भोपाल। पिछले दिनों इंदौर में चूड़ी वाले के साथ हुई मॉब लिंचिग की घटना के बाद प्रशासन की कार्यवाही ने कई बेगुनाह लोगों को गुनाहगार बना दिया है। इसी कड़ी में अब एसडीपीआई पदाधिकारियों को गुंडा शब्द से पुकारते हुए उनको जिलाबदर कर दिया गया है। ये कार्यवाही द्वेषपूर्ण भी है और कानून के विपरीत भी। इस कार्यवाही पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के प्रदेश अध्यक्ष इरफानुल हक़ अंसारी ने बुधवार को निर्वाचन आयोग को सौंपे गए ज्ञापन में ये बात कही है। उन्होंने लिखा है कि जिला दंडाधिकारी इंदौर ने अपने जिला बदर के नोटिस में पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष अब्दुल रऊफ बेलीम, डॉ मुमताज़ कुरैशी के बारे में जो “गुंडा” शब्द का इस्तेमाल किया है, वह घोर अपमानजनक और अलोकतांत्रिक नहीं है। अगर स्थानीय प्रशासन का रवैया इसी तरह का रहा और राजनीतिक दल और उसकी जिम्मेदारियों को अपराध की श्रेणी में डालने की परिपाटी चल पड़ी तो राजनीतिक दलों के औचित्य पर ही सवाल खड़े हो जाएंगे। इरफान उल हक ने कहा है कि हमारा दावा है कि जिला दंडाधिकारी द्वारा एसडीपीआई के पदाधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई निश्चित तौर पर पूर्वाग्रह से प्रेरित है। एक सोची- समझी साज़िश के तहत एसडीपीआई को बदनाम करने का काम किया जा रहा है, ताकि पीड़ितों के लिए उठने वाली आवाज को दबाया जा सके।
उन्होंने कहा कि एक राजनीतिक दल होने के नाते हम आपसे गुहार करते हैं कि इस तरह की अपमानजनक शब्दबाण से हमारे पदाधिकारियों के आत्म सम्मान की रक्षा करें तथा उन पर जिला प्रशासन द्वारा थोपे मुकदमे वापस लेने तथा जिला बदर के नोटिस रद्द करने हेतु उचित कार्रवाई करें।

ये है मामला
एसडीपीआई प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि इंदौर में 22 अगस्त को बाणगंगा थाना क्षेत्र में चूड़ी बेचने वाले तस्लीम की माब लिंचिंग हुई थी।पुलिस के आला अधिकारियों के कहने पर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के इंदौर जिला अध्यक्ष मुमताज़ कुरैशी और रज़ा एकेडमी के ज़ैद पठान पीड़ित को थाना सेंट्रल कोतवाली लेकर पहुंचे। इस बीच पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष अब्दुल रऊफ बेलीम समेत कांग्रेस के कई पूर्व पार्षद भी वहां पहुंच गये। जहां इन लोगों ने पुलिस अधिकारियों से चर्चा कर लिंचिंग के आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। इधर देखते देखते थाने के बाहर काफी भीड़ जमा हो गई थी, जो पिछले पंद्रह दिनों से शहर में हो रही सांप्रदायिक घटनाओं से आक्रोशित थी। रिपोर्ट के बाद लोगों को वहां से इन्हीं लोगों के प्रयास से हटाया गया। मगर दूसरे दिन पता चला कि जो पुलिस रात को पीड़ित के प्रति सहानुभूति जता रही थी, उसने पीड़ित ही नहीं, उसकी रिपोर्ट में मदद करने वालों के खिलाफ भी मुकदमे कायम कर दिए। इतना ही नहीं इनके राजनीतिक कर्तव्य और लोकतांत्रिक अधिकारों के शांतिपूर्ण इस्तेमाल पर प्रशासन ने उनको गुंडा साबित कर जिलाबदर के नोटिस जारी किए हैं।

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