ओलंपिक के आयोजन से पहले भारतीय खेल जगत में हलचल मचना एक तरह की रवायत हो गई है. लंदन ओलंपिक से पहले खिलाड़ियों के बीच के मतभेद देश हित पर भारी पड़े थे. विश्व स्तरीय टेनिस खिलाड़ियों की उपस्थिति के बावजूद लंदन में भारतीय दल टेनिस कोर्ट में अपनी छाप नहीं छोड़ सका था. लिएंडर पेस, महेश भूपति, सानिया मिर्जा और रोहन बोपन्ना जैसे खिलाड़ियों के टीम में होते हुए भी भारतीय टेनिस दल लंदन से खाली हाथ लौटा था. इस बार कुछ ऐसी ही लड़ाई कुश्ती के अखाड़े में हो रही है. इस लड़ाई में एक तरफ दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार हैं तो दूसरी तरफ ओलंपिक कोटा हासिल कर चुके नरसिंह पंचम यादव हैं.
सुशील लगातार तीसरी बार ओलंपिक पदक हासिल करने का सपना देख रहे हैं. लेकिन इस बार उन्होंने अपने भार वर्ग में बदलाव किया है. सुशील ने अबतक जितने भी अंतरराष्ट्रीय पदक जीते हैं उन्होंने उनमें से अधिकांश 66 किग्रा भार वर्ग में जीते हैं. ओलंपिक में रजत पदक जीतने के बाद सुशील दो साल तक मैदान से दूर रहे. इस दौरान उन्होंने अपने भार वर्ग में बदलाव के लिए तैयारी की. साल 2014 में इटली के ससारी में हुई प्रतियोगिता से उन्होंने वापसी की और 74 किग्रा भार वर्ग में रजत पदक हासिल किया. इसके बाद साल 2014 में ग्लासगो में आयोजित 20वें राष्ट्रमंडल खेलों में 74 किग्रा भार वर्ग में कुश्ती का स्वर्ण पदक हासिल किया.
लंदन ओलंपिक के बाद उन्होंने केवल इन्हीं दो अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में हिस्सा लिया और दोनों में ही पदक हासिल किया है, लेकिन बीजिंग और लंदन ओलंपिक के बीच उन्होंने 8 अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग लिया था. कंधे की चोट की वजह से वह पिछले साल अमेरिका के लास वेगास में हुई विश्व चैंपियनशिप में भाग नहीं ले सके थे, इसके पहले वह नए भार वर्ग के लिए तैयार होने और चोट से उबरने में व्यस्त थे. बीजिंग और लंदन ओलंपिक में क्रमशः कांस्य और रजत पदक जीतने के बाद विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर वह देश के सबसे सफल ओलंपिक एथलीट बनकर उभरे थे. उनकी खासियत यह है कि वह बड़ी स्पर्धाओं में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं.
वहीं दूसरी तरफ 27 वर्षीय नरसिंह यादव ओलंपिक में पदक जीतने का सपना संजोए बैठे हैं. नरसिंह यादव 74 किग्रा वर्ग के एक्सपर्ट हैं वह लगातार 9 सालों से इस वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. उन्होंने पिछले साल सितंबर में अमेरिका के लास वेगास शहर में हुई विश्व चैंपियन में 74 किग्रा भार वर्ग में कांस्य पदक जीतकर ओलंपिक कोटा हासिल किया था. ओलंपिक को छोड़कर वह कुश्ती की अन्य सभी बड़ी प्रतियोगिताओं में पदक हासिल कर चुके हैं. फिलहाल वह अपने करियर के सर्वश्रेष्ठ दौर से गुजर रहे हैं. पिछले दो सालों में उन्होंने विश्व चैंपियनशिप, एशियन चैंपियनशिप और एशियाई खेलों में कांस्य पदक हासिल किया है. हालांकि लंदन ओलंपिक में उन्होंने भाग लिया था लेकिन पदक नहीं जीत सके थे. लंदन ओलंपिक के बाद नरसिंह ने नौ अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया और इन सभी प्रतियोगिताओं में कम से कम सर्वोच्च पांच खिलाड़ियों में जगह बनाने में सफल रहे.
वर्तमान में विश्व रैंकिंग में नरसिंह पांचवें स्थान पर हैं. उन्होंने विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक मुकाबले में लंदन ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता क्यूबा के लोपेज एजक्वे को मात दी थी. हालांकि इससे पहले बड़ी प्रतियोगिताओं में वह दबाव में बिखरते रहे हैं. यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी रही है, लेकिन पिछले दो सालों के अपने प्रदर्शन से उन्होंने इस कमी की भरपाई कर ली है. आम तौर पर नरसिंह चोटों से दूर रहे हैं. वह वर्तमान में देश के सबसे फिट पहलवानों में से एक हैं. साल 2007 से नरसिंह 74 किग्रा वर्ग में खेल रहे हैं उनके पास इस कैटेगरी में खेलने का ज्यादा अनुभव है.
हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वह ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करे और देश के लिए पदक जीते. भारत में खेलों को लेकर लोगों की सोच में धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है. इसलिए हर स्तर पर खिलाड़ी उभरकर सामने आ रहे हैं. भारत में खेलों में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है. सुशील और नरसिंह के बीच का विवाद भी इसी प्रतिस्पर्धा का नतीजा है. विश्व चैंपियनशिप के पहले 74 किग्रा भार वर्ग के होने वाले ट्रायल मुकाबले पर हर किसी की नज़रें थीं. लेकिन चोट की वजह से सुशील ट्रायल्स में भाग नहीं ले सके और नरसिंह को लास वेगास जाने का मौका मिल गया. नरसिंह ने हाथ आए इस मौके को नहीं गंवाया और पहले ओलंपिक क्वालीफाइंग टूर्नामेंट में ही ओलंपिक कोटा हासिल कर लिया.
32 वर्षीय सुशील अब फिट हैं और तीसरी बार ओलंपिक पदक जीतने के लिए आतुर हैं लेकिन वह जिस कैटेगरी में इस बार खेलना चाहते हैं उसके लिए नरसिंह क्वालीफाई कर चुके हैं. ओलंपिक में कुुश्ती की 18 स्पर्धाओं में प्रत्येक देश से केवल एक-एक रेसलर भाग ले सकता है. सुशील और नरसिंह में से कौन भाग ले यह सवाल खड़ा हो गया. सुशील ने कहा कि कोटा देश के लिए होता है खिलाड़ी का नहीं. वह ओलंपिक के लिए ट्रायल करवाना चाहते थे. जब रेसलिंग फेडरेशन ने उनकी बात नहीं मानी और कहा कि जो खिलाड़ी कोटा लाया है वही ओलंपिक में भाग लेगा. रियो ओलंपिक में भाग लेने के अरमानों पर पानी फिरता देख सुशील ने खेल मंत्रालय और प्रधानमंत्री से इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा. इस वजह से मामला और बड़ा हो गया.
उन्होंने बार-बार यह बात कही कि वह सिर्फ ट्रायल चाहते हैं जो इसमें जीते वही ओलंपिक में जाए. वह चाहते हैं कि ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति करे. मामले को बढ़ता देख फेडरेशन ने खेल मंत्रालय के पाले में गेंद डाल दी, लेकिन तत्कालीन केंद्रीय खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है. फेडरेशन स्वायत्त संस्था है और उसे चयन के संबंध में निर्णय लेने का अंतिम अधिकार है. हम राष्ट्रीय खेल संहिता का पालन करते हैं और सभी खेल संघों की स्वायत्ता का सम्मान करते हैं. सरकार इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी.
इसके बाद सुशील ने कोर्ट का रुख किया. उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में अंतिम निर्णय के लिए याचिका दायर की. याचिका दायर करने के मसले पर सुशील के कोच और ससुर सतपाल सिंह ने कहा कि उन्होंने इस विवाद के समाधान के लिए हर दरवाजा खटखटाया, लेकिन जब उनकी बात नहीं सुनी गई तो उन्हें मजबूरन कोर्ट जाना पड़ा. हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि ओलंपिक कोटा देश का होता है न कि खिलाड़ी का. ऐसे में ओलंपिक में भाग लेने के लिए ट्रायल होना ही चाहिए. याचिका में यह भी कहा गया है कि स्पोट्र्स कोड के अनुसार प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा के लिए फेडरेशन को अलग-अलग ट्रायल आयोजित कराने चाहिए.
हालांकि रेसलिंग फेडरेशन का कहना है कि यदि आज सुशील और नरसिंह के बीच ट्रायल करवाया जाता है तो अन्य वर्गों के लिए भी ट्रायल करवाने की मांग उठेगी. फेडरेशन असमंजस की स्थिति में है. उसके लिए एक तरफ गड्ढा और दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति पैदा हो गई है. यदि सुशील ओलंपिक में नहीं जा पाते हैं तो देश के मेडल जीतने की आशाओं को बड़ा झटका लगेगा, वहीं दूसरी तरफ नरसिंह ओलंपिक में नहीं जाते हैं और सुशील पदक जीतने में असफल रहते हैं तो भी नुकसान देश का ही है. यदि अब तक 74 किग्रा वर्ग में नरसिंह ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है तो उनसे अपेक्षा की जा सकती है कि वह बेहतर प्रदर्शन करेंगे और देश को मेडल जितवाएंगे.
फेडरेशन के अध्यक्ष बृज भूषण शरन सिंह का कहना है कि 74 किग्रा वर्ग में सुशील कुमार की कोई विशेष उपलब्धि नहीं है, इसलिए उन्हें ओलंपिक में भेजना घाटे का सौदा है. इसके अलावा सुशील चोट की वजह से काफी समय तक कुश्ती से दूर रहे हैं, इसलिए उनसे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद नहीं की जा सकती.
इस तरह की स्थिति वर्ष 2004 में ग्रीस ओलंपिक के दौरान भी हुई थी. तब कृपा शंकर पटेल दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे थे. जबकि योगेश्वर दत्त ने कोटा हासिल किया था. उस वक्त कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि जिस खिलाड़ी ने कोटा हासिल किया है उसे ही ओलंपिक में जाना चाहिए यदि वह खिलाड़ी अनफिट है या फॉर्म में नहीं है उसी स्थिति में दूसरे खिलाड़ी को भेजा जाना चाहिए. यहां नरसिंह न ही अनफिट हैं और न ही आउट ऑफ फॉर्म हैं. विश्व के पूर्व नंबर एक ट्रैप शूटर रोंजन सोढ़ी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. 2008 में बीजिंग ओलंपिक के लिए टीम का चयन होना था. उस दौरान सोढ़ी विश्व रैंकिंग में दूसरे नंबर पर थे. उस दौरान उन्होंने 200 में 194 अंक हासिल कर विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की थी.
वहीं 2004 ओलंपिक के रजत पदक विजेता राज्यवर्धन सिंह राठौर ने साल 2006 में ही ओलंपिक कोटा हासिल कर चुके थे, ओलंपिक से पहले उनके फॉर्म को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, लेकिन शूटिंग फेडरेशन ने अंत में यह फैसला किया कि राठौर ने कोटा हासिल किया है इसलिए वही ओलंपिक में जाने के हक़दार हैं. लेकिन इसके बाद फेडरेशन ने अपनी सेलेक्शन की नीतियों में बदलाव किया. इसके बाद सेलेक्शन के लिए ट्रायल्स होने लगे.
सुशील की याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें फौरी राहत नहीं दी है. हालांकि कोर्ट ने रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया को नोटिस जारी करके उनका रुख पूछा है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि फेडरेशन के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सुशील के कोच और अन्य अधिकारी साथ बैठकर कोर्ट को बताएं कि उनका पक्ष क्या है. कोर्ट में सुनवाई के दौरान रेसलिंग फेडरेशन ने बताया कि नरसिंह यादव ने ओलंपिक के लिए सभी योग्यताएं हासिल कर ली हैं. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि सुशील ने देश का गौरव बढ़ाया है लेकिन यदि फेडरेशन को तुरंत ट्रायल कराने को कहा जाएगा तो इससे गलत संदेश जाएगा और हर कोई अपना वजन बढ़ाएगा या घटाएगा. अदालत ने सुशील के वकील से पूछा है कि रेसलिंग फेडरेशन ने कौन से नियम तोड़े हैं और क्या गलत किया है.
कोर्ट ने फेडरेशन को पांच दिन के अंदर सुशील को बुलाकर उनसे बात करने को कहा है. सुशील ने कोर्ट से कहा कि उन्होंने ओलंपिक के लिए काफी तैयारी की है. वह रियो ओलंपिक में जाने से पहले नरसिंह के साथ एक मुक़ाबला चाहते हैं. इसके जवाब में फेडरेशन ने कोर्ट से कहा कि सुशील कुमार ने दो से तीन बार नरसिंह यादव से किसी भी तरह के मुक़ाबले को टाला है. ओलंपिक के लिए नरसिंह 74 किग्रा भार वर्ग में सुशील से बेहतर रेसलर हैं. सुशील देश के लिए खेल चुके हैं नरसिंह को उनकी योग्यता को ध्यान में रखकर चयनित किया गया है. फेडरेशन ने कोर्ट को यह भी बताया कि सुशील को सारी स्थिति और बातों की जानकारी है लेकिन वो समझना ही नहीं चाहते. कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 27 मई को होगी.
कोर्ट के इस रुख से लगता है कि वह शायद ही रियो में भाग ले पाएं. सुशील ने भले ही ओलंपिक में दो बार पदक जीतकर देश को गौरवान्वित किया है, लेकिन इस आधार पर वह किसी का हक़ नहीं मार सकते. हो सकता है कि वह नरसिंह रियो से स्वर्ण पदक जीतकर लौटें. क्योंकि उम्र के जिस दौर में आज सुशील हैं अगले ओलंपिक में नरसिंह भी उसी स्थिति में पहुंच जाएंगे. जब सुशील ने रजत पदक जीता था तब वह 28 साल के थे आज नरसिंह 27 साल के हैं ऐसे में सुशील को सकारात्म रुख अपनाते हुए युवा खिलाड़ियों की मदद करनी चाहिए.
हर कोई चाहता है कि खेलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए. सुशील देश के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ एथलीट हैं और रहेंगे. उन्हें देश से बहुत प्यार और सम्मान मिला है, यदि वह इस विवाद को ज्यादा खींचेंगे तो लोग उन्हें स्वार्थी और अभिमानी कहेंगे. इसलिए नई पीढ़ी को मौका देकर उन्हें अपने धर्म का पालन करना चाहिए, इसके अलावा देश के सभी खेल फेडरेशनों को इस मामले से सबक लेते हुए ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे भविष्य में इस तरह का कोई विवाद पैदा न हो. जिससे खिलाड़ी अपना सारा ध्यान खेल में लगाएं न कि खेल से बाहर की गतिविधियों पर. इसी में खेलों, खिलाड़ियों और देश तीनों की भलाई है.
कोटा सिस्टम क्या है?
कोटा सिस्टम वह होता है जिसमें यह बताया जाता है कि किसी स्पर्धा में एक देश के कितने खिलाड़ी भाग ले सकते हैं. इसका मतलब यह कि किसी भी खिलाड़ी की उस स्पर्धा में भाग लेना उसकी विश्व रैंकिंग पर निर्भर नहीं करता है बल्कि यह उसके देश की रैंकिंग पर निर्भर करता है. उदाहरण के लिए यदि किसी देश के तीन खिलाड़ी विश्व रैंकिंग में पहले, दूसरे और तीसरे पायदान पर हैं और उसके पास केवल दो कोटा स्थान हैं तो देश के सभी खिलाड़ियों के बीच ट्रायल करवाकर दो ट्रायल के विजेता खिलाड़ियों को उस प्रतियोगिता में खेलने के लिए भेजा जाता है. ऐसे में दुनिया के अन्य खिलाड़ियों से बेहतर खिलाड़ी ओलंपिक जैसी प्रतियोगिता में भाग लेने से वंचित रह जाता है. ऐसे खिलाड़ी ओलंपिक में तभी भाग ले सकते हैं जब उन्हें उस खेल से संबंधित वैश्विक संस्था भाग लेने के लिए आमंत्रित करे या फिर किसी ओपन क्वालीफाईंग इवेंट को जरिए वे ओलंपिक या अन्य प्रतियोगिताओं में भाग ले सकते हैं.