सिस्टम कितना बेरहम होता है. वो अपने ही व्यक्ति की मौत का सुख उठाता है. हमारे इस महान देश के एक मुख्यमंत्री आत्महत्या करते हैं. आत्महत्या करने से पहले वे एक विस्तृत आत्महत्या स्वीकृति पत्र लिखते हैं, जिसे सुसाइड नोट कहा जाता है. उनके उस नोट के ऊपर कहीं कोई बातचीत नहीं होती, कोई उसकी छानबीन नहीं करता.
अचानक वो नोट गायब हो जाता है. नेशनल लॉयर्स कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल ट्रांसपेरेंसी और अन्य 10 लोगों ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल किया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पीआईएल को जिस तरह खारिज किया, वो भी एक विस्मयकारी चीज है. सरकार, केंद्र सरकार खामोश हो जाती है और इतनी खामोश हो जाती है कि सांस तक नहीं लेती.
आत्महत्या करने वाले इन मुख्यमंत्री महोदय की पत्नी चुनाव लड़कर भारतीय जनता पार्टी की विधायक बन जाती हैं. शायद इसलिए क्योंकि उन्होंने इस आत्महत्या वाले पत्र पर खामोश रहने का किसी को वचन दे दिया. उन्होंने कोई मांग नहीं उठाई. आखिर क्या था इस पत्र में? क्यों ये गायब हो गया? लोगों के पास सिर्फ इतनी जानकारी आई की ये 60 पृष्ठ का दस्तावेज है. इस दस्तावेज में क्या है, न अरुणाचल सरकार ने बताया जहां के मुख्यमंत्री थे और न केंद्र सरकार ने बताया. सुप्रीम कोर्ट पूरी तरह खामोश हो गया. कोई जांच नहीं, कोई सुगबुगाहट नहीं, कोई सनसनाहट नहीं.
इसे हम क्या मानें? हमने जब तलाश की और खोजबीन की, तो हमें पता चला कि इस पत्र में कुछ मंत्रियों के नाम हैं. कुछ रहे हुए मंत्रियों के नाम हैं. इस पत्र में कुछ माननीय जजों के नाम हैं, राजनीतिक दलों के कुछ महान नेताओं के नाम हैं. जिनके बारे में आत्महत्या करने वाले मुख्यमंत्री श्री कलिखो पुल ने साफ-साफ लिखा है. उन्होंने ये भी लिखा है कि उन्होंने किसे पैसे कहां दिए. जब हम पैसे कहते हैं, तो वो लाखों में नहीं होते हैं, वो करोड़ों में होते हैं. आखिर किन जज साहबानों को उन्होंने पैसे दिए.
क्या ये सारा मसला इसलिए दबा दिया गया, क्योंकि इससे हमारे सिस्टम के सबसे भरोसे वाले अंग न्यायपालिका, न्यायपालिका की गंदगी का, न्यायपालिका के भीतर चल रहे भ्रष्टाचार का खुलासा होता है. राजनीतिज्ञ धन लें समझ में आता है, लेकिन न्यायपालिका में शीर्ष पदों पर बैठे हुए लोग अगर धन लें और उसके आधार पर फैसला करें, ये बात कुछ समझ में नहीं आती और इससे ये लगता है कि जानबूझ कर हमारे लोकतंत्र को समाप्त करने की साजिश उसी के सहारे अपना जीवन गुजारने वाले कर रहे हैं.
अपनी जांच में हमें ये भी पता चला कि किस तरह केंद्र सरकार द्वारा भेजा हुआ 100 रुपया राज्य में पहुंचते-पहुंचते 25 पैसे हो जाता है. पीडीएस स्कीम सिर्फ और सिर्फ घोटालों का, खाने का और भ्रष्टाचार का तरीका बन गया है. एक पूरे तंत्र को तबाह करने की मंत्रियों की, विधायकों की, नौकरशाहों की मिलीभगत का खुला चिट्ठा श्री कलिखो पुल के आखिरी पत्र में है.
अगर श्री कलिखो पुल कहते हैं कि उन्होंने लोगों को पैसे दिए, तो ये पैसे आए कहां से. इसका मतलब वे भी सिस्टम का हिस्सा थे. लेकिन वे सिस्टम से लड़ते-लड़ते इतने हताश हो गए कि अंत में उन्होंने आत्महत्या करना श्रेयस्कर समझा. लेकिन आत्महत्या से पहले उन्होंने एक लम्बा पत्र लिखा. ये पत्र बताता है कि भ्रष्टाचार कैसे तंत्र में घुन की तरह घुस गया है और कैसे वे लोग ही भ्रष्टाचार के संवाहक और कंडक्टर बन गए हैं जिनके ऊपर भ्रष्टाचार को खत्म करने का जिम्मा था, चाहे वो राजनीति में हों या न्यायापालिका में हों.
मैं अगर मिली जानकारी को संक्षेप में कहूं, तो मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर भी थोड़ा तरस आता है, थोड़ा गुस्सा आता है. क्यों प्रधानमंत्री जी ने इस पत्र की जांच का आदेश नहीं दिया? एक तरफ प्रधानमंत्री जी सभाओं में भ्रष्टाचार के खिलाफ गरजते हैं, समाप्त करने की बात करते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि व्यक्तिगत रूप से नरेंद्र मोदी निष्कलंक व्यक्ति हैं.
लेकिन नरेंद्र मोदी सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार को क्यों नहीं खोलना चाहते हैं, क्यों नहीं सार्वजनिक करना चाहते हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की कौन सी कमजोर नस है, जो उन्हें ऐसा करने से रोक रही है या उनकी कोई रणनीति है कि बड़े भ्रष्टाचार को और खासकर मुख्यमंत्री की आत्महत्या के पत्र को चुनाव से ठीक पहले जांच के दायरे में लाया जाए? लेकिन तब तक तो देश में और बहुत कुछ हो जाएगा. भ्रष्टाचार से लड़ने का वक्त तभी होता है, जब आप भ्रष्टाचार से लड़ने की बात करते हैं.
इसलिए मैं माननीय सुप्रीम कोर्ट, माननीय प्रधानमंत्री और माननीय संसद से ये आग्रह करता हूं कि वो एक व्यक्ति द्वारा मौत से पहले लिखे हुए पत्र को अनदेखा न करें. उसके ऊपर जांच बैठा दें. ये उनके अपने सिस्टम के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति, जो लगातार पांच बार विधायक रह चुका है की आत्महत्या से उपजा सवाल है. मैं ये भी आग्रह करता हूं कि एक सप्ताह के भीतर आप इस जांच को बैठा लें, अन्यथा हम उस पत्र को कहीं न कहीं से प्राप्त कर देश के लोगों के सामने लाएंगे. पत्रकार सिर्फ इतना कर सकता है.
अगर एनडीटीवी के ऊपर किसी पुराने मामले में सीबीआई का छापा पड़ सकता है, तो प्रधानमंत्री जी, एक मुख्यमंत्री की आत्महत्या के नोट के ऊपर सीबीआई की जांच क्यों नहीं कराई जा सकती? करानी चाहिए. आप कम से कम भ्रष्टाचार के मसले में पक्षपात नहीं करें, ऐसी अपेक्षा तो आपसे है ही.
आमतौर पर माना जाता है कि मरने से पहले व्यक्ति हमेशा सच बोलता है. आत्महत्या से पहले श्री कलिखो पुल ने एक 60 पन्ने का टाइप्ड नोट लिखा. मेरा ख्याल है कि उस टाइप्ड नोट को लिखने में तीन से चार दिन लगे होंगे. कोई उनके साथ बैठकर उसे टाइप कर रहा होगा. उन्होंने उसे पढ़ा होगा. उसके हर पृष्ठ पर उन्होंने दस्तखत किए, ताकि कोई इस नोट बदल न सके.
उन्होंने कहा है कि मेरी आत्महत्या या मेरा जाना मेरे देशवासियों के लिए कम से कम कुछ सीख देगा और वे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज उठाएंगे. लेकिन इस सिस्टम ने, सुप्रीम कोर्ट ने, केंद्र सरकार ने या स्वयं संसद ने स्वर्गीय मुख्यमंत्री की इच्छा का सम्मान नहीं किया. कहीं से कोई आवाज भी नहीं उठी कि इस पत्र के ऊपर सीबीआई जांच बैठे और जो तथ्य उन्होंने लिखे हैं, उनकी सच्चाई का पता लगाया जाए.
कहा तो ये जा रहा है कि जिन कुछ लोगों ने इस पत्र की तलाश का काम शुरू किया, उन्हें किसी एक जगह बुलाकर ये कहा गया कि आप पत्रकारिता कीजिए, आप इन सब में कहां पड़े हैं. अगर आप इसमें पड़ेंगे, तो कोई ट्रक आपको कुचल कर चला जाएगा. इसका मतलब भ्रष्टाचार को पनाह देने वाले लोग इतने ताकतवर हैं कि वे किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार की परतें उघड़ते हुए नहीं देखना चाहते. कोई जांच नहीं होने देना चाहते. वे बहुत ताकतवर हैं. इसीलिए आरटीआई के बहुत सारे कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं.
पत्रकारों के ऊपर दबाव बनाया जा रहा है. हमारे वो चैनल, जो पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का कंट्रोल रूम बने हुए हैं, उनकी हिम्मत चीन के खिलाफ बोलने की तो होती ही नहीं है, उनकी हिम्मत भ्रष्टाचार को उजागर करने की भी नहीं होती है. दरअसल, बहुत सारे लोग इस तंत्र के भ्रष्टाचार का हिस्सा बन गए हैं. मैं अंत में न्यायपालिका और प्रधानमंत्री जी से आग्रह करता हूं कि सात दिन के भीतर आप जांच कमिटी बैठा लें, अन्यथा हम कोशिश करेंगे कि उस स्वर्गीय मुख्यमंत्री के पत्र को हम सार्वजनिक करें और लोगों के संज्ञान में लाएं, जिन्होंने मुख्यमंत्री रहने के बाद भी सिस्टम से हार कर आत्महत्या कर ली.
इसे कोई भी धमकी समझने की गलती न करें. ये सलाह है और प्रधानमंत्री जी से अंत में फिर हाथ जोड़कर आग्रह है कि फौरन सीबीआई की जांच का आदेश इस पत्र को लेकर दें और राजनीति और न्यायपालिका में बैठे हुए उन लोगों के चेहरे सार्वजनिक करें, जो भ्रष्टाचार में अपना हिस्सा लेने के लिए बेशर्मी से मुंह खोलते हैं और मुख्यमंत्री से पैसे की मांग करते हैं. वे इस मांग को सहन नहीं कर पाते और इस दुनिया से शांति से विदा हो जाते हैं, ये सोचकर कि उनकी आत्महत्या इस देश के लोगों में आशा का संचार करेगी. लेकिन आत्महत्या करने वाले श्री कलिखो पुल को क्या पता था कि उनकी आत्महत्या का आखिरी दस्तावेज, उनका सुसाइड नोट इस देश के लोगों के पास ही नहीं पहुंच पाएगा.