अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद स्विट्जरलैंड सरकार ने कालेधन पर कई देशों के साथ सूचना के स्वत: विनिमय (ऑटोमैटिक एक्सचेंज ऑ़फ इन्फॉर्मेशन) का समझौता किया था. भारत भी उसमें शामिल था. उस समझौते को लेकर स्विट्ज़रलैंड में काफी विरोध हुआ था. मामला अदालत तक भी पहुंचा, लेकिन पिछले वर्ष नवम्बर महीने में स्विस संसद की उस समझौते पर मंज़ूरी के बाद अब इसे लागू करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इसी क्रम में पिछले ही वर्ष दिसम्बर में भारत ने स्विट्ज़रलैंड से एक और समझौता किया, जिसके तहत 1 जनवरी 2018 से स्विट्ज़रलैंड अपने बैंकों में भारतीय खातों से सम्बन्धित सुचना भारत के साथ साझा करेगा.
स्विस बैंकों में जमा भारतीयों का पैसा, जिसे आम तौर पर कालाधन की संज्ञा दी जाती है, पिछले कई वर्षों से देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. इस सम्बन्ध में अक्सर कई तरह की बातें सुनने और पढ़ने को मिलती रहती हैं, जिनमें से कुछ अफवाह होती हैं और कुछ में तथ्य होता है. पिछले साल दिसम्बर महीने में स्विट्ज़रलैंड के जूलियस बायर बैंक के पूर्व कर्मचारी रुडॉल़्फ एल्मर ने दावा किया था कि उसके पास भारतीय क्रिकेटरों, फ़िल्मी हस्तियों और राजनीति से जुड़े लोगों के स्विस बैंक खातों की जानकारियां हैं. ज़ाहिर है इस खबर ने देश में सनसनी फैला दी थी. वहीं, इन पैसों की वापसी के लिए योग गुरु बाबा रामदेव से लेकर पूर्व गृहमंत्री एलके आडवाणी और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक अभियान चला चुके हैं. बहरहाल, भारत में स्विस बैंक एक बार फिर सुर्ख़ियों में हैं. कारण है, 2017 में यहां के बैंकों में भारत से जमा होने वाले पैसों में 50 प्रतिशत का इजा़फा.
स्विट्ज़रलैंड के केंद्रीय बैंकिंग प्राधिकरण स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) द्वारा जारी वार्षिक आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2017 में यहां के बैंकों में जमा भारतीयों का पैसा 7,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक है. गौरतलब है कि पिछले तीन वर्षों से यह रुझान निचे की तरफ जा रहा था, जिसकी वजह कालेधन पर भारत सरकार की कार्रवाई बताई जा रही थी. इन आंकड़ों में दूसरी दिलचस्प बात यह है कि 2017 में दुनिया के अन्य देशों के ग्राहकों के पैसों में मात्र 3 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.
दरअसल, एसएनबी ने 7,000 करोड़ रुपए के आंकड़ों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया है- सीधे ग्राहकों द्वारा जमा पैसे, दूसरे बैंकों द्वारा जमा पैसे और अन्य लाइबिलिटीज जैसे प्रतिभूतियों द्वारा जमा पैसे. इन तीनों श्रेणियों में ज़बरदस्त उछाल देखने को मिला है. एसएनबी के मुताबिक, ग्राहकों ने प्रत्यक्ष रूप से 3200 करोड़ रुपए जमा किए, वहीं अन्य बैंकों के माध्यम से 1050 करोड़ और प्रतिभूति आदि के माध्यम से 2640 करोड़ रुपए जमा हुए.
अब सवाल यह उठता है कि आखिर भारतीय पैसों में यह उछाल क्यों आया? तो इसका जो सबसे सरल जवाब नज़र आता है, वो यह है कि वर्ष 2016 में स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा पैसों में 45 प्रतिशत की रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई थी. उस वर्ष यहां भारतीय ग्राहकों के 4500 करोड़ रुपए जमा थे. लिहाज़ा, अब इसमें उछाल आना ही था. इसका एक दूसरा पहलू यह है कि स्विस बैंकों में भारतीय पैसों का रिकॉर्ड 2006 में स्थापित हुआ था. उस साल यह आंकड़ा 23,000 करोड़ रुपए का था.
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि स्विस बैंकों से भारतीय कालाधन वापस लाने की चर्चा 2006 से बहुत पहले शुरू हो गई थी, लेकिन इसके बावजूद यहां भारतीय पैसों में लगातार वृद्धि हो रही थी. 2006 के बाद भी यहां भारतीय पैसों में दो बार बड़ा उछाल 2011 (12 प्रतिशत) और 2013 (43 प्रतिशत) में देखने को मिला. यहां एक तथ्य यह भी है कि 2016 में इन आंकड़ों में जो 45 प्रतिशत की गिरवट दर्ज की गई थी और उसके बाद जो 50 प्रतिशत का उछाल आया है, वो पिछले 20 वर्षों के रुझानों के अनुरूप लगता है.
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद स्विट्जरलैंड सरकार ने कालेधन पर कई देशों के साथ सूचना के स्वत: विनिमय (ऑटोमैटिक एक्सचेंज ऑ़फ इन्फॉर्मेशन) का समझौता किया था. भारत भी उसमें शामिल था. उस समझौते को लेकर स्विट्ज़रलैंड में काफी विरोध हुआ था. मामला अदालत तक भी पहुंचा, लेकिन पिछले वर्ष नवम्बर महीने में स्विस संसद की उस समझौते पर मंज़ूरी के बाद अब इसे लागू करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इसी क्रम में पिछले ही वर्ष दिसम्बर में भारत ने स्विट्ज़रलैंड से एक और समझौता किया, जिसके तहत 1 जनवरी 2018 से स्विट्ज़रलैंड अपने बैंकों में भारतीय खातों से सम्बन्धित सुचना भारत के साथ साझा करेगा.
बहरहाल, इस खुलासे के बाद विपक्ष ने सरकार और कालेधन के खिलाफ उसके अभियान को कठघरे में खड़ा कर दिया. यहां तक कि खुद भाजपा संसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी इन आंकड़ों को लेकर सरकार पर तंज़ कसा. जवाब में वित्त मंत्री अरुण जेटली की तरफ से स्पष्टीकरण आया कि स्विस बैंकों में जमा सारा पैसा कलाधन नहीं है, खास तौर पर तब, जब भारत में पर्सनल टैक्स कलेक्शन में 44 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. लेकिन शायद अरुण जेटली यह भूल गए हैं कि इस तरह की धारणा पैदा करने में उनकी सरकार की ही भूमिका रही है कि स्विस बैंकों में जमा सारे पैसे ब्लैक मनी हैं.
बहरहाल, यह सवाल तो उठ ही सकता है कि जब 2017 में स्विस बैंकों में दुनिया के अन्य देशों की हिस्सेदारी में मात्र 3 फीसदी का इजाफा हुआ, तो भारतीय हिस्सेदारी में इतनी बड़ी उछाल क्यों? क्या इसकी वजह यह है कि स्विट्ज़रलैंड के साथ यह समझौता 1 जनवरी 2018 के बाद लागू होगा और तब तक वहां अपना कालाधन खपाया जा सकता है. साथ में एक सवाल यह भी है कि 1 जनवरी 2018 से पहले की सूचनाओं का क्या होगा? 2014 के बाद जो पैसे स्विस बैंकों से निकाले गए, वो गए कहां? क्या उसका कोई हिसाब है? सरकार को यह भी बताना चाहिए कि रुडॉल़्फ एल्मर के खुलासे पर क्या कार्रवाई हुई है? केवल यह कह कर सरकार अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकती कि स्विस बैंकों में जमा सारे पैसे कालाधन नहीं हैं.