कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का बुधवार को श्रीनगर में उनके आवास पर निधन हो गया. वह 92 वर्ष के थे. उन्हें गुरुवार सुबह शहर के बाहरी इलाके स्थित हैदरपुरा में उनकी पसंद की जगह पर सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया.

हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े से ताल्लुक रखने वाले गिलानी ने पिछले वर्ष राजनीति और हुर्रियत से इस्तीफा दे दिया था. उनके परिवार में उनके दो बेटे और छह बेटियां हैं. उन्होंने 1968 में अपनी पहली पत्नी के निधन के बाद दोबारा विवाह किया था. अलगाववादी नेता गिलानी पिछले दो दशक से अधिक समय से गुर्दे संबंधी बीमारी से पीड़ित थे. इसके अलावा वह बढ़ती आयु संबंधी कई अन्य बीमारियों से जूझ रहे थे.

PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट कर गिलानी की मौत पर दुख जताया. उन्होंने कहा, “गिलानी साहब के निधन की खबर से दुखी हूं. हम ज्यादातर चीजों पर सहमत नहीं हो सके, लेकिन मैं उनकी दृढ़ता और उनके विश्वासों के साथ खड़े होने के लिए उनका सम्मान करती हूं. ऊपर वाला उन्हें जन्नत और उनके परिवार और शुभचिंतकों के प्रति संवेदना प्रदान करें.”

29 सितंबर, 1929 को बांदीपुर में वूलर झील के किनारे बसे एक गांव में जन्मे गिलानी अलगाववादी राजनीति का चेहरा थे.

स्कूल में पढ़ाने से कश्मीर के अलगाववाद का सबसे बड़ा चेहरा बनने तक
स्कूल में पढ़ाने वाले गिलानी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी, एक वरिष्ठ नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता के संरक्षण में की थी, लेकिन बाद में जमात-ए-इस्लामी में चले गए.

गिलानी के चुनावी करियर की शुरुआत पारंपरिक अलगाववादी और जमात के गढ़ सोपोर से हुई थी. उन्होंने पहली बार 1972 में विधानसभा चुनाव लड़ा, और तत्कालीन जम्मू और कश्मीर विधानसभा में तीन बार सोपोर का प्रतिनिधित्व किया. साल 1972, 1977 और 1987 में जम्मू कश्मीर के सोपोर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे थे. लेकिन साल 1989 में जब कश्मीर में इमरजेंसी के दौर की शुरुआती हुई तो सैयद अली शाह गिलानी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. फिर क्या था गिलानी अलगाववाद की राजनीति के पोस्टर बॉय बनने लगे.

इसके बाद कश्मीर में अलगाववाद की हवा तेज हुई. साल 1993 में 26 अलगाववादी संगठनों ने मिलकर ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस नाम से एक संगठन बनाया. सैयद अली शाह गिलानी इसके अध्यक्ष भी रहे हैं.

कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए सशस्त्र संघर्ष के प्रबल समर्थक, गिलानी 1993 में गठित हुर्रियत कांफ्रेंस के सात कार्यकारी सदस्यों में शामिल थे. लेकिन कश्मीर पर उग्रवाद और कट्टर विचारधारा के लिए उनके समर्थन ने उनके और उनके साथियों के बीच कलह के बीज बो दिए.

साल 2004 में गिलानी जमात-ए-इस्लामी से अलग हो गए और तहरीक-ए-हुर्रियत के नाम से अपनी खुद की पार्टी बनाई. वहीं पिछले साल सैयद अली शाह गिलानी ने एलान किया कि वह अलगाववादी मंच ‘ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस’ से खुद को पूरी तरह से दूर कर रहे हैं.

गिलानी को मिला पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान

गिलानी का कहना था कि वह लोगों की आकांक्षाओं के अनुसार कश्मीर मुद्दे का समाधान चाहते हैं, वे खुद पाकिस्तान के साथ कश्मीर के विलय के प्रबल समर्थक थे. पिछले साल पाकिस्तान सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा था.

बता दें कि गिलानी पर पाकिस्तान की फंडिंग के सहारे कश्मीर में अलगाववाद भड़काने के आरोप थे. उन पर इससे जुड़े कई केस भी दर्ज हुए थे. जिसके बाद उनका पासपोर्ट भी रद्द कर दिया गया था.

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