रेत और कंक्रीट से होने वाले निर्माण कार्य न सिर्फ खर्चीले हैं, बल्कि ये पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए इसके विकल्प् को लेकर अलग अलग जगहों पर शोध कार्य हो रहा है. ऐसे ही एक अध्यियन में पता चला है कि निर्माण कार्य में बालू के बजाय प्लास्टिक का आंशिक तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. यह देश में सतत निर्माण कार्य के लिए एक संभावित समाधान है. गौरतलब है कि भारत में हर साल बड़ी मात्रा में प्लास्टिक का कचरा निकलता है, जिसका फिर से इस्तेमाल नहीं हो पाता.
रेत की कमी नहीं बनेगी बाधा
कंक्रीट में 10 प्रतिशत बालू के बजाय प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से भारतीय सड़कों पर पड़े रहने वाले प्लास्टिक के कचरे को कम किया जा सकता है और देश में रेत की कमी से निपटा जा सकता है. मुख्य शोधकर्ता डॉ. जॉन ओर ने कहा है कि आम तौर पर जब आप कंक्रीट में प्लास्टिक जैसी मानव निर्मित वस्तु मिलाते हैं तो उसकी मजबूती थोड़ी कम हो जाती है क्योंकि प्लास्टिक सीमेंट में उस तरह जुड़ नहीं पाता जैसे कि रेत जुड़ती है. उन्होंने कहा, ‘यहां पर मुख्य चुनौती यह थी कि मजबूती में कमी नहीं आए और इस लक्ष्य को हमने हासिल किया. इसके अलावा, इसे सार्थक बनाने के लिए प्लास्टिक की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना था.
री-सायकल की समस्या से मिलेगी मुक्ति
निर्माण के कुछ क्षेत्रों में यह सामग्री काम की है. इससे प्लास्टिक को रिसाइकल नहीं कर पाने और बालू की मांग को पूरा करने जैसे मुद्दों से निपटने में मदद मिल सकती है. यह शोध इस महीने जर्नल ‘कंसट्रक्शन ऐंड बिल्डिंग मटिरियल्स’ में प्रकाशित हुआ है और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समिति ने एटलस अवॉर्ड के लिए इसका चयन किया है. शोध दल ने विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक का अध्ययन किया और यह जाना कि क्या उनका चूरा बनाया जा सकता है और बालू के स्थान पर इस्तेमाल किया जा सकता है.