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केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट सलाहकार ने कहा है कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बैन ठीक उसी तरह है, जैसे दलीलों के साथ छुआछूत का मामला.

कोर्ट सलाहकार राजू रामचंद्रन ने कहा कि छुआछूत के खिलाफ जो अधिकार है, उसमें अपवित्रता भी शामिल है. अगर महिलाओं का प्रवेश इस आधार पर रोका जाता है कि वह मासिक धर्म के समय अपवित्र हैं तो यह भी दलितों के साथ छुआछूत की तरह है.

बता दें कि केरल हाईकोर्ट ने इस पाबन्दी को सही ठहराते हुए कहा था कि मंदिर जाने से पहले 41 दिन का ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना होता है. महिलाएं मासिक धर्म की वजह से अपवित्र होती हैं और वो इसे पूर्ण नहीं कर पातीं. लिहाज़ा उनके प्रवेश पर पाबंदी जायज है. केरल हाइकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

जस्टिस इंदू और जस्टिस नरीमन ने उठाए अहम सवाल
सुनवाई के दौरान जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने पूछा- क्या ऐसा भी मंदिर है, जहां पुरुष को जाने की अनुमति नहीं है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ये परंपरा भी गलत है. जस्टिस नरीमन ने कहा कि 10 से 50 साल की महिलाओं की एंट्री पर बैन के पीछे कोई वाजिब आधार नहीं है. किसी महिला की माहवारी 9 साल की उम्र में शुरू हो सकती है और 45 साल की उम्र में भी माहवारी खत्म हो सकती है.

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने की थी अहम टिप्पणी
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा बुधवार को कहा था कि  महिलाओं का संवैधानिक अधिकार है कि वह सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करें और पूजा अर्चना करें. उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हो सकता. मंदिर निजी संपत्ति नहीं है बल्कि सार्वजनिक संपत्ति है और पुरुष जा सकते हैं तो किसी भी उम्र की महिला भी जा सकती हैं.

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