलेपन और उनकी पीड़ा नहीं सुनने, परिवार से दूर कर दिए जाने, अस्पताल स्टॉफ की कथित लारवाही की वजह से मर रहे हैं। लगने लगा है यह वक्त हिंदू-मुस्लिम करने का नहीं लोगों की सेवा करने, मरीजों का हौंसला बढ़ाने का वक्त है।