सोरिन शर्मा : भाजपा खुद को संस्कृति का संरक्षक और विरासत को बचाने वाली पार्टी मानती है. जिन-जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है, वहां दावा किया जाता है कि सरकार स्थानीय संस्कृति को बचाने के लिए पूरी तरह से प्रयास करती है. लेकिन भाजपा शाषित मध्य प्रदेश में एक समुदाय की पहचान को ही बदनामी से जोड़ा जा रहा है और वो भी उन पाठ्यपुस्तकों के जरिए, जिनके माध्यम से बच्चों को समाज और संस्कृति का पाठ पढ़ाया जाता है. दरअसल, मध्य प्रदेश में विद्यार्थियों को पढ़ाया जा रहा है कि गोंड शब्द का अर्थ होता है, गाय को मारने और खाने वाला.
ये गोंड जनजाति का घोर अपमान है और इसे लेकर इस समुदाय के लोगों में बहुत रोष है. लोगों के विरोध के बाद, अब इस मुद्दे पर विपक्ष ने भी सरकार का विरोध शुरू कर दिया है. इसे लेकर राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने सरकार को घेरने की कोशिश की और इन्होंने कहा कि कांग्रेस आदिवासियों का अपमान सहन नहीं करेगी. इन्होंने मांग की कि इस गंभीर मामले में मुख्यमंत्री सदन के समक्ष स्थिति स्पष्ट करें. जो भी इसके लिए दोषी हों, इनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए. इसे मामले को लेकर सदन में हंगामा भी हुआ.
गौरतलब है कि भाजपा सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया की गिनती कट्टर हिंदुत्व के पैरोकारों में होती है. इसके बावजूद इनके विभाग के अंतर्गत आने वाले पाठ्यक्रम में गाय को एक समुदाय से जोड़ते हुए विवादित टिप्पणी की गई है. चूक कहां पर हुई और दोषी कौन है, ये पूछे जाने पर शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया इसका ठीकरा एक विशेष प्रकाशन और निजी विद्यालय के ऊपर फोड़ दे रहे हैं. सिर्फ विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष की तरफ से भी गोंड जाति के इस अपमान को लेकर आवाज उठ रही है. शिवराज कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्य और आदिवासी नेता विजय शाह, जो स्वयं गोंड जनजाति से आते हैं, उन्होंने इसे लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा कि गोंड जनजाति को लेकर जिस तरह से विद्यार्थियों को गलत बातें बताई जा रही हैं, वो किसी भी तरह से सही नहीं है.
गोंड समुदाय के इतिहास की बात करें, तो जनजातीय आदिवासी वर्ग के ये लोग बड़ी संख्या में मध्यप्रदेश में निवास करते हैं. गोंड जाति की लगभग 60 प्रतिशत आबादी मध्यप्रदेश में रहती है. मध्यप्रदेश के बालाघाट, रायसेन व खरगोन में गोंड बड़ी संख्या में रहते हैं. इसके अलावा ये आंध्रप्रदेश, ओडीशा और छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- छिंदवाड़ा, बैतूल, सिवनी, मण्डला, बस्तर और गोदावरी एवं बैनगंगा के पूर्वी घाट के बीच के पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं. मध्यप्रदेश की ये सबसे अहम जनजाति प्राचीनकाल के गोंड राजाओं को अपना वंशज मानती है.
यह एक स्वतंत्र जनजाति थी, जिनका अपना राज्य था. कहा जाता है कि इस जाति के 52 गढ़ थे और मध्यभारत में 14वीं से लेकर 18वीं शताब्दी तक देश के विभिन्न भूभागों पर इनका शासन रहा. मुगल और मराठा शासकों ने इनपर आक्रमण कर इनके क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. इसके बाद ये लोग प्रदेश के घने जंगलों ओर पहाड़ी क्षेत्रों में शरण लेकर बसने लगे. अब शैक्षिक माध्यम के द्वारा भी इनकी विरासत को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है, जिसका चौतरफा विरोध देखने को मिल रहा है.