दुर्दांत नक्सल कमांडर कुंदन पाहन ने जिस तरह से पुलिस द्वारा मिले सम्मान और रेड कार्पेट वेलकम के साथ आत्मसमर्पण किया, वो सवालों के घेरे में है. कुंदन पिछले कुछ माह से आला पुलिस अधिकारियों के सम्पर्क में था और उसने पुलिस अधिकारियों को बता दिया था कि वो अपनी शर्तों पर ही आत्मसमर्पण करेगा. पुलिस द्वारा शर्तों को मानने के बाद उसने हीरो की तरह आत्मसमर्पण किया. पुलिस के आला अधिकारी उसके साथ सेल्फी लेने को इतने बेचैन थे, मानो कुंदन पाकिस्तान का युद्ध फतह करने के बाद रांची लौटा हो.
आत्मसमर्पण के समय पुलिस द्वारा कुंदन पाहन को हीरो की तरह पेश करने के मामले में हाईकोर्ट ने भी स्वत: संज्ञान लिया. कोर्ट ने कहा कि किसी नक्सली को इस तरह से हीरो बनाकर आत्मसमर्पण कराने से राज्य के युवाओं के बीच गलत संदेश जाएगा और वे दिग्भ्रमित होंगे. अब तो राज्य सरकार की आत्मसमर्पण नीति पर भी सवाल उठने लगे हैं.
गौरतलब है कि कुंदन पाहन 128 से ज्यादा नक्सली हमलों को अंजाम दे चुका है. पूर्व मंत्री रमेश सिंह मुंडा, डीएसपी प्रमोद कुमार और इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार सहित दर्जनों पुलिसकर्मियों की हत्या का उस पर आरोप है. आईसीआईसीआई बैंक के कैश वैन से साढ़े पांच करोड़ रुपए और दो किलो सोने की लूट वाली घटना में भी उसकी संलिप्तता थी.
राज्य सरकार ने अब तक 150 से भी अधिक नक्सलियों का आत्मसमर्पण कराया है. आत्मसमर्पण के समय सभी को मोटी राशि भी दी गई है. इन नक्सलियों को खुले जेल में रखा गया है, लेकिन अब तक किसी भी नक्सली के विरुद्ध राज्य सरकार आरोप तय नहीं कर सकी है. कुंदन पाहन को भी आत्मसमर्पण के समय राज्य सरकार ने पंद्रह लाख रुपए का चेक सौंपा.
इस आत्मसमर्पण को भले ही नक्सलियों के खिलाफ सरकार की बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि नक्सलियों को राजनीतिक दलों एवं इनके दिग्गज नेताओं का समर्थन मिलता रहा है. साथ ही आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों पर अभियोजन पक्ष की ओर से कानूनी शिकंजा ढीला कर दिया जाता है.
इन नक्सलियों को प्रोत्साहन राशि के रूप में मोटी रकम भी दी जाती है, जिससे कारण इनकी हिंसा के शिकार लोगों के परिजनों को लगता है कि उनके साथ न्याय की जगह अन्याय हुआ है. कुंदन पाहन के आत्मसमर्पण के बाद स्व. रमेश सिंह मुंडा के पुत्र एवं तमाड़ से आजसू विधायक विकास मुंडा का अनशन और विरोध इसी भावना का प्रतिनिधित्व करता है.
रमेश सिंह मुंडा की पत्नी ने भी विरोध के स्वर बुलंद करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने पूर्व मंत्री मुंडा की हत्या के बाद एक लाख रुपए मुआवजा और एक नौकरी देने का आश्वासन दिया था, पर जिस नक्सली ने मुंडा की हत्या की, उसे स्वागत सत्कार के साथ पन्द्रह लाख रुपए का चेक दिया जा रहा है, जबकि उसे फांसी की सजा मिलनी चाहिए.
इधर पुलिस इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार की विधवा पत्नी सुनीता इंदवार का कहना है कि कुंदन को महिमामंडित किए जाने से बुरा लग रहा है. कई पुलिसकर्मियों और निर्दोष ग्रामीणों की हत्या करने वाले को पुलिस अधिकारी गले लगा रहे हैं. सरकार इसे फांसी दे, तभी हमलोगों को न्याय मिलेगा. गौरतलब है कि कुंदन पाहन ने इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार की हत्या तालिबानी स्टाइल में कर दी थी और इंस्पेक्टर की गर्दन काटकर सिर हाइवे पर फेंक दिया था. इस घटना के बाद कुंदन की गिनती सबसे क्रूर नक्सली के रूप में होने लगी थी.
सवाल यह भी उठ रहा है कि सरेंडर पॉलिसी तो काफी समय से है, फिर अब इसे लेकर हंगामा क्यों हो रहा है. दरअसल, आत्मसमर्पण करने वाला नक्सली कुंदन पाहन आतंक का दूसरा नाम था. माओवादी संगठन में रहते हुए उसने कई वारदातों को अंजाम दिया. विधायक रमेश मुंडा और विशेष शाखा के इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार की क्रूर तरीके से हत्या की. डीएसपी प्रमोद कुमार समेत कई पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप कुंदन पाहन पर है. उस पर 128 गंभीर मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं.
वह हमेशा एके 47 एवं 56 जैसे हथियारों से लैस रहता था. इसी तरह 15 लाख के ईनामी नक्सली नकुल यादव ने भी आत्मसमर्पण किया. नकुल पर 144 मामले विभिन्न थानों में दर्ज थे, नकुल पर भी न केवल कई जवानों की हत्या, बल्कि दस्ते में जबरन बच्चों को शामिल करने का भी आरोप है. इस साल 31 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, लेकिन अभी तक किसी भी नक्सली के विरुद्ध राज्य सरकार ने मुकदमा शुरू नहीं किया है. नक्सलियों के आत्मसमर्पण से एक तबका आहत है और सरेंडर पॉलिसी पर सवाल उठा रहा है.
लोगों का कहना है कि आखिर सरकार नक्सलियों को क्यों फूल-माला पहना रही है, उनका स्वागत कर रही है, हत्यारों के सामने पुलिस क्यों झुक रही है. यह चिंता की बात है कि जिस तरह से नक्सलियों को माफी दी जा रही है, उससे खतरा यह है कि आने वाली पीढ़ी कहीं भटक ना जाए. युवाओं को यह लगने लगा है कि नक्सली बनो, खून-खराबा करो और फिर सरेंडर कर सरकारी सुविधा का लाभ उठाओ.
अब सवाल उठता है कि राज्य सरकार नक्सलियों के सामने क्यों झुक रही है? जब नक्सल अभियान पर हर साल अरबों रुपये खर्च हो रहे हैं, सर्च ऑपरेशन चलता है, लंबी दूरी की गश्त होती है, तो फिर यह मजबूरी क्यों? या तो सरकार ने नक्सलियों के सामने घुटने टेक दिए हैं, या फिर उन्हें यह लगने लगा है कि नक्सलियों से लोहा लेना काफी मुश्किल है. जाहिर है कि फिर सरकार नक्सल ऑपरेशन में क्यों सरकारी धन खर्च करे. नक्सलियों को आतंक मचाने के लिए छोड़ दे, बाद में जब वे असमर्थ हो जाएं तो सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर सरकारी सुविधा हासिल कर लें.
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने आत्मसमर्पण के तरीकों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि सरकार नक्सलियों को हीरो बना रही है. सरकार ने नक्सलियों के सामने घुटने टेक दिए हैं. नक्सलियों की समानान्तर सरकार चल रही है, इसकी फिक्र सरकार को नहीं है. वहीं, सरकार नक्सलियों की खुशामद करने में लगी है.
जिसे फांसी की सजा मिलनी चाहिए, उसे सरकार और पुलिस गले लगा रही है. आजसू पार्टी ने भी सरकार के सरेंडर नीति और कुंदन पाहन को हीरो की तरह सरेंडर कराए जाने पर विरोध जताया. आजसू विधायक विकास मुंडा तो इसके खिलाफ अनशन पर बैठ गए और कुंदन को फांसी देने की मांग की. उन्होंने कहा कि हत्यारों को फूल और चेक देकर महिमामंडित किया जा रहा है.
राज्य सरकार के पुलिस प्रवक्ता एवं अपर पुलिस महानिदेशक आरके मल्लिक का मानना है कि ओड़ीशा और पश्चिम बंगाल में इससे ज्यादा उदार सरेंडर पॉलिसी है. उन्होंने कहा कि नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ा जा रहा है. केन्द्र सरकार ने भी झारखंड की सरेंडर पॉलिसी को सराहा है और नक्सलियों के आत्मसमर्पण पर राज्य सरकार की सराहना की है.
उन्होंने कहा कि अभी और कई नक्सली पुलिस के सम्पर्क में हैं और जल्द आत्मसमर्पण करेंगे. 2017 तक नक्सलवाद को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाएगा. इससे यह साफ जाहिर है कि सरकार नक्सलियों पर नकेल कसने की जगह आत्मसमर्पण कराकर राज्य से नक्सलवाद समाप्त कराना चाहती है.
जेल से निकलने के बाद राजनीति में आऊंगा : कुंदन
नक्सल कमांडर कुंदन पाहन सरकार के मान-मनौव्वल और सत्कार से अतिउत्साहित है. ऐसी चर्चा है कि वह तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सकता है. इस क्षेत्र में कुंदन पाहन की तूती बोलती है और सभी राजनीतिक दल इस मौके को लपकने के लिए तैयार हैं. कयास लगाया जा रहा है कि वह भारतीय जनता पार्टी का भावी उम्मीदवार हो सकता है. कुंदन पाहन का कहना है कि राजनीति में आकर वह समाजसेवा करना चाहता है.
ये पूछे जाने पर कि जमानत पर रिहा होने के बाद आपकी भावी रणनीति क्या होगी, कुंदन पाहन ने कहा कि मुझे राजनीति में दिलचस्पी है. जेल से निकलने के बाद राजनीति में जाऊंगा, क्षेत्र एवं राज्य में विकास का काम करूंगा. जरूरत पड़ी तो चुनाव भी लड़ सकता हूं. हालांकि उनका कहना है कि अभी तक किसी पार्टी एवं राजनेता से इस पर कोई बातचीत नहीं हुई है.
क्षेत्र में यह चर्चा जरूर होती है कि मैं इस नेता या पार्टी के लगातार सम्पर्क में हूं, पर यह कोरी बकवास है. मैंने अभी तक किसी भी राजनेता या पार्टी को चुनाव जिताने में मदद नहीं की. लेकिन अब मैं किसी पार्टी के साथ जुड़ना चाहता हूं. हालांकि किस पार्टी से जुड़ेंगे, के सवाल पर उसने चुप्पी साध ली. ऐसी चर्चा थी कि आत्मसमर्पण से पहले किसी पूर्व मुख्यमंत्री से उन्होंने राय मशविरा किया था. इस बात पर कुंदन ने स्पष्ट कहा कि किसी भी राजनेता, मंत्री या मुख्यमंत्री से मेरा कोई संबंध नहीं है.
नक्सली बनने के बारे में पूछे जाने पर उसने बताया कि भूमि विवाद के कारण नक्सल संगठन में आया. उसने बताया, मेरे परिवार के पास 2600 एकड़ जमीन थी. यह जमीन संयुक्त परिवार की थी, जिसमें से पांच सौ एकड़ जमीन पर जबरन कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया था. बहुत समझाने के बाद भी जब उन्होंने जमीन नहीं छोड़ी, तब एक व्यक्ति की हत्या कर मैं फरार हो गया और इसके बाद नक्सल संगठन में शामिल हो गया.
पुलिस और नेताओं की क्रूरता से हत्या के बारे में पूछे जाने पर उसने कहा कि मैंने नहीं नेताओं और पुलिस को नक्सल मिलिट्री कमीशन ने मारा है, जिसमें सैकड़ों हथियारबंद नक्सली रहते थे. नक्सली संगठन के शीर्ष नेताओं से हमारी मुलाकात होती रहती थी. नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड ने भी झुमरा पहाड़ पर हमारे साथ ट्रेनिंग ली थी. आत्मसमर्पण क्यों किया, ये पूछे जाने पर उसने बताया कि अब संगठन में पहले जैसी बात नहीं रही. सब अपने मन की करते हैं. 2014 में ही मैंने संगठन छोड़ दिया था और जंगलों में छिपकर रह रहा था. बाद में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना ही उचित समझा.
भाजपा सरकार ने उग्रवादी के समक्ष घुटने टेके : बाबूलाल
नक्सल कुंदन पाहन का सुपरहीरो की तरह आत्मसमर्पण करने का मामला विवादों में घिरता जा रहा है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने इस आत्मसमर्पण पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि दर्जनों लोगों की जान लेने वाले नक्सली ने आत्मसमर्पण नहीं किया है, बल्कि सरकार ने उसके आगे घुटने टेका है.
सरेंडर के दौरान वरीय पुलिस अधिकारी उससे इस तरह गले मिल रहे थे, जैसे कोई समधी मिलन हो रहा हो. बाबूलाल ने सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि वे उग्रवादियों के आत्मसमर्पण करने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से इस नाटक को रचा गया, इससे सरकार पर ऊंगली उठना स्वाभाविक है. उन्होंने कहा कि सरकार हत्या करने वालों का सम्मान कर क्या साबित करना चाहती है.
उन परिवार के लोगों से पूछिए, जिनकी उग्रवादियों ने हत्या की है. यह सरकार का अजीबोगरीब खेल है. उग्रवादियों को इस तरह सम्मान देने से युवाओं में गलत संदेश जा रहा है. युवाओं को यह अहसास होने लगा है कि आपराधिक दुनिया में प्रवेश कर बाद में सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर वे खुशहाल जिंदगी जी सकते हैं. उन्होंने आत्मसमर्पण नीति की समीक्षा करने की मांग भी राज्य सरकार से की है.