संघ के आदि सरसंघचालक श्री हेडगेवार माने जाते हैं. श्री हेडगेवार संघ के निर्माता भी हैं, इसीलिए उन्हें आदि सरसघंचालक कहते हैं. अपनी मृत्यु से पहले श्री हेडगेवार, गुरु गोलवलकर जी को संघ का सरसंघचालक नियुक्तकर गए थे. गुरु गोलवलकर को आमतौर पर संघ में गुरुजी का आदर सूचक विश्लेषण मिला हुआ है. संघ के लोग गुरुजी को संन्यासी या ऋषि मुनि की श्रेणी का मानते हैं.
आज देश भर में संघ के जितने भी प्रकल्प चल रहे हैं, वे गुरुजी की संघ को देन हैं. चाहे वह विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम या भारतीय जनता पार्टी हो, इन सबके पीछे गुरुजी का दिमाग और कल्पना थी. आज की भारतीय जनता पार्टी का गुरुजी का संस्करण जनसंघ के रूप में शुरू हुआ था. जनसंघ बनाने की पहली बैठक में श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी, श्री दीन दयाल उपाध्याय, श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लाल कृष्ण आडवाणी उपस्थित थे. श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अलावा अन्य सभी संघ के प्रचारक थे.
पहली बैठक में गुरुजी ने कहा, आप सब अच्छी तरह समझिए कि हम राष्ट्रवादी संगठन हैं. हमारे राष्ट्र की जड़ें मजबूत हों, कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक राष्ट्र का स्वरूप तैयार हो. हमारा देश पुन: अपने वैभवशाली स्वरूप को प्राप्त करे. इसके लिए मान्यताएं बनाना और कोई हमें गलत न समझे, इसके लिए राजनीति में हमारा हस्तक्षेप अति आवश्यक है. इसी हस्तक्षेप को आधार बनाकर गुरुजी ने भारतीय जनसंघ का निर्माण किया.
भारतीय जनसंघ सन 1967 तक बहुत प्रभावशाली ढंग से चला. भारतीय जनसंघ में संघ ने अपने महत्वपूर्ण लोगों को भेजा और उन्होंने भी जी-जान लगाकर भारतीय जनसंघ को आगे बढ़ाया. उदाहरण के रूप में भैरो सिंह शेखावत का नाम लिया जा सकता है. वह राजे-रजवाड़े परिवार से संबंधित थे. लेकिन संघ ने जब भूमि सुधार की बात स्वीकार की तो भैरो सिंह शेखावत ने अपनी सारी जमीन दान कर दी थी.
संघ का दर्द
यहीं से संघ के वरिष्ठ लोगों का दर्द शुरू होता है. उन्हें याद है कि जब-जब भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण सत्ता मिली, तब-तब भारतीय जनता पार्टी भटकी. भाजपा में भेजे गए संघ के लोग जान-बूझकर भटके, अनजाने में भटके, मजबूरी में भटके, लेकिन जब भी भटके उनका चरित्र देश के लोगों को अचानक कांग्रेस के मूलभूत चरित्र के समान दिखाई दिया. संघ के लोग याद करते हैं कि भारतीय राजनीति के सबसे प्रमाणिक और ज्ञानवान राजनीतिक चिंतक आचार्य विष्णु गुप्त (चाणक्य) थे. चाणक्य स्वयं सम्राट चंद्रगुप्त के पास वेश्याओं को भेजते थे.
उनका मानना था कि राजनीति में जो व्यक्तिजाते हैं वे तामसिक होते हैं, यदि उनकी वह तामसिक वृत्ति बाहर न निकले तो वे सत्ता पर बोझ बन जाते हैं. इन्हीं मान्यताओं के कारण चाणक्य चंद्रगुप्त के पास वेश्याओं को भेजते थे. संघ के लोग कहते हैं कि अब हम भाजपा नेताओं के पास वेश्याओं को तो भेजने से रहे, लेकिन हमने एक दूसरा रास्ता निकाला है.
हम जिन्हें भी भाजपा में भेजते हैं, उन्हें वापस संघ में नहीं लेते. जब हमने इसका संपूर्ण आकलन किया, तब हमें लगा कि यह तथ्य अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है. संघ ने अपने पूर्णकालिक उद्देश्यों को कई बार परिभाषित किया है, जैसे धारा 370 हटनी चाहिए, अयोध्या का राम मंदिर बनना चाहिए, गो-हत्या पर प्रतिबंध लगना चाहिए, मांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगना चाहिए. संघ की मान्यता है कि जब हम वसुधैव कुटुंबकम कहते हैं तो हर एक व्यक्तिको, पेड़-पौधों को, प्राकृतिक संसाधनों को पूर्ण रूप से जीना चाहिए.
संंघ के उद्देश्यों के विपरीत काम
संघ के लोग याद करते हैं कि संघ द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों पर केंद्र में अब तक दो सरकारें आईं. पहली श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, जिसे वे अस्सी प्रतिशत अपनी मानते हैं, क्योंकि वह गठबंधन सरकार थी. दूसरी श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार है, जो सौ प्रतिशत संघ की कोशिशों की वजह से सत्ता में आई और जिसके पास पूर्ण बहुमत है. संघ के लोग आपस में ही सवाल उठा रहे हैं कि क्या ये दोनों सरकारें, जिन्हें हमारी सरकार माना जाता है, हमारे उद्देश्यों को पूरा कर पाईं या उनकी स्थिति चिराग तले अंधेरे वाली हो गई है.
संघ जलता रहे, दिये की तरह उजाला करता रहे और उसके नीचे लोग उसके उद्देश्यों के विपरीत सारे उल्टे काम करते रहें. नरेन्द्र मोदी के डेढ़ साल के शासनकाल के दौरान पाकिस्तान को गालियां देने से लेकर पाकिस्तान से हाथ मिलाने तक, वो सभी काम हुए, जो संघ की परिभाषा और मान्यता के विपरीत थे. संघ का उद्देश्य था कि भारतीय समाज जो वस्तुएं बनाता है, उन्हें संरक्षण मिले, जिससे जनता को काम या रोजगार मिले. संघ का उद्देश्य था कि सभी लोग सामाजिक समरसता से चलें, हिंदू विचार चिंतन आगे बढ़े, अयोध्या का राम मंदिर बने, पूरा देश एक हो और कॉमन सिविल कोड हो. धारा 370 हटे और कश्मीर देश कीमुख्य धारा में आए.
विस्थापित कश्मीरी पंडितों को पुन: स्थापित किया जाए, लेकिन मोदी सरकार इनके विपरीत काम कर रही है. संघ के लोग कहते हैं कि मोदी ने देश में बने उत्पादों को सहारा देने और स्वदेशी माल को संरक्षण देने की जगह 15 क्षेत्रों में विदेशी निवेश (एफडीआई) के रास्ते खोल दिए. उन्होंने देश में यूरोपीय देशों सहित संपूर्ण पश्चिमी देशों के लोगों के आने के सारे दरवाजे खोल दिए.
संघ के लोगों को इस बात का दुःख है कि जो काम कांग्रेस 65 साल में नहीं कर पाई या मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियां सन 1990 से 2014 तक जिस चीज को करने में हिचकती रहीं और नहीं कर पाईं, उसे नरेन्द्र मोदी और अरुण जेटली की सरकार ने डेढ़ साल में आसानी से कर दिया. 15 क्षेत्रों में एफडीआई खोलने को लेकर संघ काफी परेशान है. वह रेलवे में विदेशी निवेश खोलने से और अधिक परेशान है. फ्रांस की कंपनी देश में लोकोमोटिव कोचेज बनाएगी. संघ के लोग कहते हैं कि आखिर रेलवे कोच बनाने के लिए ऐसी कौन सी महान तकनीक की आवश्यकता है, जो हमारे देश के लोग नहीं बना सकते.
इन्होंने (मोदी सरकार) ऐसी कौन सी तकनीकी विशेषज्ञता विदेशियों में देखी कि उन्होंने रेलवे को उनके हाथों में सौंपने का मन बना लिया. इसी तरह मकान बनाने के लिए किस विशेष तकनीक की आवश्यकता थी जिसके लिए विदेशी धन, विदेशी कंपनियों और विदेशी तकनीक बुला ली. संघ के लोग कहते हैं कि हमारे देश में ऐसी इमारतें बनी हुई हैं, जिनकी संरचना आज तक विश्व नहीं समझ पाया है. हमारे यहां ऐसे मंदिर हैं जिनके खंभे के नीचे से कपड़ा निकाल लीजिए, बिना जमीन को छुए पिलर (स्तंभ) खड़े हैं और मंदिर खड़ा है. हमारे यहां ऐसे भवन हैं जिनमें एक दीवार हिलाने पर दूसरी दीवार हिलती है, लेकिन भवन खड़े हैं.
इस तकनीक को विश्व आज तक समझ नहीं पाया और हम अपनी तकनीक को बढ़ाने के बजाय विदेशी तकनीक को अपनाते जा रहे हैं. संघ के लोगों को इस बात का दुःख है कि कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में सौ प्रतिशत विदेशी निवेश की छूट हो गई है. आप कैसे भी भवन बनाएं, विज्ञापित करें, उन्हें बेचें और चले जाएं. भले ही उनमें गुणवत्ता हो या न हो. संघ के लोग मोदी सरकार की इस लूटो और भागो नीति को विदेशियों के लिए दी गई सुविधा बता रहे हैं.
संघ के लोग इस बात से आश्वस्त हैं कि मोदी की सरकार उनके परिभाषित उद्देश्यों के अनुरूप काम नहीं कर रही है. पूरा संघ इससे असंतुष्ट है. संघ के लोग इसके उदाहरण के रूप में संघ प्रमुख के बयानों को बताते हैं.
वे कहते हैं कि संघ प्रमुख ने सिलेसिलेवार बयान अपने मन की व्यथा प्रकट करने के लिए दिए. बिहार में भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गई. संघ के लोग कहते हैं कि क्या संघ प्रमुख बच्चे थे, जो उन्होंने बिहार चुनाव से पहले आरक्षण को लेकर बयान दिया? संघ प्रमुख को सारी राजनीति की समझ है, वह बच्चे नहीं हैं. संघ के लोगों का साफ कहना है कि जो सांस्कृतिक और सामाजिक व्यक्तिहोता है, वह राजनीति से अप्रभावित नहीं रहता. वह राजनीति को अच्छी तरह समझता है.
हमारे देश में राजनीति हर क्षेत्र में दखल रखती है और संघ प्रमुख को इस राजनीति की बहुत अच्छी समझ है. आखिर उन्होंने ऐसा उद्बोधन क्यों दिया कि आरक्षण पर पुनर्विचार होना चाहिए, और अब वह कह रहे हैं कि राम मंदिर बनना चाहिए. संघ के लोगों का कहना है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, क्यों संघ प्रमुख ये बयान दे रहे हैं? वे इसका कारण बताते हैं कि चूंकि सरकार अपने उद्देश्यों और अपने रास्ते से फिसल रही है, इसलिए संघ प्रमुख को ये बयान देने पड़ रहे हैं, और सरकार को इशारे से बताना पड़ रहा है कि उसका रास्ता कौन सा है या कौन सा होना चाहिए.
संघ सरकार से असहयोग की मुद्रा में आ गया है इसलिए पिछले 15 साल से गुजरात जो कि अभेद्य गढ़ बना हुआ है, इस बार वहां भाजपा चुनाव हारने की अवस्था में पहुंच गई है. दूसरा उदाहरण संघ के लोग मध्य प्रदेश को बताते हैं, जहां शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए भाजपा लोकसभा उप-चुनाव हारी. संघ के लोग इस बात से चिंतित हैं कि बिहार चुनाव से भाजपा ने कोई सीख नहीं ली. उन्हें लगता है कि भाजपा और संघ के ये अंदरूनी मतभेद कहीं युद्ध की शक्ल न ले लें और कांग्रेस दोबारा सत्ता में न आ जाए.
जेटली सरकार पर हावी
संघ के लोग यह बात भी रेखांकित करते हैं कि मोदी ऐसे नेता हैं, जो अपने विरोधियों को कभी माफ नहीं करते. उनके कई मंत्री इसी काम में लगे हैं कि जिसने कभी भी मोदी से असहमति जाहिर की हो, उसे कैसे उसकी औकात में लाना है. इसका पहला उदाहरण संघ के लोग राजनाथ सिंह का देते हैं कि राजनाथ सिंह के पुत्र को लेकर ऐसी देशव्यापी अफवाह फैली कि राजनाथ सिंह ने परेशान होकर सबसे पहले आत्मसमर्पण किया.
राजनाथ सिंह को फेसबुक में साजिशी मंत्री भी करार दे दिया गया. उनके हर कदम को इस तरह सोशल मीडिया द्वारा प्रचारित किया गया, मानो उनके ऊपर आज तलवार गिरने वाली है या कल तलवार गिरने वाली है. राजनाथ सिंह इस क्रम में पूर्णत: नियंत्रित हो गए. अरुण जेटली इस पूरे घटनाक्रम में सरकार के ऊपर हावी हो गए.
अरुण जेटली ने ललित मोदी को बांधने की रणनीति बनाते-बनाते वसुंधरा राजे सिंधिया को बांध दिया. अरुण जेटली ने ही व्यापमं घोटाले में शिवराज सिंह चौहान को बांध दिया. संघ के लोगों का कहना कि मोदी को एक शिखंडी मिला हुआ है और वह उसकी आड़ में अपने एक-एक दुश्मन का शिकार कर रहे हैं. संघ के वरिष्ठ लोग परेशान हैं, क्योंकि वे व्यक्तिआधारित व्यवस्था नहीं चाहते, वे विचार आधारित व्यवस्था चाहते हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी की मौजूदा सरकार व्यक्ति आधारित सरकार में बदल रही है.
सबसे रहस्यमयी व्यक्तित्व अरुण जेटली का है. अरुण जेटली क्या करना चाहते हैं, नरेन्द्र मोदी को किस तरह की तस्वीर दिखाकर उनसे किन-किन कामों को पूरा करने की हामी भरवा रहे हैं, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है. संघ को यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि देश की अर्थव्यवस्था गिरती जा रही है, देश में कोई खुश नहीं है. उनके समर्थक और संपूर्ण व्यापारी वर्ग रो रहा है. व्यापार का कोई भी अंग खुश नहीं है.
जनता भी दुखी है जो चुनाव परिणामों से सामने आ रहा है, लेकिन अरुण जेटली हर वह काम कर रहे हैं, जिसका रिश्ता वित्त मंत्रालय से नहीं है. बस वह वित्त मंत्रालय का काम नहीं कर रहे हैं. क्योंकि देश की आर्थिक स्थिति कहीं भी सुधरती दिखाई नहीं दे रही है. संघ के लोग कई फैसलों के पीछे अरुण जेटली का दिमाग बताते हैं. हमें पाकिस्तान से बात करनी है या नहीं, यह फैसला भी नहीं हो पाता. हम कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद से समझौता कर लेते हैं और सारे महत्वपूर्ण मंत्रालय मुफ्ती मोहम्मद सईद को दे देते हैं.
कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी के सारे मंत्रियों के पास ऐसे विभाग हैं जिन्हें संघ किसी मतलब का नहीं मानता और संघ ने इसी क्षोभ या गुस्से की वजह से देश में चली टॉलरेंस(सहिष्णुता) या इनटॉलरेंस(असहिष्णुता) की बहस में कहीं भी भाजपा का समर्थन नहीं किया. संपूर्ण संघ टॉलरेंस की बहस में तटस्थ रहा.
संघ के लोग सवाल पूछते हैं, क्या इन सभी घटनाओं से आपको लगता है कि संघ और भाजपा में सब कुछ ठीक है, फिर मुस्कुराते हुए कहते हैं नहीं, सबकुछ ठीक नहीं है. संघ के लोगों ने मुझसे साफ कहा कि संघ एक परिवार की तरह काम करता है. इशारों-इशारों में समझाता है.
आप समझिए तो ठीक, नहीं तो संघ सरकार को या पार्टी को अपने हाल पर छो़ड़ देता है. संघ के लोग उदाहरण देते हैं कि भाजपा जब अपने आप चली तो बिहार हार गई, गुजरात हार गई(पंचायत चुनाव). संघ के लोग कहते हैं कि अभी देखना चाहिए कि भाजपा का आने वाले चुनावों में क्या हाल होगा? सारी रणनीति अमित शाह बना रहे हैं. अब देखना है कि अमित शाह रहेंगे या जाएंगे.
अमित शाह और संघ
अमित शाह को लेकर संघ की धारणा साफ है कि अमित शाह एक ऑटोक्रेटिक (तानाशाह) बनकर भाजपा में उभरे हैं. वह न किसी से चर्चा करते हैं और न बात करते हैं. संघ के लोग ब़हुत दुःख से बताते हैं कि जो भाजपा स्वदेशी की इतनी बात करती है वह अपने ऑडिटर को ऑडिट करने के लिए सालाना दस लाख रुपये देती थी. उसे हटाकर अमित शाह ने ई एंड वाई (अर्नेस्ट एंड यंग) को अप्वाइंट कर दिया और उसकी फीस दस करोड़ तय कर दी.
ई एंड वाई विदेशी कंपनी है. संघ के लोगों ने मुझसे हंसते हुए कहा कि जो पार्टी स्वदेशी की बात करती है, वह स्वदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट को हटाकर विदेशी कंपनी को अप्वाइंट कर रही है. वह दस लाख की जगह दस करोड़ फीस दे रही है. वह किस दिशा में जा रही है, क्या यह अब भी बताने की जरूरत है. संघ के लोग कहते हैं कि अमित शाह किसी से मिलते नहीं हैं. दिल्ली के चुनावों में बिना किसी से बात किए वह किरण बेदी को ले आए.
यहां सबसे मजेदार बात यह है कि दिल्ली चुनाव से 20 दिन पहले दिल्ली कैंटोन्मेंट का चुनाव भाजपा जीती थी. सतीश उपाध्याय, जो नीचे से ऊपर पहुंचे थे, को रातों-रात हटा दिया गया. बिना किसी से पूछे अमित शाह किरण बेदी को ले आए और किरण बेदी ने पहले सात दिन ऐसे वक्तव्य दिए जैसे वह भाजपा की भाग्य विधाता हों और उसकी सर्वोच्च नेता हों. परिणाम स्वरूप भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव बुरी तरह हार गई. संघ इसे पूरी तरह अमित शाह द्वारा किया काम मानता है.
अमित शाह ने भाजपा में ऐसे-ऐसे महासचिव बनाए हैं, जो सबसे जूनियर हैं. जिन्हें कोई अनुभव नहीं है. संघ के लोगों का यह भी कहना है कि अमित शाह ने ऐसे लोगों को इसलिए अपना महामंत्री बनाया क्योंकि वह गंभीर लोगों को तो महामंत्री बना नहीं सकते क्योंकि सारे गंभीर लोग उनसे वरिष्ठ हैं. संघ का कहना है कि अब स्थिति ऐसी बन गई है कि पार्टी दोयम दर्जे के लोगों के हाथों में आ गई है.
चूंकि ये दोयम दर्जे के हैं इसलिए पार्टी को ठीक से नहीं चला पा रहे हैं. इसी वजह से बिहार में टिकट बांटने में इतनी गड़बड़ियां हुईं. अब जब भाजपा के टिकट बटवारे में खामी हो, टिकट बेचने के आरोप लगें, तो ऐसी स्थिति में पार्टी कब तक सही चलेगी? इतना ही नहीं, संघ का मानना है कि पार्टी इससे विखंडित होने की दिशा में चल पड़ती है. पार्टी के अंदर विरोध के स्वर सुने नहीं जाते.
वरिष्ठों के लिए जगह नहीं
संघ के लोग कहते हैं कि हमारे यहां कहा जाता है कि बुजुर्गों की बात हमेशा सुननी चाहिए. लेकिन भाजपा ने तो अपने बुजुर्गों को रिटायर कर दिया. बुजुर्गों की एक समिति बनाई गई जिसमें आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी, यशवंत सिन्हा जी हैं. लेकिन उनसे कोई बात नहीं करता, सलाह नहीं लेता. उनके ज्ञान का, उनके अनुभव का कोई इस्तेमाल भाजपा नहीं करती, बल्कि उन्हें अपमानित करने के किसी भी मौके का उपयोग करने से नहीं चूकती. अमित शाह ने पार्टी में वन मैन शो
लागू कर दिया है. संघ के लोगों का मानना है कि जिस तरह मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने संघ को गुजरात में समाप्त किया ठीक उसी तरह दिल्ली में यानी केंद्र में वह उन सारे लोगों को किनारे कर रहे हैं जिनसे उन्हें थोड़ी भी अपनी राय से अगल सलाह की आशंका है. जो विपरीत राय रखे, वह बाहर. संजय जोशी इसका सबसे सटीक उदाहरण हैं.
अभी फारुख़ अब्दुल्लाह ने एक बयान दिया कि वाजपेयी सरकार के समय कश्मीर का समझौता लगभग हो गया था और हम कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान को देने वाले थे. इसकी सच्चाई संघ के वरिष्ठ लोगों ने मुझे बताई. उन्होंने कहा यह बिल्कुल सच है. संघ के लोग कहते हैं कि इस सच की सजा गोविंदाचार्य आज तक भुगत रहे हैं.
भारत-पाकिस्तान के बीच समझौता होने जा रहा था हम अपना एक हिस्सा पाकिस्तान को दे रहे थे. गोविंदाचार्य ने इसमें टांग अड़ा दी. गोविंदाचार्य ने अपनी बुुद्धि से उस ब्लंडर को होने से रोक दिया. संघ का कहना है कि अगर गोविंदाचार्य उस ब्लंडर को हो जाने देते तो भाजपा कभी, कहीं पर कोई चुनाव जीतकर नहीं आ सकती थी. गोविंदाचार्य पंद्रह सालों से सजा भुगत रहे हैं और उनका कहीं अता-पता नहीं है.
संघ के वरिष्ठ लोग चाहते हैं और मानते हैं कि संजय जोशी या गोविंदाचार्य जैसे लोग और आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा जैसे लोग उपेक्षित नहीं होने चाहिए, और इनकी सलाह से सरकार चलनी चाहिए. इन लोगों ने बहुत त्याग किया है. संघ के लोग यह भी मानते हैं कि मोदी से देश की जो अपेक्षाएं हैं वेे अभी टूटी नहीं हैं लेकिन भाजपा की चल रही सरकार अपने कदम नहीं सुधारती है तो वह बहुत जल्दी टूटने की कगार पर पहुंच जाएगी.
संघ के लोगों का साफ मानना है कि अभी सिर्फ क़ाग़ज़ी बातें आगे बढ़ रही हैं. यदि फॉरेन एक्सचेंज बढ़ रहा है और पेट्रोल-डीजल के दाम घट रहे हैं तो इसका श्रेय सरकार क्यों ले रही है? इसमें सरकार ने क्या किया है? पेट्रोल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम हुए, इसलिए आपका फॉरेन एक्सचेंज बढ़ गया. फॉरेन एक्सचेंज बढ़ने से फिस्कल डेफिसिट कम हो गया.
यह तो कांग्रेस सरकार रहती तब भी होता. इस पूरी कहानी में जो मजेदार तथ्य सामने आया वह यह कि जिस प्रचारक को संघ ने भाजपा में भेजा उसे कभी वापस नहीं लिया और जिस प्रचारक ने भाजपा के मन की बात नहीं की उसे भाजपा ने किनारे लगा दिया. इसीलिए आज रामलाल जिन्हें भाजपा में संघ में भेजा था सबसे निष्प्रभावी महामंत्री हैं और अमित शाह उनकी बात नहीं सुनते.
आशंकाएं और अपेक्षाएं
संघ के लोगों का साफ मानना है कि यदि अमित शाह ने अपनी कार्य पद्धत्ति को नहीं बदला तो आगे आने वाले चुनाव जिनमें असम, पश्चिम बंगाल और पंजाब प्रमुख हैं, इनमें भाजपा जीत की संभावनाओं से दूर होती जाएंगी. अमित शाह की आक्रामक नीति की वजह से भाजपा के सारे विरोधी एक होने के रास्ते पर चल पड़े हैं. उनका साफ कहना है कि भाजपा को तीस प्रतिशत वोट मिले हैं और यही उसका वोट का आधार है, यदि सत्तर प्रतिशत उसके खिलाफ हो जाएंगे तो उसका हारना तय है. इसे समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है.
इस संभावित हार की वजह से राज्य सभा में सरकार का कभी बहुमत नहीं हो पाएगा और सरकार कभी सही ढंग से काम नहीं कर पाएगी. आज सरकार का कोई बिल संसद में पास नहीं हो पा रहा है. संघ के लोगों का कहना है कि कांग्रेस की जड़ें पिछले 65 साल में जितनी गहराई से जम चुकी हैं उसे उखाड़ना इतना आसान नहीं है. संघ के लोगों का साफ कहना है कि ऐसी स्थिति नहीं आए कि हम भाजपा को बीच में छोड़ दें और उस स्थिति में भाजपा चल पाएगी इसमें बहुत बड़ा संदेह है.
इसलिए भाजपा को संघ के साथ मिलकर चलना चाहिए. संघ के लोग खुद की भी एक कमी बताते हैं कि हमें भी यह आदत छोड़नी होगी कि यदि बेटा बाप की बात नहीं मानता है तो बेटे को मझधार में छोड़ दो. हमें भी भाजपा के ऊपर सख्ती के साथ अपने निर्देश लागू करने होंगे. संघ के लोगों का यह भी मानना है कि हम उन सभी लोगों की बात सुनेंगे जिन्हें भाजपा ने उपेक्षित कर रखा है. देश सबका है. संघ का साफ मानना है कि न कांग्रेस देशद्रोही है, न समाजवादी देशद्रोही हैं, न कम्युनिस्ट देशद्रोही हैं, न मुसलमान देशद्रोही हैं. देश सबका है. देश रहेगा, सब रहेंगे.