निरंजन : तिरुचिरापल्ली से आईं वी राजलक्ष्मी भी तमिलनाडु के उन 100 किसानों में शामिल हैं, जो जंतर मंतर पर अपनी कई मांगों को लेकर धरना दे रहे हैं. वे कहती हैं कि हमारी बात ना सरकार सुन रही है और ना ही मीडिया. एंबुलेंस के अभाव में अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लेकर जाने वाले दाना मांझी की खबर पूरे देश में फैल गई, लेकिन हमें रोज ऐसे दाना मांझी देखने पड़ते हैं, जो किसी अपने के शव को कंधे पर ढ़ोने के लिए मजबूर होते हैं. लेकिन हमारी सहायता के लिए कोई नहीं है.
ये पूछे जाने पर कि औरतों को दिल्ली तक क्यों आना पड़ा, केवल पुरूष भी तो प्रदर्शन कर सकते थे, राजलक्ष्मी कहती हैं कि कर्ज के दबाव या पानी के अभाव में फसलों के ना उपजने का कष्ट केवल पुरूषों को ही नहीं सहना पड़ता है. उनके साथ-साथ हम भी भूखे पेट रह रहे हैं और बच्चों को भूख से तड़पता देख रहे हैं. राजलक्ष्मी ने कहा, देश में कहीं भी बाघ मरता है, या जंगलों में कोई शिकार करता है, तो उसके लिए आवाज उठाने वाले कई संगठन हैं.
सरकारों ने उसके लिए कानून भी बनाई है. लेकिन हमारे लिए आवाज उठाने वाला कोई नहीं है. हम कई सालों से आधा पेट खा रहे हैं, अपने सामने अपने कई लोगों को फांसी के फंदे पर झूलते देख चुके हैं. हमने हर उस दरवाजे पर दस्तक दी, जहां हमारी सहायता की कोई आस दिखी. लेकिन हुआ कुछ नहीं. केंद्र सरकार से सहायता की आस लेकर हम यहां आए हैं, हमारे छोटे-छोटे बच्चे घर पर अकेले हैं. अनाज के अभाव में उन्हें सांप और चूहे खाने पड़ रहे हैं… ये कहते हुए राजलक्ष्मी फफक पड़ीं.