भोपाल। काला धन बाहर निकालने, जाली करंसी बाजार से बाहर करने और कई फायदों को गिनवाती नोटबंदी 6 बरस पूरे कर चुकी है। इस कवायद से आए नतीजों को लेकर विपक्षी कांग्रेस सरकार को ताने दे रही है। इस कालखंड में परेशानियों से घिरे लोग भी अपने अनुभव याद करते नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी इस दिन को याद करते हुए विभिन्न पोस्ट शेयर की जा रही हैं।

मप्र कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता केके मिश्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित करते हुए एक टिप्पणी की है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि धन्यवाद….. आभार… नरेंद्र मोदी जी…..!! आज 8 नवम्बर को नोटबन्दी की 6 वीं वर्षगांठ है। उन्होंने नोटबन्दी के मुख्य उद्देश्य गिनाते हुए काला धन, आतंकवाद और जाली या फेक करेंसी को रेखांकित किया है। साथ ही दावा किया है कि इनमें से कोई भी उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, बल्कि इसके विपरीत परिणाम आए हैं। उन्होंने लिखा है कि कई व्यापार, धंधे चौपट हो गए, बैंकों की लाइन में मौतें हुई, करोड़ों लोग बेरोजगार हुए, जीडीपी 2% गिरी,
और असंगठित क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार देने वाला रियल स्टेट आज भी घाटे में चल रहा है।

मुश्किल से कटे वह दिन…
किसी के घर में शादी का माहोल था, तो किसी के कारोबारी कर्ज अदायगी के वायदे और किसी ने अल्पवेतन से घरेलू जरूरतें पूरी करने की योजना बना रखी थी। लेकिन देर रात हुए नोटबंदी ऐलान ने छोटे, मध्यम और गरीब परिवारों को बड़ी मुश्किल में डाल दिया। रघुनंदन मांझी उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि परिवार में शादी की तैयारियां चल रही थी और अचानक आए फरमान ने काम की दिशा बदल दी। बाजार और रिश्तेदारों को निमंत्रण पत्र देने का स्थान एटीएम, बैंक और उन जगहों की कतार ने लिया, जहां से नोट बदली की कोई उम्मीद थी। आर्किटेक्ट तनवीर जफर और उनकी बेगम ऐमन एक सप्ताह पहले शादी के बंधन में बंधे थे और एक यादगार यात्रा की प्लानिंग कर रहे थे लेकिन बदले हालात ने उन्हें ये सफर रद्द करने पर मजबूर कर दिया। गृहिणी कुसुम बौरासी कहती हैं कि परिवार की भलाई के और जरूरत के समय काम आने वाली बचत की गुल्लक नोट बदली के फेर में एक्सपोज हो गई। साथ ही भविष्य के लिए भी निगरानी का दौर शुरू हो गया।

सोशल मीडिया पर हास्य भरी यादें
नोटबंदी को याद करते हुए सोशल मीडिया पर सोमवार सुबह से ही व्यंग्यात्मक पोस्ट शेयर की जा रही हैं। किसी को नाम से संबोधित न करते हुए चुटकी ली जा रही है कि एक ऐसा दिन भी याद रखने की मजबूरी बन गई है।

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